Saturday, April 27, 2019

37...घर हमारा आपको बहुत ही स्वच्छ मिलेगा

सादर अभिवादन
आ गई 
इस अप्रैल की अंतिम प्रस्तुति
कहना-सुनना क्या है
जितना कहें..और
जितना सुने..
कम ही है..
देखिए इस सप्ताह की हलचल....


तुम थे तो ....

तुम थे तो,
जागे थे नींद से ये एहसास,
धड़कन थी कुछ खास,
ठहरी सी थी साँस,
आँखों नें,
देखे थे कितने ही ख्वाब,
व्याकुल था मन,
व्याप गई थी इक खामोशी,
न जाने ये,
थी किसकी सरगोशी,
तन्हाई में,
तेरी ही यादों के थे पल!




किताबें झाँकती हैं ........ गुलज़ार
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किताबें झाँकती है बंद अलमारी के शीशों से
बड़ी हसरत से तकती है
महीनों अब मुलाक़ातें नही होती
जो शामें उनकी सोहबत में कटा करती थी 
अब अक्सर गुज़र जाती है कम्प्यूटर के परदे पर 
बड़ी बैचेन रहती है किताबें 
उन्हें अब नींद में चलने की आदत हो गई है


जादुई चिराग ....रेखा जोशी

अलादीन का जादुई चिराग कहीं खो गया ,कहाँ खो गया,मालूम नहीं कब से खोज रहा था बेचारा अलादीन ,कभी अलमारी में तो कभी बक्से में कभी पलंग के नीचे तो कभी पलंग के उपर ,सारा घर उल्ट पुलट कर रख दिया ,लेकिन जादुई चिराग नदारद ,उसका कुछ भी अता पता नहीं मिल पा रहा था आखिर गया तो कहाँ गया, धरती निगल गई या आसमान खा गया ,कहां रख कर वह भूल गया |”शायद उसका वह जादुई चिराग उसके किसी मित्र या किसी रिश्तेदार के यहाँ भूल से छूट गया है”|यह सोच वह अपने घर से बाहर निकल अपने परिचितों के घरों में उस जादुई चिराग की खोज में निकल पड़ा ,लेकिन सब जगह से उसे निराशा ही हाथ लगी

आदतन रो लेता हूँ अब ...अमित 'मौन'

दिन  दुश्मन  हुए  अब
रातें  बड़ा  सताती  हैं
करवटें  बदल  लेता हूँ
जब नींद नही आती है

वक़्त  बेवक़्त  ये  यादें
बिछड़ों से मिला लाती हैं
समझाया दिल को बहुत मगर
ये आँखें कहाँ  समझ पाती हैं

चलते-चलते एक खबर

सुमित्रानन्दन पंत 
के हिमालय 
देख देख 
कर भावुक 
हो जाते हैं

यहाँ की 
आबो हवा 
से ही लोग 
पैदा होते 
ही योगी 
हो जाते है

छोटी छोटी 
चीजें फिर 
किसी को 
प्रभावित नहीं 
करती यहाँ
इति शुभम्
यशोदा





Saturday, April 20, 2019

36....अपनी कब्र का पेटेंट 2019 के चुनावों से पहले तुरन्त करा बिल्कुल नया है ये आईडिया

सादर अभिवादन
तकलीफे जब आती है
हर तरफ से आती है
कुछ अकड़ कर आती है
कुछ आते ही जकड़ लेती है
बिलकुल अजगर के माफिक
चलिए अकड़न-जकड़न के फेर में न पड़िए
देखिए इस सप्ताह क्या है....


जियो और ​जीने दो.....

प्राचीन काल में जैन तीर्थंकरों ने अहिंसा को केंद्र में रखकर अपने कर्तव्यों का निर्धारण एवं निर्वाह किया। अंतिम तीर्थंकर भगवान् महावीर की 17 अप्रैल को जयन्ती है। भगवान महावीर ने अहिंसा को जैन धर्म का आधार बनाया। उन्होंने तत्कालीन हिन्दू समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था का विरोध किया और सबको एक समान मानने पर बल दिया ।उन्होंने " जियो और ​जीने दो "के सिद्धान्त पर जोर दिया। सबको एक समान नजर में देखने वाले भगवान महावीर अहिंसा और अपरिग्रह के साक्षात मूर्ति थें । वे किसी को भी कोई दु:ख नहीं देना चाहते थें।
भगवान महावीर ने अहिंसा, तप, संयम, पाँच महाव्रत, पाँच समिति, तीन गुप्ती, अनेकान्त, अपरिग्रह एवं आत्मवाद का संदेश दिया। उन्होंने यज्ञ के नाम पर होने वाली पशु-पक्षी एवं नर की बाली का विरोध किया । सभी जाती और धर्म के लोगों  को धर्म पालन का अधिकार बतलाया। उन्होंने उस समय जाती-पाति और लिंग भेद को मिटाने के लिए उपदेश दिये।




अजगर - ए - ' आजम '......

