पागल है दिल संग यादों के निकल पड़ता है,
चाँद का चेहरा देख लूँ नीदों में खलल पड़ता है।
बिखरी रहती थी खुशबुएँ कभी हसीन रास्तों पर,
उन वीरान राह में खंडहर सा कोई महल पड़ता है।
तेरे दूर होने से उदास हो जाती है धड़कन बहुत,
नाम तेरा सुनते ही दिल सीने में उछल पड़ता है।
तारों को मुट्ठियों में भरकर बैठ जाते है मुंडेरों पे,
चाँदनी की झील में तेरे नज़रों का कँवल पड़ता है।
याद तेरी जब तन्हाई में आगोश से लिपटती है,
तड़पकर दर्द दिल का आँखों से उबल पड़ता है।
#श्वेता🍁
सुन्दर!!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर गज़ल
ReplyDeleteदिल खुश हो गया पढकर
बहुत खूब
क्या बात है
ReplyDeleteबहुत सुंदर गजल
वाह!!!
ReplyDeleteनींदों में खलल पड़ता है
लाजवाब गजल...
तारों को मुट्ठियों में भरकर बैठ जाते है मुंडेरों पे,
ReplyDeleteचाँदनी की झील में तेरे नज़रों का कँवल पड़ता है।
सुंदर भावपूर्ण रचना आदरणीय श्वेता जी।
बहुत सुंदर लिखा है !
ReplyDeleteसुन्दर रचना है
ReplyDeleteप्रिय श्वेता जी -- खलल के बहाने से सराहनीय सृजन |सस्नेह |
ReplyDeleteवाह ...
ReplyDeleteख़लल का भी क्या अन्दाज़ है ..