Sunday, February 18, 2018

इश्क़.....निर्मल सिद्धू

इश्क़ का शौक़ जिनको होता है
मौत का न ख़ौफ़ उनको होता है

घूमते फिरते हैं फ़क़त दर बदर
ये मर्ज़ न हर किसी को होता है

ली होती है मंज़ूरी तड़पने की
मिला ख़ुदा से यही उनको होता है

चुनता है वो भी ख़ास बन्दों को ही
इसलिये न जिसको तिसको होता है

सहरा की रेत हो या फ़ाँसी का फंदा
गिला कुछ भी न उनको होता है

अख़्तियार में कुछ रह नहीं जाता
ये इशारा जब दिल को होता है

ख़्याल निर्मल को ये सता रहा है
ख़ुदाया, क्यों नहीं सबको होता है
-निर्मल सिद्धू

2 comments:

  1. वाह क्या बात है.... लाजवाब

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  2. बहुत ही संवेदनशील रचना है

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