Tuesday, June 30, 2020

401..एहसास है....एक मोहब्बत का

सादर अभिवादन स्वीकार करें..
छःमाही परीक्षा आज सम्पन्न हो रही है
परिणाम आज के अखबार में प्रकाशित
हो गया है..आप देख लिए होंगे..
आज की मिली-जुली रचनाएँ...


प्रथम प्रवेश
चीन को ललकार ....

आँख दिखाना छोड़ो हमको, नहीं किसी से डरते हैं ।
हम भारत के वीर सिपाही, कफन बाँध कर लड़ते हैं ।।

एक कदम तुम आगे आओ, पैर काट कर रख देंगे।
वतन बचाने के खातिर हम,इतिहास नया लिख देंगे।।



जीत ...
Hindi women story | maa baap aur beti | माँ बाप और बेटी
धरा धारा माँ पाषाण दिखती है।
सबक जीवन का सिखलाती है।
बचपन के ज़माने को जाने ना दें,
उसकी दुआ ही दंश से लड़ती है।


पानी सी होती हैं स्त्रियां ...

पानी सी होती हैं स्त्रियाँ
हर खाली स्थान बड़ी सरलता से
अपने वजूद से भर देती हैं
बगैर किसी आडंबर के
बगैर किसी अतिरंजना के..
आश्चर्य ये
कि जिस रंग का अभाव हो 
उसी रंग में रंग जाती हैं ..


ये मन शरद का फूल है ! ....

कायी-कायी सारी सवारली, मन भीत भी निखारली
अब बैठे - बैठे ये सोचूँ  मैं, रंग गेरुया या हरा करूँ।


मुझे 'श्याम' से ही आस है, मैं उससे ही तो 'ज़ोया' हूँ 
उसे मोरपँख से प्रीत है, तो मैं खुद को ही हरा करूं।  


दशमूलक्वाथ : समस्याएँ अनेक उपाय सिर्फ एक .....

ग्रामीण क्षेत्रों में प्रथम औषधि के रुप में प्रचलित दस विभिन्न जड़ी-बूटियों के मेल से निर्मित दशमूलक्वाथ शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता का विकास करने के साथ ही अनेकों छोटी-बड़ी समस्याओं के निवारण में निर्विवाद रुप से उपयोगी होता है । दशमूलक्वाथ दशमूल में मिश्रीत औषधियां *बेल**, श्योनाक, गंभारी, पाढ़ल, अरलू, सरिवन, पिठवन, बड़ी कटेरी, **छोटी कटेरी *और*गिलोय* के मिश्रण से बनती हैं और प्रायः इसका उपयोग पसिद्ध आयुर्वेदिक कम्पनियों द्वारा निर्मित काढे (क्वाथ) के रुप में अधिक किया जाता है ।

और अंत में मैं स्वयं
एहसास है....एक मोहब्बत का

एहसास है....एक
मोहब्बत का  , 
महसूस किया जा सकता है
जिसे रूह से.... 
यह उस ईश्वर
की तरह है,.... जो
कण-कण में 
विद्यमान है
...
बस
सादर


Monday, June 29, 2020

400 ..कफ़न कह लो चिता बोलो, धरे सब हस्त दुनिया है

सादर अभिवादन
बस एक दिन और
जून का
फिर 2020 का
आधा बाकी रहेगा
जो भी होगा सब ठीक होगा
चलिए चलें.....


सरहद ....श्वेता सिन्हा

सोचती हूँ अक्सर 
सरहदों की
बंजर,बर्फीली,रेतीली,
उबड़-खाबड़,
निर्जन ज़मीनों पर
जहाँ साँसें कठिनाई से
ली जाती हैं वहाँ कैसे
रोपी जा सकती हैं नफ़रत?



