Saturday, December 29, 2018

20.....विदा 2018...मिलेंगे 2019 की नई सुबह में

सादर अभिवादन
शनिवार....
साल जाने को आतुर है...

और जाने वाला साल ये 
कह रहा है... ज्यादा खुशी मत मनाओ..
ये आने वाला साल भी ...एक साल ही चलेगा..
बस दो दिन और.....

आइए चलें इस सप्ताह क्या पढ़ा गया....


मुआवज़ा ......


औपचारिक भाषण के पश्चात जब मीरा और रामनाथ को बुलाकर दो लाख के मुआवजे का चेक थमाया गया तो मीरा ने रूंधे गले से कहा-
"इन पैसों से मेरी माँ अब वापस नहीं आ सकेगी , मुझे मुआवज़ा नहीं चाहिये, मेरी विनम्र विनती है सेक्रेटरी जी से कि इन पैसों का उपयोग खराब लिफ्ट को बनवाने में किया जाय ताकि कोई और पार्वती ऐसी दुर्घटना का शिकार न हो।"

मेले में रह जाए जो अकेला..

बात अपने देश की राजनीति से शुरु करुँ , तो इस वर्ष ने "विधाता" कहलाने वाले लोगों को आईना दिखलाया है और सियासी जुमले के बादशाह के समक्ष वाकपटुता की राजनीति में अनाड़ी  " पप्पू "को खिलाड़ी बनने का एक अवसर भी दिया है। "नोटा" की पहली बार निर्णायक भूमिका दिखी अपने पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश में। अपने यूपी में बुआ- भांजा मिल कर सियासी खिचड़ी पकाने की तैयारी में जुटे हैं। बिहार में भी विधान सभा चुनाव में सत्ता पक्ष को तलवार की धार से गुजरना होगा , यानी कि वर्ष 2019 के चार - पांच माह तो सियासी बिसात पर शह- मात के खेल में ही गुजर जाएँगे। किसी को राजनैतिक वनवास मिलेगा , तो किसी को राजपाट ।'


इक बगल में चाँद होगा....

इक बगल में चाँद होगा, इक बगल में रोटियाँ
इक बगल में नींद होगी, इक बगल में लोरियाँ
हम चाँद पे, रोटी की चादर डाल के सो जाएँगे
और नींद से कह देंगे लोरी कल सुनाने आएँगे



वो दिसम्बर का ही कोई दिन रहा होगा. दोनों बैठे थे शहर के एक रेस्टोरेंट में. लड़की एक बात को लेकर बड़ी एक्साइटेड थी. उसने पिछली रात एक नयी अंग्रेजी सीरीज देखी थी जिसमें नायक एक ऐसे कमरे की छानबीन करता है जिसके दरवाज़े को खोलते ही इंसान ऑल्टर्नेट यूनिवर्स में चला जाता है और फिर वहां से वापस नहीं लौटता. 

उस सीरियल के बारे में लड़के को बताते हुए लड़की ने कहा, “जानते हो ये सीरियल तो अभी आया है, लेकिन मेरी ऐसी एक कल्पना बहुत पहले की है. मैं तो अब भी जब कभी सो कर उठती हूँ और अपने कमरे के बाथरूम में जाती हूँ तो मुझे हमेशा लगता है कि बाथरूम के दीवारों में कोई सीक्रेट दरवाज़ा खुलेगा, और उस दरवाज़े के दूसरी तरफ कोई अनजानी दुनिया होगी और मैं उस दुनिया में जाऊँगी, लेकिन वहां जाने से पहले इस दुनिया में अपना कोई क्लोन छोड जाऊँगी. मेरा वो क्लोन यहाँ मेरा सब काम करेगा, कॉलेज जाएगा, मेरे असाइनमेंट बनाएगा, खेलेगा, खायेगा, घूमने जाएगा, तुम्हारे साथ बैठ कर कॉफ़ी पिएगा और किसी को पता नहीं चलेगा कि मैं यहाँ पर नहीं हूँ. 


सुन लो रूह की...
My photo
फिर न धुक धुक
हो ये धड़कन
और ना,
संकुचन, स्पंदन.

खो जाने दो, इन्हें शून्य में.
हो न हास और कोई क्रंदन.


ज़िन्दगी से लम्हे चुरा बटुए मे रखता रहा ! 
फुरसत से खरचूंगा बस यही सोचता रहा !!

उधड़ती रही जेब करता रहा तुरपाई !
फिसलती रही खुशियाँ करता रहा भरपाई !!

इक दिन फुरसत पायी सोचा खुद को आज रिझाऊं
बरसों से जो जोड़े वो लम्हे खर्च आऊं !!


