Thursday, February 15, 2018

पागल है दिल

पागल है दिल संग यादों के निकल पड़ता है,
चाँद का चेहरा देख लूँ नीदों में खलल पड़ता है।

बिखरी रहती थी खुशबुएँ कभी हसीन रास्तों पर,
उन वीरान राह में खंडहर सा कोई महल पड़ता है।

तेरे दूर होने से उदास हो जाती है धड़कन बहुत,
नाम तेरा सुनते ही दिल सीने में उछल पड़ता है।

तारों को मुट्ठियों में भरकर बैठ जाते है मुंडेरों पे,
चाँदनी की झील में तेरे नज़रों का कँवल पड़ता है।

याद तेरी जब तन्हाई में आगोश से लिपटती है,
तड़पकर दर्द दिल का आँखों से उबल पड़ता है।

            #श्वेता🍁

10 comments:

  1. बहुत सुंदर गज़ल
    दिल खुश हो गया पढकर
    बहुत खूब

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  2. क्या बात है
    बहुत सुंदर गजल

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  3. वाह!!!
    नींदों में खलल पड़ता है
    लाजवाब गजल...

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  4. तारों को मुट्ठियों में भरकर बैठ जाते है मुंडेरों पे,
    चाँदनी की झील में तेरे नज़रों का कँवल पड़ता है।
    सुंदर भावपूर्ण रचना आदरणीय श्वेता जी।

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  5. बहुत सुंदर लिखा है !

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  6. सुन्दर रचना है

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  7. प्रिय श्वेता जी -- खलल के बहाने से सराहनीय सृजन |सस्नेह |

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  8. वाह ...
    ख़लल का भी क्या अन्दाज़ है ..

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