Saturday, November 30, 2019

191..क्योंकि आप महिला हैं

सांध्य अंक में आप सभी का
अभिनंदन
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तुम्हारे संस्कार हैं उनके आदर
और सम्मान के लिए तो
 कभी प्रेम मेंं अपने घुटनों में
 झुकती हो
वो अपने पौरुष के अहं में चूर
गर्वोन्मत 
तुम्हारे भावों से खेलकर,
तुम्हारी सरलता और निश्छलता को
छलकर,
तुम्हें पाँव के अँगूठें तक झुका
तुम्हारे रीढ़ पर प्रहार कर
तुम्हें रीढ़विहीन कर देना चाहता है
ताकि तुम आश्रिता बनकर
उनकी दया पर जीवित रहो
 आजीवन रेंगती रहो
उसके आसपास।




सुनो स्त्री,..!
अपने दुख दर्द मत बताना किसी को,
जिस पर यकीन करोगी वो साबित कर देगा चरित्रहीन,
जिससे मदद मांगोगी वो कहेगा 
आदरणीया इससे आपकी ही बदनामी होगी 
क्योंकि आप महिला हैं।


हसरत-ए-दीदार में 
सूख गया 
बेकल आँखों का पानी,
कहने लगे हैं लोग 
यह तो है 
गुज़रे ज़माने की कहानी।



बोरे में बंद क़ानून 
घुटन से तिलमिलाता रहा 
पहरे में कुछ 
राजनेताओं की आत्मा 
राजनीति का खड़ग लिये 
वहीं  खड़ी थी |


आपका और हमारा वजूद भी है

आपका है हुनर जो ,हमारी कमी!

दिन की हलचल में आन रखते हैं

रात चुपके से फिर गुजारी कमी!

कोई तो कुछ कहो  मुलाज़िम को 

बात दर बात पे सरकारी कमी ?
कानून से भयभीत है इंसानियत


आजकल चाय बनती नहीं है अंततोगत्वा वह तैयार होती है। यकीन मानिए जब चाय को कप में डालकर; चाय के कप को अपने साथ ले जाकर अपनी कुर्सी में बैठकर उसकी पहली चुस्की लेकर कहता हूँ कि अंततोगत्वा चाय बन ही गयी तो ऐसा अहसास होता है कि मानों मैंने चाय की पत्ती को चाय के बगानों में उगाने से लेकर उसे प्रोसेस करने और फिर गुरुग्राम तक पहुंचाने के कार्यों को अपने इन कोमल हाथों से पूरा किया हो। बड़ा अच्छा लगता है। 


गेंदाकार लोइयों से बेलती वृत्ताकार रोटियाँ
मानो करती भौतिक परिवर्त्तन
वृताकार कच्ची रोटियों से तवे पर गर्भवती-सी
फूलती पक्की रोटियाँ
मानो करती रासायनिक परिवर्त्तन
तब-तब तुम तो ज्ञानी-वैज्ञानिक
लगती हो अम्मा !

★★★★★
आज के लिए इतना ही
कल मिलिए यशोदा दी से।

Friday, November 29, 2019

190..ध्यान ना दें मेरी अपनी समस्यायें मेरा अपना बकना मेरा कूड़ा मेरा आचार विचार

सादर अभिवादन..
आज ब्लेक फ्राइडे है
'ब्लैक फ्राइडे' एक तरह से यह शॉपिंग का सप्ताह है 
जिसकी शुरूआत थैंक्सगिविंग डे से शुरू होती है। 
ब्लैक फ्राइडे सबसे बड़ा शॉपिंग इवेंट है, 
जहां कई रिटेलर्स अपने सामान की 
कीमतों में भारी डिस्काउंट देते हैं।
तो चलिए खरीदें चलकर
किसी की पीड़ा
किसी का दुख
किसी की गरीबी
काश लोग ऐसा करते..

