Thursday, September 30, 2021

776 ..ठाढ़ा सिंह चरावै गाई का ना ऐसा हाल था

 सादर अभिवादन

कल का उपवास
मन को हल्का कर गया
आभार जिउतिया
....
रचनाएँ....



मचल कर, मखमली सवालों में!
वो अक्सर, आ ‌‌‌‌‌ही जाते हैं, ख्यालों में!

न बदली, अब तक, उनकी शोखियां,
वो ही रंग, अब भी, वो ही खुश्बू,
और वही, नादानियां,
वो अक्सर, कर ही जाते हैं ख्यालों में!




हिलते हाथों से
गजरा लगाते देखा है।
चढ़ती उम्र के साथ
प्यार को भी चढ़ते देखा है।



जीवन के अनसुलझे,
रहस्यमयी प्रश्नों
विपश्यना,
"मैं से मोक्ष"
की यात्रा में
तुम ही
निमित्त
बन सकते हो
कदाचित्।




ठाढ़ा सिंह चरावै गाई का
ना ऐसा हाल था
चींटी मुख में हाथी
समा जाए का काल था
गार्गी सूर्या मैत्रयी सुलभा के बाद आयी
सावित्री बाई अरुणा सुचेता दुर्गा बाई
उत्‍तमोत्‍तम ओजोन थीं


तृण शीर्ष पर कुछ ओस बूंद, देते हैं
आख़री सहारा झरते हुए पारिजात को,
दूरत्व तो होता है बस एक बहाना,
हर कोई चाहता है ज़िन्दगी को

सादर

Wednesday, September 29, 2021

775 ..यह विश्व राजनीति का महान एक केंद्र है

सादर अभिवादन
आज जीवित्पुत्रिका व्रत है
जिसा जिउतिया उपास भी कहते हैं
व्रती महिला की मनोकामना पूर्ण हो
सभी बच्चे स्वस्थ और निरोगी रहें
इसी कामना के साथ आज का यह अंक



हवाओं का झोंका उड़ा ले गया।
अब न अपनी ख़बर न ख़बर हो तेरी।

खूब गुनाहों को मेरे मुझसे कहा।
कब तल भला, दिल में फिकर हो तेरी।




यह विश्व राजनीति का
महान एक केंद्र है,
यहाँ का वीर सरहदों पे
बज्र ले महेंद्र है,
विभिन्न भाषा,बोलियाँ
विभिन्न भूषा-वेश है।
यह उत्तर प्रदेश है,यह उत्तर प्रदेश है।



ख़ुदा की यूँ कुदरत लिखेंगे
उन्हीं की  इबारत  लिखेंगे

वही दो जहानों का रहबर
उन्हीं की इनायत लिखेंगे

मुहब्बत के शायर है हम भी
कलम  से  मुहब्बत  लिखेंगे




अब न रहे वे घर,
न वे रोशनदान,
जहाँ मैं तिनके जमा कर सकूँ,
अंडे दे सकूँ,
उन्हें से सकूँ,
जहाँ मेरे नन्हें चूज़े
आराम से रह सकें,
उड़ने लायक हो सकें.




कहीं पुष्प बन कर उभरती है ,
कहीं नदिया बन कर उमड़ती है ,
प्रकृति तो प्रकृति है
कहीं पाखी बन उड़ती है

कितने ही रूप में
कह जाती है मन की
समां जाती है शब्दों में
जैसे भावों की अनुकृति !!


सादर

 

Tuesday, September 28, 2021

774 ...आज जन्म दिन है लता जी का दीर्घायु हों यही कामना है

 सादर अभिवादन

आज जन्म दिन है लता जी का
दीर्घायु हों यही कामना है


98 वर्षीय भारत रत्न लता मंगेशकर, एक ऐसा नाम जिसपर हर भारतवासी को गर्व है। संगीत की दुनिया में बेहद सम्मान के साथ इस नाम को लिया जाता है। भारत रत्न लता मंगेशकर की आवाज में जादू है, उनके अंदर ईश्वर प्रदत्त प्रतिभा है
सुनिए ये गीत..