फूलकर फैल गया है
फुंफकारता अब।
अजगर - ए - ' आजम '!
.......... ..........
श्श.. श्श... श्श....
सांप सूंघ रहा है
सर्प संप्रदाय को अब!

आप बदलो-जग बदलेगा.....

"हमलोग क्या कर सकते हैं?"
"आप ही लोग तो कर सकते हैं... , अब समय आ गया है कि बुद्धिजीवियों को पुनः राजनीति में आना चाहिए। मतदान करने की प्रतिशत ज्यादा से ज्यादा हो।"


मां .....

पथ अंधेरे लग रहे मुझको सभी
मां मेरी रहबर रही तू ज्योत सी

ख्वाहिशें खिलती थी तेरी गोद में
रिक्त लेकिन अब है मेरी अंजुरी

तू अथक ही जागती थी रात दिन
ख्वाब मेरे सींचे तूने हर घड़ी


अनुज प्रेरणा ....

कदम बढ़ाकर अब जल्दी - जल्दी
मंजिल अपनी दूर बहुत।
रामपुर है दूर बहुत तो,
लखनपुर भी दूर बहुत।
तेज चाल से चल मेरे भैया,
मैं भी हूँ तेरे पीछे।

पत्ते उड़ा दिए पुरवा बन ... .....

छूट गया दुःख भेद, हृदय से
 गीत विराग सरस गाया,
खनक उठी अनजानी कोई
कदमों में ताल समाया !

खबर-ए - उलूकिस्तान

अखबार के 
चौथे पन्ने 
यानी 
बस कस्बे 
की खबर 
हो जा 
छ्प जा 
तर जा 

बिना कोई 
गुल छिपाये 
गुल खिलाये 
घर के अन्दर 

मुख्य पृष्ठ में 
छपने का 
भूल जा 
.....
अब बस
यशोदा....














Saturday, April 13, 2019

35....थोड़ा कुछ लिखना ,थोड़ा कुछ बनाना, हो जाता है अब

सादर अभिवादन
साप्ताहिक मुखरित मौन
सच मे अब मौन नहीं रहा
मुखरित होने लगा...
मतदान की प्रक्रिया शुरू...
यानि मत पड़ने शुरू...

समय है अभी ....
वक्त नहीं है उतावलेपन का
शान्त रहिए और .....पढ़िए...


सुबह हो गई है  ....
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सुबह हो गई है
मैं कह रहा हूँ सुबह हो गई है
मगर क्या हो गया है तुम्हें कि तुम सुनते नहीं हो
अपनी दरिद्र लालटेनें बार-बार उकसाते हुए
मुस्काते चल रहे हो
मानो क्षितिज पर सूरज नहीं तुम जल रहे हो
और प्रकाश लोगों को तुमसे मिल रहा है

जब जागेगा भीतर कोई .....

जीवन एक पाठशाला है, जाने कितनी बार हम ये शब्द सुनते हैं. लेकिन इस पाठशाला का शिक्षक कौन है, बिना शिक्षक के कोई विद्यार्थी चाहे वह कितना ही होशियार हो, नहीं पढ़ सकता. जीवन की इस पाठशाला का शिक्षक हमारी चेतना है, हमारा जमीर. यदि वह स्वयं ही सोया हुआ है तो जीवन लाख पाठ पढ़ाये हमारी समझ में कुछ नहीं आता.

मैं पुकारती हूँ तुम्हें !! माँ

मैं पुकारती हूँ तुम्हे
पर वो पुकारना शुन्य में विलिन हो जाता है
जब भी दर्द में होती हूँ
किसी को न दिखने वाले मेरे आँसू
छलकना चाहते है तेरे आगोश में
पर वो जज्ब नहीं हो पाते तेरे आँचल में
और भटकते रहते है मुझमें ही
तलाशते रहते है एक कोना अंधेरा सा 
एक काँधा अपना सा,




चांदनी चौक का गौरी शंकर मंदिर एक ''कॉस्मिक पिलर''