..
चलिए रचनाओं का आस्वादन करें

मन से अर्पण दिल से समर्पण
एक ही सीरत सूरत का दर्पण
ऐसा निश्छल प्रणय हो प्रिये
हो जो कर्म मेरा, हो वह तेरा अर्जन


आँखो के समंदर में शायद, बेचैनी करवट लेती है
तेरी यादों के जंगल में, इक बाग बिठा के आया हूँ

इतराती है खुशबू ख़ुद पे, काँटों में गहमागहमी है
मैं सन्नाटों के सहरा में, कुछ फूल खिला के आया हूँ



नही जानती किसी की नजर में , अहमियत मेरी ।
मैं जानती हूँ अपने घर में , हैसियत मेरी ।।

ओस का कतरा नहीं , जो टूट कर बिखर जाऊँ ।
कमजोर भी इतनी नहीं , यूं ही उपेक्षित की जाऊँ ।।


होती चिन्ता चिता समाना ।मरम नहीं पर मेरा जाना।।
हर आहट पर सहमी जाती। संतति जब तक घर नहि आती।।
सब कहते हैं चिन्ता  छोडें।कैसे अपनों से मुख मोड़ें।।
लहू से सींचा पाला तुमको । दिन अरु रात न भूले तुमको ।।


चाँद, सितारे, सूरज मांगे
वही बने हकदार ज्योति के,
काली रातें आँसू चाहे
कैसे  बिछें उजाले पथ में !


तुम्हारे सीनों को जब
फिरंगियों की बेधती
निर्दयी गोलियाँ
बना गई होगी
बेजान लाशें तुम्हें ..

बेअसर रही होगी
तब भी भले ही
मन्दिरों की
तमाम बेजान
पाषाण-प्रतिमाएं ..

................
उलूकनामा.. डॉ. सुशील कुमार जोशी
अपनी लम्बाई
चार फिट की

अपनी
सोच के हिसाब से

किसे पड़ी है
आज

अगर
बन जाता है

एक
कुआँ
मेढकों का स्वर्ग

और
स्वर्गवासी
हो लेने के अवसर
तलाशते दिखें

हर तरफ
मेंढक हजार।
...
आज काफी से अधिक रचनाएँ बटोर लिए हम
चलते हैं..
सादर..


Thursday, November 28, 2019

189....कुछ समझ आया कुछ नहीं आया

सादर अभिवादन
आखिरकार बन ही गई
स र का र
बनती भी क्यों नही
एक-एक स्पेस छूटा हुआ जो है
चलते हैं अब रचनाओं का ओर...


फिर दोहराया जाए ......

पहले पूरे घर में
ढेर सारे कैलेंडर टँगे होते थे ।
भगवान जी के बड़े बड़े कैलेंडर,
हीरो हीरोइन के,
प्राकृतिक दृश्य वाले, ...
साइड टेबल पर छोटा सा कैलेंडर
रईसी रहन सहन की तरह
गिने चुने घरों में ही होते थे
फ्रिज और रेडियोग्राम की तरह !
तब कैलेंडर मांग भी लिए जाते थे,
नहीं मिलते तो ...चुरा भी लिए जाते थे


सीख .....

लचकती डार नहीं
जो लपलपाने लगूँ
दीप की लौ नहीं
जो तेरे झोंके से
थरथराने लगूँ
लहरें उमंग में होती है
बावला व्याकुल होता है


वो गुलाबी स्वेटर ....

याद आती है 
बातें तुम्हारी
तुम बुनती रहीं
रिश्तों  के महीन धागे,
और मैं  बुद्धू
अब तक उन रिश्तों  में
तुम्हें ढूँढ़ता  रहा।



नदी में जल नहीं है .....

गीत-लोरी
कहकहे
दालान के गुम हो गये,
ये वनैले
फूल-तितली,
भ्रमर कैसे खो गये,
यन्त्रवत
होना किसी
संवेदना का हल नहीं है ।


शब्द युग्म ' का प्रयास ...