जबकि पुस्तकालय में
खड़ा आदमी
खड़े-खड़े ही पहुँच गया
देश-दुनिया के
कोने-कोने में




आहटें हलकी थी इनके अल्फ़ाज़ों की l
दस्तक चुप चुप थी इनके हुँकारों की ll

फिरा ले उन्हें डाकिया हर गली गली l
मिला ना ठिकाना उसे किसी गली भी ll




मैं स्वप्न में एक स्त्री से मिला,
जो हुस्न-ए-अप्सरा लिए थी ,
जिसके केशों ने पग छुए थे उसके
और आँखों मे समुद्र समाया था।




सागर ने अपने गर्जन-तर्जन से
मुझको थोड़े शब्द दे दिये,
तट पर छोड़ गया जो सागर
चिकने पत्थर, कंकड़-सीपी
चुनकर उनको मैंने अपनी
अँजुरी भर ली;
उसने मुझको मुद्राएँ दीं
उच्चावच लहरों ने मुझको संज्ञाएँ दीं,




कहानियाँ लिखने का मन करता है ख़ूब। अपनी पसंद के कुछ लोगों से मिलने का भी। आख़िरी कहानी मन मलंग लिखी थी। कोई किरदार हो…ज़िंदा…मीठी आँखों वाला…कच्ची मुस्कान और मिट्टी का दिल लिए हुए आए मेरे शहर…और कहे आख़िर को, ऐसे दिल को तो टूट ही जाना चाहिए ना।

क्लोज़ करते हुए याद आ रहा है फ़ैज़ का शेर, 
ऐसे ही, बेसलीके, बेतरतीबी से, 
‘अपना ग़म था गवाही तेरे हुस्न की, 
देख क़ायम रहे इस गवाही पे हम’।

 मुझे दुःख हो कि पिछले दो अंक छूट गए
अब से शायद ही छूटे
सादर

Saturday, September 25, 2021

772..ऐसा तो कम ही होता है वो भी हों तन्हाई भी - गुलज़ार


एक पुराना मौसम लौटा याद भरी पुरवाई भी
ऐसा तो कम ही होता है वो भी हों तन्हाई भी


यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं
कितनी सौंधी लगती है तब माज़ी की रुसवाई भी

दो दो शक़्लें दिखती हैं इस बहके से आईने में
मेरे साथ चला आया है आपका इक सौदाई भी

ख़ामोशी का हासिल भी इक लम्बी सी ख़ामोशी है
उन की बात सुनी भी हमने अपनी बात सुनाई भी

- गुलज़ार

Friday, September 24, 2021

771..एक कप चाय : सतपाल ख़याल

 


एक कप चाय : सतपाल ख़या

“उम्र अस्सी की हो गई | दस साल पहले पत्नी छोड़ गई ,बेटी विदेश में ब्याही हुई है | बेटा इसी शहर में है लेकिन किसी  कारणवश साथ नहीं रहता ,खैर !”

इतना कहकर गुप्ता जी ने ठंडी आह भरी और मुझे  पूछा कि चाय पीओगे ?

मैंने “हाँ” में सर हिला दिया |

चाय बनाते हुए गुप्ता जी ने मुझे कहा कि एक कप चाय मुझे बनानी नहीं आती और बहुत मुश्किल भी है ,एक कप चाय बनाना | एक कप चाय बनाना अगर आदमी सीख ले तो उसे खुश रहने के लिए किसी की ज़रूरत नहीं पड़ेगी |

गुप्ता जी ने चाय मेज़ पे रख दी और मैं भी उनके साथ चाय पीने लगा |

मैंने उनसे पूछा कि आप इस उम्र में इतने बड़े मकान में अकेले रहते हो और बीमार भी हैं तो ..

“बेटा , ज़्यादा से ज्यादा क्या होगा ,मर जाउंगा ,बस | इससे बुरा और क्या हो सकता है, अब मुझे मौत का डर नहीं है | लेकिन ज़िन्दगी को लेकर कुछ नाराज़गियां तो हैं |”

मैंने पूछा “क्या नाराजगी है”?