सब पीड़ा से क्षुधा बड़ी है
घर भूमि परिवार छुड़ाया
माता पिता सखा सब छूटे
माटी का मोह भुलाया।
अपनी जड़ें उखाड़ी पौध
स्वाभिमान पर घात हुई।।


रिश्ता निभाने का साधन मान लिया है 
मोबाइल को, आज की पीढ़ी ने 
न कागज की छुअन 
न कलम से दिल का हाल लिखना 
जिसमें सच्चाई झलकती थी 


पहले तो हम छान आए ख़ाक सारे शहर की 
तब कहीं जा कर खुला उसका मकाँ है सामने 

तुम्हारे शहर में तोहमत है ज़िंदा रहना भी 
जिन्हें अज़ीज़ थीं जानें वो मरते जाते हैं 



कुछ बातें ,कई बार
बन जाती हैं 
वजूद की अभिन्न 
कर्ण के ...
कवच-कुण्डल सरीखी
अलग होने के नाम पर
करती हैं तन और मन 
दोनों ही छलनी


न सिहरन बस रही तेरी,
यहाँ तो त्रस्त दुनिया है।

कफ़न कह लो चिता बोलो,
धरे सब हस्त दुनिया है।

न लिख रजनीश तू कुछ भी,
सभी से पस्त दुनिया है।


वह देह से एक औरत थी
उसने कहा पत्नी है मेरी 
वह बच्चे-सी मासूम थी 
उसने कहा बेअक्ल है यह
अब वह स्वयं को तरासने लगी
उसने उसे रिश्तों से ठग लिया 
वह मेहनत की भट्टी में तपने लगी 
...
आज बस
कल फिर
सादर

Sunday, June 28, 2020

399..कुत्ते का भौंकना भी सब की समझ में नहीं आता है पुत्र

नमस्कार..
कल बहना आई थी
लिख-पढ़ कर गई
काफी दिनों के बाद ब्लॉग जगत
में वापसी हुई है..
आभार..भूली नहीं है वो

चलिए आज की रचनाओं की ओर ...
माँ-बाप का दुत्कारत हैं
औ कूकुर-बिलार दुलारत हैं
यहि मेर पुतवै पुरखन का
नरक से तारत है
ड्यौढ़ी दरकावत औ
ढबरी बुतावत है


फिर ऐसे ही निर्जीव सा
बैठा हैं तू  भला क्यों  ?
बना कोई प्रयोजन अहो!
निकाल कुछ सार अहो!
फिर  किस्मत चमकेगी तेरी


कैसा दुर्भाग्य ? तेरा भाग्य 
सर्वोदय की कल्पना , 
बुनता हुआ विचार, 
स्वर्णिम कल्पना को आकार देता , 
खंडित करता , फिर 
उधेड़ देता लोगों का विश्वास , 
नवोदय का आधार 


क्षीण होती, परछाईंयाँ,
डूबते सूरज,
दूर होते, रौशनी के किनारे,
तुम्हारे जाने,
फिर, लौट न आने,
के मध्य!
छूटता हुआ, भरोसा,
बोझिल मन,
और ढ़लती हुई,
उम्मीद की,
किरण!


गगन से बरसा मौत अगन का
तड़ित समाधि बना निर्मम सा
छीन लिया कुंकुम की आभा
रूप सुहागन की सुख शोभा.
शाप ताप की ज्वाला बनकर
कुपित प्रलय दर्शाया भू पर



मैंने
बच्चे को
अपने 
कुत्ते का
उदाहरण 
देकर बताया 

क्यों
भौंकता रहता है 
बहुत बहुत
देर तक 
कभी कभी

इस पर 
क्या
उसने कभी 
अपना
दिमाग लगाया है 

क्या
उसका भौंकना 
कभी
किसी के समझ
में 
थोड़ा सा भी
आ पाया है 
....
इति शुभम्
सादर

Saturday, June 27, 2020

398..हमको गंदगी से परे वो नगर चाहिए

आज का खास..
आज हेलेन केलर का जन्म दिवस है
हेलेन एडम्स केलर

दृष्टि तथा श्रवण शक्ति से बाधित
अदम्य उत्साही व साहसी महिला
नमन,वन्दन

........
चमत्कार को नमस्कार..
घोर तआज़्ज़ुब..
आज मैं यहाँ हूँ..
क्यों हूँ और कैसे आई..
चलिए आ ही गई हूँ तो
ये पढ़िए..