इसे दिसम्बर नहीं 
सांता आया कहना चाहिए 
इसके काँधे पे 
जो झोली है न उसमे से 
झाँकती है जनवरी 
कुनमुनाता है बसन्त 
बिखरा है गुलाल 
मचाते हुए धमाल !



अमां बड़ी दिक्कत है ये सोचने में
आख़िर कोई कमी हो तो कहें ना !
अच्छा सुनो भई दिल छोटा ना करना !
कोई दिलचस्प अजूबा मिले तो ले लेना !

कोई अजूबा रहेगा पास तो जी बदलेगा ।
आने-जाने वालों का तांता लगा रहेगा ।
मजमा तो किस्से-कहानियों से भी जमेगा ।
ले आना थैला-भर, खूब माहौल बनेगा ।

एक गीत...
आ कहीं दूर चले जाएं हम
दूर इतना कि हमें छू न सके कोई ग़म

फूलों और कलियों से महके हुए इक जंगल में
इक हसीं झील के साहिल पे हमारा घर हो
ओस में भीगी हुई घास पे हम चलते हों
रंग और नूर में डूबा हुआ हर मंज़र हो..

ऐ दिव्यांग तेरे ज़ज़्बे को सलाम
आपको पसंद आएगा अवश्य....



विदा 2018...मिलेंगे 2019 की नई सुबह में
यशोदा
















Saturday, December 22, 2018

19..मरे घर के मरे लोगों की खबर भी होती है, मरी मरी पढ़कर मत बहकाकर

सादर अभिवादन..
मुखरित मौन आज वाकई मौन व्रत धारण
कर लिया है...वजह है ही नहीं कुछ
इसीलिए शायद मौन है....
आज क्या-क्या है देखिए.....

समर्थक परजीवी हो रहें हैं
सड़क पर कोलाहल बो रहें हैं

शिकायतें द्वार पर टंगी हैं
अफसर सलीके से रो रहें हैं

भूखे पेट की माया
कहीं धूप कहीं छाया
दाने-दाने को मोहताज
फिरते लिए हड्डियों का ढांचा
काम मिला तो भरता है पेट
नहीं तो भूखे कटते दिन अनेक

भूख!!
जलाती है
तन को मन को,
संसार के समस्त
कर्मों के पीछे
है यही भूख।।
भूख के हैं कई रूप
क्षुधातुर
नहीं देखता
उचित-अनुचित
मांगता भिक्षा या
जूठन में ढूंढ़ता
अपनी भूख का इलाज।।

कौन होगा जो दो घड़ी बातें करेगा मुझसे
पूछेगा मुझसे क्या शहर शहर होने से
तुम थक नहीं गए...।
कितनी फैली है जमीन तुम्हारी
कितना चलते हैं लोग तुम पर

चलते-चलते एक  साधारण मगर
असाधारण खबर..डॉ. सुशील जोशी
‘उलूक’ 
खबर की भी 
होती हैं लाशें 
कुछ नहीं 
बताती हैं 
घर की घर में 
ही छोड़ जाती हैं 
मरी हुई खबर 
को देखकर 
इतना तो 
समझ ही 
लिया कर । 

आज बस इतना ही..
फिर मिलते हैं
यशोदा







Saturday, December 15, 2018

18....पानी रे पानी, लिख तो सही तू भी कभी तो कुछ पानी

अभिवादन..
शनिवार..
लिखना-पढ़ना कुछ खास नहीं
कुछ आ गए...और
कुछ चले गए फिर से आने के लिए
आइए...इस सप्ताह क्या है.....


खामोश तेरी बातें...एक परिभाषा

संख्यातीत,
इन क्षणों में मेरे,
सुवासित है,
उन्मादित साँसों के घेरे,
ये खामोश लब,
बरबस कुछ कह जाते,
नवीन बातें,
हर जड़ विषाद से परे!


दिसंबर.......एक उलाहना

शीत बयार 
सिहराये पोर-पोर
धरती को छू-छूकर
जगाये कलियों में खुमार
बेचैन भँवरों की फरियाद सुन
दिसंबर मुस्कुराया


"आधे में अधूरा-पहला प्यार"....एक ख़्वाब
“और भानु”
“दिल में खुदा नाम कहाँ मिटता है!”
“अपने पति को कभी बताया?”
“मीरा की तरह जहर का प्याला पीने की साहस नहीं जुटा पाई!”
“भानु की तुलना कृष्ण से?”
“ना! ना! तुलना नहीं। ईश और मनु में क्या और कैसी तुलना! भानु को कहाँ जानकारी है 
मेरे मनोभावों की।”


