क़ब्र में उतरते ही
मैं आराम से दराज़ हो गया
और सोचा
यहाँ मुझे
कोई ख़लल नहीं पहुँचाएगा
ये दो-गज़ ज़मीन
मेरी
और सिर्फ़ मेरी मिलकियत है
और मैं मज़े से
मिट्टी में घुलता मिलता रहा
वक़्त का एहसास
यहाँ आ कर ख़त्म हो गया
मैं मुतमइन था
लेकिन बहुत जल्द
ये इत्मिनान भी मुझ से छीन लिया गया
हुआ यूँ
कि अभी मैं
पूरी तरह मिट्टी भी न हुआ था
कि एक और शख़्स
मेरी क़ब्र में घुस आया
और अब
मेरी क़ब्र पर
किसी और का
कतबा नस्ब है!!
-मोहम्मद अलवी
सौजन्यः ठाले-बैठे
निशब्द।
ReplyDeleteवाह बहुत खूब ..मौन ही सही तारीफ होगी ....
ReplyDeleteकलम को नमन मेरा गहराई तक उतर गई
बहुत उम्दा.....
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