“यही कि एक कप चाय  कैसी बनानी है, ये न सीख पाया” गुप्ता जी थोड़ा मुस्कुरा कर चुटकीले अंदाज़ में बोले |

“अंकल , अफ़सोस होता है क्या कि आप उम्र भर जिस परिवार के लिए कमाया उनमें से कोई भी साथ में नहीं है”

“बेटा , ये न्यू नार्मल है | ऐसा होता ही है | तुम भी अभी से एक कप चाय बनान सीख लो”

मैं चाय ख़त्म करके उठा और गुप्ता जी से कहा कि अगर कोई ज़रूरत हो तो मुझे बताइयेगा |

गुप्ता जी ने कहा – “नहीं,  मेरा बेटा है न | पास में ही तो है |”

मैंने सोचा बाप ,बाप ही होता है ,बेटा चाहे कैसा भी हो ,उससे नाराज़ होते हुए भी नाराज़गी ज़ाहिर नहीं करता |

मैं बापस घर आ गया और रात भर सोचता रहा कि हासिल क्या है इस ज़िन्दगी का | जो आदमी सारी उम्र परिवार के लिए मरता है , अंत में परिवार उसे छोड़ देता है और क्या ये बाकई न्यू नार्मल है | मृत्यू से बड़ा दुःख तो ज़िंदगी है | मृत्यु  तो वरदान है जो इस अभीशिप्त जीवन के दुःख से मुक्त कर देती है | ये सोचते- सोचते सुबह हो गई |

मैं  उठकर दो कप चाय बनाकर लाया और पत्नी से पूछा कि पीओगी क्या ?

पत्नी बोली कि आफिस के लिए लेट हो जाऊँगी तुम अकेले ही पी लो | मैं मन ही मन हंसा और गुप्ता जी का एक कप चाय पे दिया ज्ञान मुझे बरबस याद आ गया |

मैंने चाय नहीं पी , दोनों चाय के कप मेज़ पे पड़े मानो मुझ पर तंज़ कर  रहे हों और मैं उन्हें इग्नोर  करके तैयार होकर आफिस को चल दिया | गाड़ी में बैठा तो देखा की शर्ट का एक बटन टूटा हुआ था , मैंने मुस्कुरा कर आस्तीन को फोल्ड कर लिया और ख़ुद को मोटीवेट करने के लिए गाड़ी में रिकार्ड मोटीवेशनल स्पीच सुनने लगा | स्पीकर यही कह रहा था कि बस चलते रहो ,रुकना मत ,रुक गए तो खत्म हो जाओगे ,किसी तालाब की तरह सड़ने लगोगे ,बहते रहने में ही गति है | मैं आफिस में पहुंच कर एक कनीज़ की तरह अपने बादशाह सलामत बॉस को गुड मार्निंग कह कर अपनी कुर्सी पर बैठ गया |

अचानक एक कालेज के मित्र का फोन आया कि तू  फलां चाय की दुकान पे लंच टाइम में  आ जाना  | आज “एक बटा दो “ चाय का आनन्द लेते हैं | कालेज के जमाने में हम लोग ऐसे ही करते थे| दो दोस्त हों तो एक बटा दो ,तीन हों तो  एक बटा तीन ,एक बटा चार की भी नौबत आ जाती थी |

और अब दो कप चाय मेज़ पे पड़ी रह जाती है |

खैर ! इस चाय की फलासफी ने मन को उदास कर दिया |

शाम को घर पहुंचते हीपता चला कि गुप्ता अंकल की डेथ हो गई | मैं दुखी तो हुआ लेकिन पता नहीं क्यों मन का एक कोना तृप्ती से भर गया कि एकांत के चंगुल से एक आदमी को निज़ात मिल गई |

“क्या ये सही है कि हमें खुश रहने के लिए किसी की ज़रूरत नहीं पडती ? “ मैंने खुद से ही पूछा और खुद को ही जवाब दिया –