चलते चलते
चाहों के अंतहीन सफर
मे  दूर बहुत दूर चले आये
खुद ही नही खबर
क्या चाहते हैं
राह से राह बदलते
चाहों के भंवर जाल में
उलझते गिरते पड़ते
कहाँ चले जा रहे है ।


एक और महाभारत ....

गर्दिश ए दौर किसका था
कुछ समझ आया कुछ नहीं आया,
वक्त थमा था उसी जगह
हम ही गुज़रते रहे दरमियान,
गजब खेल था समझ से बाहर
कौन किस को बना रहा था,
कौन किसको बिगाड़ रहा था,
चारा तो बेचारा आम जन था,


यादें जाती नहीं ....

पूरी रात जागता रहा
सपने सजाता,
तुम आती थीं, जाती थीं
फिर आतीं फिर जातीं ,
परन्तु
यादें करवट लिए सो रही थीं
...
अब बस..
फिर मिलते हैं कल
सादर





Wednesday, November 27, 2019

188..अब की बार खो दी सरकार


सादर अभिवादन

कल हम आने वाले थे पर
शायद कल का दिन ने हमको
काम ने व्यस्त कर दिया
पर आज हम हैं..
ज्वलंत घटनाओं को लेकर..

चाहत में कुर्सी की देखो नीति नियम सब ध्वस्त हुए ।
संस्कार सद्भाव समर्पण मानो रवि सम अस्त हुए॥

नवाचार दिखता है यहां अब केवल भ्रष्टाचारी का।
चहुंओर डंका है बजता गद्दारी मक्कारी का॥

सरे बाजारों में अब नेताओं की मंडी लगती है।
राजनीति की शक्ल मुझे अब क्रूर घमंडी लगती है।


अच्छा हुआ कि महाराष्ट्र के राजनीतिक ड्रामे के पहले अंक का पटाक्षेप समय से हो गया. देश की राजनीति को यह प्रकरण कई तरह के सबक देकर गया है. बीजेपी को सरकार बनाने के पहले अच्छी तरह ठोक-बजाकर देखना चाहिए था कि उसके पास बहुमत है या नहीं. इस प्रकरण से उसकी साख को धक्का जरूर लगा है. सवाल यह भी है कि क्या यह बीजेपी के साथ धोखा था? बहरहाल यह इस प्रकरण का अंत नहीं है.



महाराष्ट्र में अब शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की सरकार बनेगी। यह एक अजूबे की तरह से भी देखा जा रहा है औऱ अचानक भारतीय संसदीय राजनीति में विचारधारा के अस्तित्व और प्रासंगिकता पर एक बहस छिड़ गयी है। लोग कह रहे हैं यह केर बेर के संग जैसी दोस्ती होगी। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस में तो कोई वैचारिक भिन्नता और अंतर्विरोध नही है, लेकिन शिवसेना से इन दोनों कांग्रेस पार्टियों का विरोध है। 


व्यंजना है बेअसर, 
कविता से कागज भर गया
नष्ट हो गए पेड़ सारे, 
एक जंगल मर गया.

पीछे पड़े जो कुछ लफंगे, 
बुद्धि ओ उस्ताद के,
द्रोही कलम घोषित हुई, 
विचार निहत्था झर गया.

आज के लिए इतना काफी है
अभी तो शुरुआत है
अंत की प्रतीक्षा करें..
सादर


Tuesday, November 26, 2019

187...दबाए, अव्यक्त वेदनाओं के झंकार

आज भारतीय संविधान दिवस है

आज ही के दिन संविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष 
डॉ॰ भीमराव आंबेडकर के 125वें जयंती वर्ष के रूप में 26 नवम्बर 2015 से संविधान दिवस मनाया गया। संविधान सभा ने भारत के संविधान को 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में 26 नवम्बर 1949 को पूरा कर राष्ट्र को समर्पित किया।

सादर अभिवादन...
अब चलें रचनाओं की ओर..