ना ही रहने को आलिशान घर चाहिए।
ना ही बसने को बड़ा-सा शहर  चाहिए।

जिसकी गलियों में कूड़े की ढेर न हो,
हमको गंदगी से परे वो नगर चाहिए।



मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ
वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ

एक जंगल है तेरी आँखों में
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ




काली सियाह रात के अँधेरे में दूर तक जाती सड़क
सड़क के किनारे-किनारे ऊँचे घने सियाह पेड़
तेज़ हवा के थपेड़ों से जोर शोर से झूमते-घुमड़ते
इक पल को मुझे लगा के वो मुझे कुछ बताना चाहते हों 
जैसे दिनों से इक राज़  हवा ने सीने में दबाया हो
सो ये पेड़ चाहते हो बताना मुझे वो गहरा राज़ 
मैं नज़रे गढ़ा देर तक उन्हें देखती रही,सुनती रही



शुष्क साँसे थम रही हैं, शब्दों का तुम पान दो
भींच कर छाती से मुझको, अधरों पे मेरा नाम लो
किस घड़ी ये साँस छूटे, देह हो पार्थिव मेरी
पुष्प लेकर अंजलि में, शूल का आभास करने
प्रेम का रिश्ता निभाए, तुमको आना ही पड़ेगा



सोच रहा था एक बात रमैया की कही
जीवन में नशा न किया तो क्या किया
बार बार गूँज रहे थे शब्द उसके कानों में  
पर भूला नुक्सान कितना होगा तन मन  को |
अपना आपा खोकर सड़क पर झूमते झामते
गिरते पड़ते लोगों को आए दिन देखता था
..........
बस
हमारी परी की क्लास शुरु होने वाली है
सादर







Friday, June 26, 2020

397 ..मैं चखने लगता हूँ ,तुम्हारे वचनामृत को

नया जमूरा
जमूरा नहीं जमूरी कहिए
कल आएगी वो
अपनी प्रस्तुति लेकर
प्रतीक्षा करिएगा
...
आज की रचनाएँ..

दुग्ध धार सी बहती विमल शुभ्र  सरिते ,
उज्ज्वल कोमल निर्मल क्षीर नीर सरिते ।

कैसे तू राह बनाती कंटक कंकर पाथर में,
चलती बढती निरबाध निरंतर मस्ती में ।


कशिश!
मचलती सी जुंबिश,
लिए जाती हो, कहीं दूर!
क्षितिज की ओर,
प्रारब्ध या अंत,
एक छद्म,
पलते अन्तराल,
यूँ न काश!



क्यों न उलझूँ
बेवजह भला!
तुम्हारी डाँट से ,
तृप्ति जो मिलती है मुझे।
पता है, क्यों?
माँ दिखती है,
तुममें।


तुम मेरे इस दिल को पागल मत कहना 
अपना बच्चा सब को प्यारा होता है 

तुम जाओ पर यादों को तो रहने दो 
यादों का भी एक सहारा होता है 


-श्रीकांत सौरभ
काका उनके साथ ही खेत में उपलाए सूखे घास को 
छानकर किनारे फेंक रहे थे। 
अचानक से सुखाड़ी बहु ने कादो 
उठाकर उनके बनियान पर फेंका और जबर्दस्त ठहाका छूट पड़ा।

इसी बीच सभी कोई जोर-जोर से गाने लगीं, 
"खेतवा में धीरे-धीरे हरवा चलइहे हरवहवा, 
गिरहत मिलले मुंहजोर, 
नये बाडे़ हरवा, 
नये रे हरवहवा, 
नये बाड़े हरवा के कोर..!"
...
आज बस
कल की कल
सादर

Thursday, June 25, 2020

396 ..बनाती कोई छवि वह उदास औरत...

स्नेहिल अभिनन्दन
जा रहा है बिचारा जून
आँखें पोछते-पोछते
सारे त्योहार आने को आतुर हैं
सहमी सी हैं नारी जाति
कैसे मनेगा हल छठ 
और कैसे मनेगी तीज
कैसे आएगा कान्हा
और विघ्नविनायक
का क्या होगा..
...
मेरा तो रोना सम्पन्न हुआ
अब रचनाएँ देखें....

