Saturday, February 10, 2018

हारा हूँ तो क्या हारा......अभिषेक नायक

हारा हूँ तो क्या हारा,
जीवन भी तो मृत्यु के आगे 
एक दिन हारता ही है! 
इस हार में भी अगर मैं विचलित नहीं,
तो संसार मैंने जीता है!

गिर कर कोई कितना गिर सकता है ,
सिर्फ़ और सिर्फ़ इस धरातल पर,
जो कि सबका आधार है!

स्वयं को पुनः आत्मनियंत्रित कर,
कर आत्मकेन्द्रित!
पहुंच अब उस सीमा पर,
जहाँ तुझ से पहले और तुझ से आगे 
कोई न हो...
न हो कोई, अन्तर्द्वन्द!!  

-अभिषेक नायक

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