टूटा सा तार ....पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

जर्जर सितार का, हूँ इक टूटा सा तार! 
संभाले, अनकही सी कुछ संवेदनाएं, 
समेटे, कुछ अनकहे से संवाद, 
दबाए, अव्यक्त वेदनाओं के झंकार, 
अनसुनी, सी कई पुकार, 
अन्तस्थ कर गई हैं, तार-तार! 


आवला कैंडी ....ज्योति देहलीवाल
आवला कैंडी (Amla candy recipe in hindi)
आंवला हमारी सेहत के लिए बहुत ही लाभकारी होने से इसे अमृतफल कहा जाता हैं। इसलिए हमें आंवले को किसी न किसी रुप में खाना ही चाहिए। मैं ने इसके पहले आंवला गटागट, आंवले के चटनी, आंंवला शरबत, आंवला चूर्ण और आंवले की खट्टी-मिठ्ठी लौंजी आदि की रेसिपी शेयर की थी। संबंधित शब्दों पर क्लिक करके आप वो रेसिपी पढ़ सकते हैं। आज मैं आपको सफ़ेद आंवला कैंडी बनाने की रेसिपी बता रही हूं। आंवला कैंडी को लेकर अक्सर लोगों को शिकायत होती हैं कि उनके द्वारा बनाई गई आंवला कैंडी का रंग सांवला हो जाता हैं,


सुधा की कुंडलियाँ....   सुधा सिंह

थैली पॉलीथीन की, जहर उगलती जाय ।
ज्ञात हमें यह बात तो,करते क्यों न उपाय ।।
करते क्यों न उपाय, ढोर पशु खाएँ इसको ।
बिगड़ा पर्यावरण, अद्य समझाएं किसको।।
कहत 'सुधा' कर जोड़, सुधारो जीवन शैली ।
चलो लगाएं बुद्धि , तज़ें पॉलीथिन थैली।।


बकरबग्घा ....विश्वमोहन कुमार

एक युग बीत चुका था। बकरे की माँ आखिर कबतक खैर मनाती। उसका भी  छल अब नंगा हो चुका था। लकड़बग्घों ने प्रजा के समक्ष बकरियों की जालबाजी के तार-तार उधेड़ दिए थे। अब लकड़बग्घे  सत्तासीन थे। लकड़बग्घों की लीक पर ही भेड़ियों ने भी उनके दृष्टिपत्र में सेंध मारकर अपना एक अलग दर्शन जंगल को दिखाया था। लेकिब यह दर्शन जंगल के किसी खास भाग में ही अपनी छाप छोड़ सका।


आज की नारी ....अनीता सुधीर

दस भुजा अब रक्खे नारी ,करते तुम्हें प्रणाम
बाइक पर सवार हो, तुम चलती खुद के धाम।

सरस्वती अन्नपूर्णा हो तुम,लिये मोबाइल हाथ
पुस्तक बर्तन लैपटॉप, रहते तेरे साथ ।
...
अब बस
कल हम नहीं मिलेंगे
सादर



Monday, November 25, 2019

186...अंबर के गुलाबी देह से फूट अंकुराई धरा

सादर अभिवादन..
सप्ताह का पहला दिन
या ये कहिए माह नवम्बर का 
अंतिम सप्ताह
उठा-पटक जारी है
महाराष्ट्र में
देखें ऊँट किस करवट बैठता है
हमें क्या..कैसे भी बैठे
हमें तो रचनाएँ पढ़नी है...

एक टूटे हुए पत्ते ने जमीं पायी है ,
जड़ तक पहुंचा दे ,ये सदा लगायी है !

सादा कागज है मुंतज़िर कि आये गजल
क्या कलम में  हमने भरी रोशनाई है ?