इष्टदेव के समक्ष
डबडबायी आँखों से
निर्निमेष ताकती
अधजली माचिस की तीलियों
बुझी बातियों से खेलती
बेध्यानी में,
मंत्रहीन,निःशब्द
तुलसी  सींचती
दीये की जलती लौ में
देर तक बनाती कोई छवि
वह उदास औरत...।


एक तेरी खुशी के ख़ातिर हम
नंगे पैर, दौड़ चले आते थे ।
एक तू है, जिसे हमारे आने की,
सुना है घंटों ख़बर नहीं मिलती ।


संध्या और चन्द्रमा का
आकर्षण और विकर्षण 
अनुराग और वीतराग का 
यह खेल सदियों से 
इसी तरह
चल रहा है ,
सुख के समय में
संयत रहने का और
दुःख के समय में धैर्य
धारण करने का सन्देश
हमें दे रहा है !


प्रिय वर्तमान,
जब यह चिट्ठी तुम्हारे हाथ में होगी,
मैं तुमसे बहुत दूर जा चुका होऊँगा
तुम्हारे पास उस समय इतना वक़्त भी नहीं होगा 
कि तुम मेरे बारे में  विचार कर सको 
तुम्हें भविष्य की फ़िक्र है, होनी भी चाहिए


वॉन गॉग हर खत में
अपने भाई थियो को लिखता था
मुझ पर भरोसा रखना
एक सदी से ज़्यादा हो गए हैं


नीव उठाते वक़्त ही 
कुछ पत्थर थे कम , 
तभी हिलने लगा 
निर्मित स्वप्न निकेतन । 
उभर उठी दरारे भी व 
बिखर गये कण -कण ,
...
आज बस
कल फिर
सादर..

Wednesday, June 24, 2020

395 ...फ़िरोज़ा रंग की शाँत ठहरी झील

नमस्कार
कुछ शांत है शहर
भयातुर है न शायद इसीलिए
एक छोड़ दूसरी गली
सील हो रही है
बेवड़ों को कोई असर नहीं
बस तलाश रहे है ..
आज का तो हो गया
कल के लिए शायद
कोई 
जुगाड़.,....
आज की रचनाएं....


मत लौटना ...ओंकार केडिया

बेटे,
बहुत राह देखी तुम्हारी,
बहुत याद किया तुम्हें,
अब आओ, तो यहीं रहना,
खेत जोत लेना अपना,
छोटा-मोटा धंधा कर लेना,
रूखा-सूखा खा लेना,
जैसे भी हो, जी लेना।

आँखें यूहं स्थिर हो गयी थी जैसे 
खुद में समा लेना चाहती हों  इस  दृश्य को।  
फ़िरोज़ा रंग  की शाँत ठहरी झील। 
मैंने आजतक कभी ऐसा रंग नहीं देखा था 
पानी का- फ़िरोज़ा, दूधिया- फ़िरोज़ा । 
झील शाँत तो थी मगर किनारों में 
पानी हलकी हलकी थपेड़े मार के 
अपने जीवित होने का संकेत दे रहा था।


सच पूछो तो,
ज़िन्दगी रेत सी हो गई है!
दिन ब दिन फिसलती जा रही है,
जितना समेटने की कोशिश कर रहा हूँ,
उतना ही फिसलती जा रही है |


नभ के दामन से कल इक सितारा गिरा...
माँ के आँचल का सूना हुआ फिर सिरा...
माँ को फ़ुर्सत ना थी पर दो आँसू गिरे...
भाई तकते रहे बस खड़े ही खड़े...

वो भी अंतिम सफ़र को बिलखते चला...
इतना रोता रहा की वो खुद बुझ गया...
माँ भी खाली जगह को यूँ तकती रही...
मोती यादों के चुन चुन के रखती रही...


जहाँ किया मन हवस मिटा ली...
नाम बन गया है बस गाली...
झुंड बना कर घूम रहे हैं....
लोभी अवसर ढूँढ रहे हैं...

मन नंगा तन पे लत्ते हैं...
हाँ भैया हम तो कुत्ते हैं...


मिन्नतें रोटी की वो करता रहा...
मैं भी मून्दे आँख बस चलता रहा...

आस में बादल की, धरती मर गयी...
फिर वहाँ मौसम सुना अच्छा रहा...

दूर था धरती का बेटा, माँ से फिर...
वो हवा में देर तक लटका रहा...
...
आज की अंतिम तीन रचनाएँ
एक बंद ब्लॉग से है
सादर..