चुनरिया...एक कल्पना
धानी तेरी चुनर गोरी
मन में लगन लगाए
लाली तेरी चुनर गोरी
तन में अगन जगाए।
मह-मह के महकाए गोरिया
जब चुनरी तू सरकाये
रह-रह के बहकाए गोरिया
जब चुनरी तू सरकाए


बेनक़ाब मन...एक मनन

नक़ाब   पर  नक़ाब  ख़ूब   रखे ,  मन  को  बेनक़ाब  करते   है, 
ठिठुरी    रही   इस    धूप  को   फिर  से  दुल्हन  बनाते  है, 
  
ग़मों    की   दावत  ठुकराते , खुशियों   के   चावल   पकाते  है, 
मोहब्बत  के   नगमे   गुनगुनाते,  ग़मों  की  दास्ताँ   दफ़नाते  है |


गुलाम ....एक व्याख़्या

घर में ही 
घर के
भेड़िये 
नोच रहे 
होते हैं 
अपनी भेड़ें 
अपने हिसाब से 

शेर 
का गुलाम 

शेर की 
एक तस्वीर 
का झंडा 
ला ला कर 
क्यों लहराता है ? 


अथः शीर्षक कथा
आज की ज़रूरत ...पानी


कितना अच्छा है 
सोचने में कि 
तू भी पानी 
और मैं भी पानी 
कहाँ होता है अलग 
पानी से कभी 
कहीं का भी पानी 
लूट खसोट चूस 
और मुस्कुरा 
और फिर कह दे 
सामने वाले से 
कि मैं हूँ पानी 
‘उलूक’ 
तेरे पानी पानी 
हो जाने से भी 
कुछ नहीं होना है
पानी को रहना है 
हमेशा ही पानी । 

आज बस
आज्ञा दें
यशोदा



Saturday, December 8, 2018

17...सपना कर अपना पूरा, कम्पनी बना

सादर अभिवादन
गुरुवार से प्रस्तुति बन रही है
शायद कल तक बन जाए
मुखरित मौन साप्ताहिक है न...
नए-पुराने का मेल बन जाएगा

ये चंचल नदियाँ यूँ बलखाती,लहरातीं ,
पूरी धरती बाहों में समेटे उन्मुक्त बहें ,
चाहे लाख ललक हो निर्बाध भ्रमण की ,
पर आखिर सागर में मिलना पड़ता है ।

भले कहीं भी विचरें ये सारे मुक्त मेघ ,
मन में इक स्वाति बूँद का अहम् लिए ,
पर ये भटकन जब कभी भी बोझ बने ,
तब आखिर में तो बरसना ही पड़ता है ।

कहने को तो पत्रकार हूँ, परंतु देश- दुनिया की खबरों की जगह यह गीतों का संसार मुझे कहीं अधिक भाता है,अब उम्र के इस पड़ाव में । मैं हर उन सम्वेदनाओं की अनुभूति करना चाहता हूँ , जिससे मन के करुणा का द्वार खुले और मैं बुद्ध हो जाऊँ, शुद्ध हो जाऊँ , मुक्त हो जाऊँ, इस दुनिया की हर उस भूख से, छटपटाहट से । बिना किसी शोक, ग्लानि और विकलता के आनंदित मन से निर्वाण को प्राप्त करूँ ।  अन्यथा रात्रि में यह तन्हाई जगाती ही रहेगी, इन्हीं नगमों की तरह , 


मां, तू जीवन दात्री, तू ही है भगवान,
मुझमें नहीं शक्ति कर पाऊं तेरा गुणगान।

मां, तू ममता की मूरत अतुल्य अनुपम,
किसी भी हाल में तेरी ममता न हो कम।


चित्र में ये शामिल हो सकता है: 8 लोग, Poonam Deva, Seema Rani, Rajendra Mishra, Rabbani Ali, Ranjana Singh और Shaista Anjum सहित
जो अपने वश में नहीं उसपर क्यों अफसोस करना, विपरीत परिस्थिति 
में धैर्य रखने के सिवा कुछ नहीं किया जा सकता...
कल सुबह छोटे लाल जी मुझे फोन कर बोले कि "फूल लाने की 
व्यवस्था इसबार आप करा लेंगी...?"
"क्यों क्या हुआ?"
"कल रात में लाने गया था तो मिला नहीं , घर लौट कर आया तो गर्भवती बेटी की तबीयत खराब लगी , डॉक्टर के पास लेकर गया तो डॉक्टर बोली गर्भस्थ जीव पेट में मैला कर दिया है उसे तुरन्त निकालना होगा... अभी सुबह में ऑपरेशन से बेटा हुआ है..