फ़िक्र कल की क्यों सताए
आज जब है पास अपने,
कल लगाये  बीज ही तो
पेड़ बन के खड़े पथ में !

मौसमों की मार सहते
पल रहे थे, वे बढ़ेंगे,
गूँज उनकी दे सुनायी
गीत जो कल ने  गढ़े थे !


My Photo
लिखे थे दो तभी तो 
चार दाने हाथ ना आए
बहुत डूबे समुन्दर में 
खज़ाने हाथ ना आए

गिरे थे हम भी जैसे लोग 
सब गिरते हैं राहों में
यही है फ़र्क बस हमको 
उठाने हाथ ना आए


जिन्दगी में उलझनें अनेक  
कैसे उनसे छुटकारा पाऊँ
दोराहे पर खड़ा हूँ
किस राह को अपनाऊँ |
न जाने क्यूं सोच में पड़ा हूँ
कहीं गलत राह पकड़ कर
दलदल में न फँस जाऊं


भावों के वन्ध अतिरंजित हैं
नेपथ्य उठाना होता है -
षडयंत्री उत्सव में केवल गाल बजाना होता है ,
बजता वाद्य बजाता कोई साज दिखाना होता है

मन मालिन्य धुल गया
झर-झर झरती निर्झरी 
कस्तूरी-सा मन भरमाये
कंटीली बबूल छवि रसभरी

वनपंखी चीं-चीं बतियाये
लहरों पर गिरी चाँदी हार
अंबर के गुलाबी देह से फूट
अंकुराई धरा, जागा है संसार
...
आज बस..
कल फिर मिलते हैं
सादर


Sunday, November 24, 2019

185...जब कुछ हो ही नहीं रहा है तो काहे कुछ लिखना कुछ नहीं लिखो खुश रहो

सादर अभिवादन
उथल-पुथल हो गया
होश आ गया सभी को
जान आ गई पैरों में
कल तक मान-मनौवल खोजने वाले
आज मान-मनौवल कर रहे हैं
करने दीजिए...हमें क्या..
हम को तो आज की रचनाएँ देखनी है

इंद्रधनुष के रंग यह सारे ..अनीता लागुरी
इंद्रधनुष के रंग ये सारे,
ये स्याह सफेदी मुझे भाती नहीं,
तुझे भी हक है नारंगी रंग ओढ़ने की
किसी की मौत तेरी किस्मत नहीं
लगा दूं बालों में यह गुलाबी सा पुष्प कहीं,

गिलहरी और पेड़ ....ओंकार जी
Squirrel, Young, Young Animal, Mammal
दौड़ती-भागती रहती है
ऊंचे पेड़ की शाखों पर,
पेड़ को गुदगुदी होती है,


जीवन की साँझ ....अनुराधा चौहान
भोर बोझिल-सी हो गई।
महकती थी सुमन से बगिया,
 बंजर-सी वो हो गई।

प्रेम के अहसास जो छिटके,
ओस की तरह गुम हुए।
अंतिम पथ पे आज अकेले,
बाट जोहते रह गए।

जिन रातों के हिस्से कोई चाँद नहीं होता होगा,
कैसे कटती होंगीं उनकी अकथ गुलामी की रस्में?

सच कहते हैं जीवन केवल
परिधानों का सौदा है,
जनम-मरण का घेरा यह तो
बेबस एक घरौंदा है।
जिन साँसों के हिस्से पालनहार नहीं होता होगा,
कैसे कटती होंगीं उनकी अकथ गुलामी की रस्में?