Tuesday, June 23, 2020

394 ..चंद्रमा सुना है एक ही चीज को दिखा कर एक को कवि एक को पागल बनाता है

सादर अभिवादन

आज रथ दूज है
बारिश हो रही है रात से
मानसून की बारिश का
आनन्द ही अलग रहता है
..
देखिए आज की रचनाएँ..

सोचती हूँ 
उसकी नींद का 
ख्वाब बन जाऊं...
उसे वैसे ही दिक् करूँ 
जैसे वो मुझे करता रहा है...
ख्वाब का यह ख्याल भी कितना सुंदर है.

एहसासों का समंदर है 
भावनाओं की कश्ती है 
ख्वाबों का साहिल है 
धुन्ध में भी आँखों में मस्ती है। 

लिख दूँ तो हासिल है 
छुपा लूँ तो कातिल है। 


स्वयं की सार्थकता दर्शाते 
पंखविहीन वे उड़ान भरना चाहते हैं।   
दुविधा में फिरते मारे-मारे   
बीनते  रुखी-सूखी डाले समय की 
सभ्यता के जंगल में विचरते
 लिबास बदलते ऐसे बहुरुपिये बहुतेरे हैं। 


हम से पूछो तो ज़ुल्म बेहतर है 
इन हसीनों की मेहरबानी से 

और भी क्या क़यामत आएगी 
पूछना है तिरी जवानी से 

“एक होता है 
साहित्‍यकार और 
एक होती है 
साहित्‍य की दुकान। 
अब चूंकि मैं ज्‍योतिषी हूं तो 
ज्‍योतिष की बात भी कर लेते हैं। 
साहित्‍यकारों में एक होते हैं कवि, 
मैंने आमतौर पर कवियों का 
चंद्रमा खराब ही देखा है। 
बारहवें भाव में चंद्रमा हो तो 
जातक एक कॉपी छिपाकर रखता है, 
जिसमें कविताएं भी लिखता है”।
...
बस
कल फिर
सादर



Monday, June 22, 2020

393..मृत्यु अथिति सी आती है

थ्री नाईन थ्री
अस्त्र-सस्त्र नहीं
आज के अंक का नम्बर है

सरहदों से तुम्हारा आना
पलाश के फूल की तरह 
वहीँ तो खिलते हैं 
उमीदों की तपती दोपहर में 
तुम आओगे तो न 
बहुत दिनों से कह तो रहे हो 
पर आने के तुम्हारे संदेशों में 
इंतज़ार मुझे हराता नहीं है 


नीलू पूरे छः महीने की हो गई थी आज। इसलिए बंटी ने माँ से केक बनवाकर अपनी कक्षा के सभी बच्चों में बाँटकर धूमधाम से उसके छःमासे जन्मदिन की खुशी मनाई ।
बंटी जब नीलू को घर लाया था तो व‍ह मात्र दस- बारह दिन की ही थी।
छोटी - सी, बस एक हाथ में समा जानेवाली।

हवाएं शांत पड़ी सो रहीं हैं बिस्तर पर
और हम झेल रहे हैं घुटन
वो घुटन जिसकी कोई सीमा नहीं
आओ जाकर इन्हें जगाएं तो
इनसे कुछ छेड़छाड़ करे
जिससे ये करवटें बदलें
पहले ऊं ऊं भी करें

बारिश आने से पहले...गुलज़ार

बारिश आने से पहले
बारिश से बचने की तैयारी जारी है
सारी दरारें बन्द कर ली हैं
और लीप के छत, अब छतरी भी मढ़वा ली है


क्षणिकाएँ ...मीना भारद्वाज

झील किनारे...
बसी है बैया कॉलोनी,
सूखी शाखों पर ।
मेरे मन की सोचों जैसी...
थकान भरी और,
स्पन्दनहीन ।


जिन्दगी है कितने दिनों की ...आशा सक्सेना

जिन्दगी के होंगे कितने दिन
कोई भी  बता नहीं पाता
जन्म की तारीख तो याद रह जाती है
पर मृत्यु अथिति सी आती है 
 आहट तक नहीं होती उसके आने की
परिजनों को रुला कर चली जाती है
...
कल फिर
सादर