Saturday, February 3, 2018

यक़ीं उतना मुझे ख़ुद पर नहीं है....सुभाष पाठक ‘जिया’

किसी  से आस तुझको गर नहीं है
तो दिल के टूटने का  डर नहीं  है,

उसे रोता  हुआ देखा  किया मैं
कहूँ  कैसे कि दिल पत्थर नहीं है,

यक़ीं  जितना किया है मैंने तुझ पर
यक़ीं उतना  मुझे ख़ुद पर नहीं है,

ये दिल क्या चीज़ है मैं जान दे दूँ,
तेरी उल्फ़त से  कुछ  बढ़कर नहीं है,

किया है क़त्ल उसने इस अदा  से
कि ख़ूँ का दाग़ दामन पर नहीं है,

हुआ है  हादसा अंदर  कहीं कुछ,
जो हलचल जिस्म के बाहर नहीं है,

कहाँ जाकर 'ज़िया' रोयूँ ग़मे दिल,
कि सहरा में कोई भी दर नहीं है,

सुभाष पाठक ‘जिया’ 

3 comments:

  1. वाह!!! क्या खूब कहा
    अप्रतीम

    ReplyDelete
  2. किया है क़त्ल उसने इस अदा से की खून का दाग दामन पर नही है....बहुत उम्दा

    ReplyDelete