मरना कौन चाहता है? 
किसे अच्छा लगता है 
जीना, बनकर एक लाश। 
करने से पहले आत्महत्या, 
करना पड़ता है संधर्ष, 
खुद से। 
पर पाने से पहले 
रेशमी दुनिया, खौलते पानी में डाल देते है 

सारे शरीफ
कुछ
करने कहने लिखने
वाले  जानते हैं
‘उलूक’ बेशर्म है
कुछ नहीं कहता है
उसे जरा सा भी शर्म नहीं है

जरूरत
किस बात की
कहाँ पर है

भगवन
ध्यान मत दो
कुछ नहीं करो
कुछ नहीं लिखो

कुछ नहीं को
मिलता है सम्मान
कुछ तो महसूस करो
.....
बाकी है बहुत कुछ
कुछ कल के लिए छोड़ देते हैं
सादर

Saturday, November 23, 2019

184.."मतलब? यह असाधारण मौत कैसी होती है भला?"

शुरुआत एक अजीबो गरीब विज्ञापन से

अजब गजब विज्ञापन ...विकास नैनवाल 'अंजान' 

राह चलते चलते आपको अचानक से कभी कभार ऐसा विज्ञापन दिख जाता है जो बरबस ही आपकी नज़र अपनी तरफ आकर्षित कर देता है। ऐसा कुछ मेरे साथ कुछ दिन पहले हुआ। मैं बाइक के पीछे बैठा अपने गन्तव्य की तरफ बढ़ रहा था कि एक ऑटोरिक्शा मेरे बगल से गुजरने लगा। सामान्य सा दिखने वाला यह ऑटोरिक्शा उधर मौजूद कई ऑटोरिक्शों की तरह था। अगर आप महानगर में रहते हैं तो इतना तो जानते होंगे कि ऑटोरिक्शा के पीछे का हिस्सा अक्सर विज्ञापनों के लिए इस्तेमाल होता है

अब सादर अभिवादन स्वीकारें..
चलिए आगे बढ़ते हैं.....


यो कहानी भी रोचक है..दो मरने वाले को एक नवजात बच्ची जीवनदान देती है.. पढ़िए इस तरह....
कुछ मीटर पर...ज़िंदगी! ...मोहित शर्मा

तृप्ति और कुंदन वापस उस जीवन, उन संघर्षों में एक नई उम्मीद के साथ वापस लौटे और अपने सकारात्मक नज़रिए से जीवन को बेहतर बनाने लगे। अब जब भी वे परेशान होते तो अपनी बेटी का चेहरा देखकर सब भूल जाते। ऐसा नहीं था कि उन्हें किसी जादू से ज़िंदगी में खुशियों की चाभी मिल गई थी, बस अब वे ज़िंदगी से बचते नहीं थे बल्कि उससे लड़ते थे।

उस दिन कुंदन और तृप्ति ने उस बच्ची को नहीं बचाया था...उस बच्ची ने बस वहाँ मौजूद होकर उन दोनों की जान बचाई थी।

बीता कल यादों में सिमटा ...आशा सक्सेना

बीता कल यादों में सिमटा
आनेवाले कल का कोई पता नहीं
तब किया वर्तमान में जीने का विचार
हर पल है वेश कीमती |
वर्तमान भी बहुत बड़ा है
जाने कब क्या हो जाए


इश्‍तेहार ....संजय भास्कर

इश्‍तेहार
चाहे किसी कंपनी का हो या
किसी स्कूल,दुकान का
उसे पढ़ना चाहिए
क्योंकि उसे पढ़ने में कोई ड़र नहीं
समय ही ऐसा हो गया है
सब काम ही इश्‍तेहारो से होते है

विचार आते हैं ...गजानन माधव मुक्तिबोध

विचार आते हैं
लिखते समय नहीं
बोझ ढोते वक़्त पीठ पर
सिर पर उठाते समय भार
परिश्रम करते समय
चांद उगता है व
पानी में झलमलाने लगता है
हृदय के पानी में 

आशा है हम कल फिर मिलेंगे
सादर..









Friday, November 22, 2019

183 ..मुहावरों की दुनिया

सादर अभिवादन...
ज़ियादा दिन नहीं न बचे हैं
दिसम्बर बस आने का कुलबुला रहा है
आने दो आएगा और चला भी जाएगा
हमें क्या.....

