Sunday, April 3, 2022

806 कहने का अंदाज देखिए .......बाबू राम प्रधान


सुर के साथ साज देखिए
कहने का अंदाज देखिए

बातों की तह  में  जाकर
दिल में छुपे  राज देखिए

प्यार  में  हुआ था पागल
कैसे गिरी है गाज देखिए
 
कल अहं था आसमाँ पर
पैरो में उसके ताज देखिए

रहा गुनाहगारों की सफ़ में
आज उसके नाज देखिए

नीचे  निगाह ऊँची  उड़ान
घात लगाता  बाज देखिए

जिसके लिए मरे वही मारे
आती नहीं है लाज देखिए
-बाबू राम प्रधान
अल्मोड़ा

Monday, February 7, 2022

805 स्मृतिशेष लता जी गाए दो गीत

 ए दिल-ए नादां (रजिया सुलतान)

आरजू क्या है

ज़ुस्तज़ू क्या है


...................

ओ मेरे प्यार आजा (भूत बंगला)

बनके बहार आजा

हम्म हम्म हम्म

हम्म हम्म हम्म


Sunday, January 30, 2022

803 ...बेहिसाब प्रेम

जो भी करना हिसाब से करना
बेहिसाब किया हुआ कुछ भला नहीं होता
उसने जिससे बेहिसाब प्रेम किया
वह हिसाब का बड़ा पक्का था
उसने प्रेम के हिसाब में
'बे' की वैल्यू शून्य निकाली।
उसके पास बहुत से खाते थे
और हर खाते का पक्का हिसाब भी
वह एक ही खाते में सब बेहिसाब रखकर
कंगाल हो गया।
जब चुक गईं उसकी सारी बेहिसाब बातें
हिसाबदार बोला आओ अब बात करें।
वह सोच में पड़ गया कि हर चीज़
हिसाब से करनी चाहिए कहने वाले ने
क्या कभी कुछ बेहिसाब न किया होगा।
हर बात में कितना वजन रखना है
कितने ग्राम कहना है
यह कोई बेहिसाबी कभी न कर पाएगा।
एक रोज हिसाबदार ने ज़ोर से कहा
या तो हिसाब में रहो या सोच लो।
उस दिन पहली बार उसने हिसाब से दुआ माँगी
जो प्यार न हो तो हम कभी न मिलें।
बेहिसाबी कभी भली नहीं होती
प्रेम में जीना है तो हिसाब से रहो।
उसे फिर भी हिसाब न आया
वो हाशिये पर ही रहा
मुस्कुराता रहा
हिसाब के पक्के लोगों को हिसाब में उलझते देखकर।
इन्दु सिंह


Saturday, January 1, 2022

804 ..दल बदल



आओ-आओ देर न करना।
दल-बदल के काम में।
दल बदलुओं की मण्डी है ,
मत फँस जाना जाम में।

कल मस्त थे जिसके दल में
करने में गुणगान रे
पलभर में छोड़ चले सब
बेच दिया  ईमान रे
आओ - आओ, देर न करना
दल ,बदल के काम में

ऋतुओं जैसे  विचार बदलते
मौसम जैसे वाणी
बसन्त जैसे रूप बदलते
वर्षा में ज्यों पानी

हमने तो मतदान दिया था
तुम बिक गए अब नीलामी में
आओ-आओ देर मत करना,
दल बदल के काम में

जनता तो पढ़ी- लिखी है
तुमको इज्जत सम्मान दिया
अपनी उलझन उलझी तो उलझे
लोकतंत्र का मान दिया

रंग बदलने में आपकी दक्षता
गिरगिट भी शर्मा जाए
नए नए स्वांग रचाते
जातें हैं जब भीड़ में
आओ- आओ देर न करना
दल बदल के काम में

दल -बदलू की मण्डी लगी है
फंस मत जाना जाम में


-विष्णु प्रसाद सेमवाल 'भृगु'
बूढ़ा केदार,
टिहरी गढ़वाल,
उत्तराखंड