ख्वाबों मे वो हंस रही थी
मैं भी मुस्कुरा उठी
ख्वाबों मे वो गुदगुदा रही थी
मै भी खिल खिला उठी
ख्वाबों में वो हिम्मत दे रही थी
मैं पंख फैला के उड़ी
ख्वाबों मे वो गा रही थी
मैं भी गुनगुन उठी
ख्वाबों मे वो ठुमक रही थी
मैं भी थिरक उठी
ख्वाबों मे वो अलसा रही थी
मैं भी मीठी नींद छोड़ उठी
ख्वाबों मे दूर खड़ी वो कौन थी
वो जिंदगी थी वो मेरी जिंदगी ।।
-कुसुम कोठारी
वाह!!! बहुत खूबसूरत
ReplyDeleteशानदार रचना
एक प्यारा सा ख्वाब बुन दिया आपने ... खूबसूरत शब्दों के साथ.... बहुत अच्छी लगी आपकी रचना।
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