अपन तो आज की रचनाएँ देखते हैं.....

पढ़ा-लिखा इंसान भी अंधविश्वासी क्यों और कैसे बनता हैं?
पढ़ा-लिखा इंसान भी अंधविश्वासी क्यों और कैसे बनता हैं?
पढ़े-लिखे इंसानों का भी अंधविश्वासी होने का कारण उनकी परवरिश में छिपा हुआ हैं। बचपन में अपने परिवार और आसपास के माहौल में इंसान जो कुछ देखता हैं, वो सब बातें उसके अवचेतन मन में गहरे तक बैठ जाती हैं। बचपन की इन्हीं सही-गलत बातों को इंसान सिर्फ़ और सिर्फ़ सही मानने लगता हैं। जब इंसान बड़ा होकर पढ़ता-लिखता हैं, तो वो दुविधाग्रस्त हो जाता हैं कि सही क्या हैं और गलत क्या हैं! बचपन में वो देखता हैं कि घर का कोई भी सदस्य जब घर से बाहर जा रहा हो और ऐसे में यदि किसी को छींक आ जाएं, तो इसे अपशकुन माना जाता हैं।

टुकड़ा टुकड़ा आसमान ....

अपने नीरस जीवन की शुष्कता को मिटाने के लिये
मैंने बूँद बूँद अमृत जुटा उसे
अभिसिंचित करने की कोशिश की थी
तुमने उस कलश को ही पद प्रहार से
लुढ़का कर गिरा क्यों दिया माँ ?
क्या सिर्फ इसलिये कि मैं एक बेटी हूँ ?





मुहावरों का प्रयोग .....

"कहीं की ईंट,कहीं का रोड़ा "
"भानुमति ने कुनबा जोड़ा ।"
सबके "हाथ पाँव फूले" हैं,
दोस्ती में "आँखे फेरे "है।
"फूटी आंख नही सुहाते "
वो अब "आँखों के तारें" है ।
कब कौन किस पर" आंखे दिखाये"
कब कौन कहाँ से "नौ दो ग्यारह हो जाये" ।


और 'बाइनाक्युलर' भी ...

पड़ता नहीं फ़र्क उम्र से
बारह की हो या फिर
हो कोई बहत्तर की
हो उनकी छोटी बहन-सी
या युवा पत्नी की जैसी
या फिर उनकी अम्मा की उम्र की
प्राथमिक स्कूल जाती हुई
नाबालिग लड़कियाँ हों या
नगर-निगम वाली औरतें


दर्दे दिल ....

जिनकी ख़्वाहिश में गुमगश्ता हुये
उस राजा की  कोई और  रानी  है

रात कटती है  यूँ  रोते च़रागों की
ज्यों बाती ने ख़ुदकुशी की ठानी है


खबर ....

मंत्रीजी का जवाब सुनकर सहायक आश्चर्यचकित रह गया । वो मन ही मन सोच रहा था, ये वही पुलिस है जिसकी गुंडों से मुठभेड़ होती है तो बंदूक से गोली नहीं निकलती मुँह से ही ठाँय-ठाँय की आवाज निकालकर काम चलाना पड़ता है ।

‘सुनो!  ये किसानों वाली न्यूज टीवी पर आ रही है क्या?’ मंत्रीजी ने सहायक से पूछा ।

‘नहीं, किसी भी न्यूज चैनल पर नहीं आ रही सिर्फ सोशल मीडिया पर ही दिखाई दे रही है । लगता है हुजूर ने सभी चैनल वालों का मुँह बंद कर दिया है, इसीलिए पाकिस्तान - पाकिस्तान खेल रहे हैं सभी चैनल वाले ।’ सहायक पिलपिला सा मुँह बनाकर चमचे वाले लहजे में धीरे से बोल गया ।