कभी दर्द
कभी खुशी
कभी प्यार
कभी ख्वाब
मैं लिख लिया करती थी,
टूटे फूटे शब्द ही सही,
लगता था,
जी लिया दिन ।


समंदर की लहरों पर हमनें भी पैगाम लिखा, 
दर्द को छुपाया ,मोहब्बत को सरे आम लिखा !!

जंग  जिंदगी  की , क़त्ल अरमानों का हुआ, 
सुर्खरु जनाजे में नाम,दफ़न प्यार का अफ़साना हुआ  !!


चौपाले सूनी पड़ी, 'धूनी' 'बाले' कौन।
सर्द हवा से हो गए, रिश्ते-नाते मौन।।

गज भर की है गोदड़ी, कैसे काटें रात।
आग जला करते रहे, 'होरी' 'गोबर' बात।।

छोड़ रजाई अब उठो, सी-सी करो न जाप।
आओ खिलती धूप से, ले लो थोड़ा ताप।।

उलूक के कबाड़ से
नजर 
मत आओ 
कम्पनी की टोपी 
किसी दूसरे के 
सर पर रख जाओ 

सन्यासी 
हो गये हैं 
वो तो कब के 
जैसी खबर 
तुरंत फैलाओ 

जाओ 
अब यहाँ 
क्या बचा है 
किसी और के 
सपनो में अपना 
सिर मत खपाओ ।

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आज्ञा दें
सादर
यशोदा


Saturday, December 1, 2018

16..क से कुत्ता, डी से डोग, भौँकना दोनों का एक सा, ‘उलूक’ रात की नींद में सुबह का अन्दाज लगाये कैसे


सादर अभिवादन

अंक सोलहवाँ लेकर आई हूँ
एक खुशनुमा भरी रचना से शुरुआत....


एक बार शुक्ल जी और उनकी श्रीमती जी अपनी बिटिया से मिलने पूना चले गए. एक महीने बाद वो 
लौटे तो देखा कि सारे कीर्तिनगर में हंगामा मचा 
हुआ है. उनके पांवों तले ज़मीन खिसक गयी जब 
उन्हें पता चला कि पचपन साला विधुर, दो विवाहित बेटियों के पिता, उनके लंगोटिया यार, लाला भानचंद ने एक इक्कीस साल की कन्या से चुपचाप शादी कर ली है. अपने घर लौटने के 15 मिनट बाद ही प्रिंसिपल साहब को लाला भानचंद के घर का दरवाज़ा पीटते हुए देखा गया. लाला जी घर पर नहीं थे पर दरवाज़ा 
फिर भी खुला और उसे खोला एक 
लड़की ने. लड़की ने शुक्ल जी को देखते ही कहा –
‘अरे, सर आप?’
इतना कहकर वह उनके चरण छूने के लिए झुक गयी.
और शुक्ल जी ने उस लड़की को देखते ही कहा –
‘अरे किरण तुम?’
और इतना कहकर उन्होंने अपने दोनोंं हाथों से 
अपना सर पीट लिया.


पता है की कल तो मुझे भी है मरना
लेकिन मैं आज जीना छोड़ दूँ क्या?

पता है खंजर का काम करती है नैना
निगाहों का जाम पीना छोड़ दूँ क्या?

पता है दिलों के ज़ख्म यूँ नहीं भरते
मुहब्बत से ज़ख्म सीना छोड़ दूँ क्या?

मन दर्पण आशा ज्योती
रंग भरें इसमें भावों के मोती
भावनाओं का सागर अपार
कितना सुंदर यह संसार
सबके मन में प्यार बसा है
शब्दों का संसार बसा है
साहित्य के रंगों में रंगी है

अब एक साहित्यिक रचना पढ़िए
मेरे इर्द-गिर्द ऑक्टोपस-सी कसती
तुम्हारे सम्मोहन की भुजाओं में बंधकर 
सुख-दुख,तन-मन,
पाप-पुण्य,तर्क-वितर्क भुलाकर 
अनगिनत उनींदी रातों की नींद लिए
ओढ़कर तुम्हारे एहसास का लिहाफ़
मैं सो जाना चाहती हूँ 
कभी न जागने के लिए।


अनपढ़ के 
घर के 
आसपास के 
अनपढ़ 
सूखे सुखाये 
गली के 
कुछ कुत्ते

किसलिये 
तुझे 
और क्यों 
याद आये 
कुछ कुत्ते 
आज और 
 बस 
आज ही 
‘उलूक’

आज
अब
बस
यशोदा