जो कहते हैं
कि खुद के अलावा
किसी और पर नहीं कर सकते भरोसा
दरअसल, वह खुद की निगाह में
भरोसे के लायक नहीं होते।
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यह पूरे भरोसे के साथ कह सकता हूं
कि आशंकाएं जहां खत्म होती हैं
वहीं से शुरू होती है
भरोसे की दुनिया
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जो मानते हैं
कि दूसरों पर भरोसा जताना
खुद पर से भरोसे का उठ जाना होता है
या फिर अपने भरोसे की मजबूती को और बढ़ाने का
एक शातिराना चाल होता है
ठीक से टटोलें उनकी जिंदगी
वहां उपलब्धि कम, ज्यादा मलाल होता है
-अनुराग अन्वेषी
ए-802, जनसत्ता सोसाइटी, सेक्टर 9,
वसुंधरा, गाजियाबाद 201012 (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल : 9999572266
एकदम सत्य
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