दिल्ली का चांदनी चौक, जो देश के प्रमुख और पुराने बाजारों में से एक तो है ही, वहां की इमारतों, भवनों व पूजा स्थलों का भी अपना समृद्ध इतिहास है। ऐसा ही एक शिव मंदिर, जो गौरी-शंकर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है, लाल किले के सामने बाजार की शुरुआत पर दिगंबर जैन लाल मंदिर और गुरुद्वारा शीशगंज के बीच स्थित है। माना जाता है कि तकरीबन 800 साल पुराना यह मंदिर शैव सम्प्रदाय के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है।  इस मंदिर को ''कॉस्मिक पिलर'' या पूरे ब्रह्मांड का केंद्र माना जाता है। इसका निर्माण शिव  जी के परम भक्त  एक मराठा सैनिक आपा गंगाधर द्वारा करवाया गया था। कहते हैं कि एक युद्ध में उनके प्राणों पर बन आने पर उन्होंने भगवान शिव से अपने प्राणों की रक्षा की विनती की थी। प्रभू की कृपा से जब उनकी जान बच गयी तो पूर्णतया स्वस्थ होने पर उन्होंने 1761 में इस मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर के गर्भ गृह में रजत कलश के नीचे भूरे रंग के शिवलिंग के पास ही स्वर्णाभूषणों से सज्जित पूरा शिव परिवार भी स्थापित है। यह देवस्थल शिवजी के अर्द्धनारीश्वर स्वरुप को समर्पित है।

पत्थर को कभी सूरज भी कोई पिघलाया है ...

वक़्त के खेल-ओ-खिलवाड़ के अक्श हज़ार-हज़ार 
कौन कहे, कांटे बिछाए कहां गुल को खिलाया है 

शायर क़ोशिश जारी रख, रह वही श्यामल ही बनकर 
कब पत्थर को कभी सूरज भी कोई पिघलाया है

खबरें उलूकिस्तान से

कोशिश 
करके बहुत 
अपने को 
रोका जाता है 

सब कुछ 
ना कह कर 
थोड़ा सा 
इशारे के 
लिये ही तो 
कहा जाता है 

यही थोड़ा 
सा कहना 
और बनाना 
अब देशद्रोह 
हो जाता है 

आज्ञा दें
यशोदा...












Saturday, April 6, 2019

34...पानी रे पानी लिख तो सही तू भी कभी तो कुछ पानी

सादर अभिवादन
गुड़ी पड़वा व नववर्ष की शुभकामनाएँ..
गर्मी बढ़ रही है
बेतहाशा...कारण जो भी हो
खतरनाक है बढ़ना
गर्मी का....
त्राहि-त्राहि मची हुई है
पानी की.....और दूसरी ओर बहे जा रही है
शराब पानी की तरह...हमने भी झटकी

एक बोतल...देखा तो एक कीड़ा था मरा हुआ
निष्कर्ष निकला कि...
शराब कीड़े का खात्मा कर देती है
चलिए जो भी हो...रचनाओं की ओर चलें...


स्वांग .....

हैं रातें रंगीन जिनकी
वे  वाह-वाह किया करते हैं
किसी की उदासी पर क्यों ?
वे  मुस्कुराया  करते हैं

सम्वेदनाओं की झोली उनकी  
फिर भी है  क्यों खाली  ?
शब्दों  की   चाशनी में
जो जहर पिलाया करते हैं


अपनी राह .....

ये रास्ते है अदब के 
कश्ती मोड़ लो , 
माझी किसी और 
साहिल पे चलो । 
हम है नही खुदा 
न है खास ही , 
राहे - तलब अपनी 
कुछ है और ही । 


इच्छाओं का घर ....
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इच्छाएं हैं भरपूर, जोरदार और कुछ मजबूर.
पर किसने दी हैं ये इच्छाएं?
क्या पिछले जनमों से चल कर आयीं
या शायद फिर प्रभु ने ही हैं मन में समाईं?

पर क्यों हैं और क्या हैं ये इच्छाएं?


शायद .....

है शब्द  बहुत सामान्य सा
पर करतब इसके बहुत बड़े
जब भी उपयोग में लाया जाता
कुछ नया रंग दिखलाता
किन्तु परन्तु की उलझने
सदा  अपने साथ लाता
जब भी शायद का उपयोग होता
वह मन में बिछे उलझनों के जाल में
ऐसा फंसता जैसे
मीन बिन जल के तड़पती

चलते-चलते हम पहुंचे
उलूकिस्तान.... बहुतायत दिखी पानी की


मतलब 
एक 
परिभाषा 
अनुरूप ही 
होना चाहिये 
पानी 

जैसे 
पानी में रसायन 
रासायनिक पानी 
पानी का मंत्री पानी 
पानी का प्रधानमंत्री पानी 

गंगा का पानी 
बिना कपड़े का नंगा पानी 

आज्ञा दें
यशोदा ..