“ कोई सदियों में एक बुद्ध पैदा होता होगा जिसे अकेलेपन में खुशी मिलती होगी | हम लोग जो बेल –बूटों  की तरह पैदा होते हैं ,हमें सहारे की ज़रूरत होती है | हम अकेले में खुश नहीं रह सकते|”

गुप्ता जी एक कप चाय बनाना तो  नहीं सीख पाए लेकिन जीवन का अंतिम पहर उन्होंने एक कप चाय के सहारे ही काटा |

Thursday, September 23, 2021

770 ...महालया के दिन पूरी प्रकृति माँ दुर्गा बन जाती है

सादर अभिवादन
विदा हुए गणेश
पितृ-सेवा जारी है....और
प्रतीक्षा भी कर रही  हैं....आँखें
माता रानी के चरण दर्शन का....
उत्सव तो आते-जाते रहते हैं..पर
माता रानी जब आती हैं तो हज़ारों -हज़ार 
मनोकामनाएं क्षण भर में पूरी हो जाती है

अब रचनाएँ देखें...



"शनिवार रात्रि 12 बजे तक ही प्रतियोगिता हेतु रचना पोस्ट करने की अनुमति थी... 
रचना रविवार को पोस्ट हुई... और विजेता के लिए चयन कर ली गयी...
क्या आप चकित नहीं हो गयी..?"




इतने में नीना बॉस के केबिन में आकर बोली, “सर अगर हम यह प्रोजेक्ट अच्छे से हैंडल कर गए तो आगे से  यह बहुराष्ट्रीय कंपनी भविष्य में सारे प्रोजेक्ट हमारी कंपनी को ही देगी, जिससे कंपनी का नाम मार्केट में तो होगा ही, इसके साथ– साथ अत्यंत आर्थिक लाभ भी मिलेगा।”




बड़ी मेहनत से कमाया
इच्छाओं पर अंकुश लगा
पाई-पाई कर बचाया
कुछ जरूरी जरूरतों के अलावा
नहीं की कभी मन की
न बच्चों को करने दी
बचपन से ही उन्हें
सर सहलाकर समझाया
और कमी-बेसियों के
संग ही पढाया-लिखाया।



माई बर फूल गजरा,
गुंथौं हो मालिन माई बर फूल गजरा।
चंपा फूल के गजरा, चमेली फूल के हार।
मोंगरा फूल के माथ मटुकिया, सोला ओ सिंगार।




महालया के दिन
पूरी प्रकृति माँ दुर्गा बन जाती है
कलश स्थापना करते हुए
मिट्टी में जौ मिलाते हुए
यूँ महसूस होता है कि
मैं मिट्टी से एकाकार हो रही हूं
और चतुर्थी से हरीतिमा लिए
 नौ रूप का शुद्ध मंत्र बन जाती हूं ।
अखंड दीये का घृत बन
स्वयं में एक शक्ति बन जाती हूं ।




छंद-रसों से दूर कभी तो, काव्यालंकृत भावुक रेखा
कविता मन में सृजित नहीं हो, भ्रम में कवियों को भी देखा।
चंचल कलम, कभी तत्सम को, तद्भव से रेखांकित करती
चार शब्द लिखकर रुक जाती, मात्रा की संगणना करती।।

सादर 

Wednesday, September 22, 2021

769....अपनों की यादों को भुलाया नहीं जाता

सादर अभिवादन
क्षमा
आज कम्प्यूटर में कुछ समस्या है




पढ़ें लिखें बोले हिन्दी में हिन्दी का सम्मान करें
शिक्षा का माध्यम हो हिन्दी इसके लिए प्रयास करें !

ज्ञान बढाने के हित चाहे जितनी अन्य भाषा सीखें
लेकिन हिन्दी मातृभाषा है सर्वप्रथम इसको सीखें !



बीते वक्त को लौटाया नहीं जाता
अपनों की यादों को भुलाया नहीं जाता




घर आँगन की थी शोभा
नूपुर सी बजती रहती,
तुम से मेल युगों का मेरा  
स्मृतियों में तुम रहती,  
तुम थी मेरी रजनीगंधा।




नेह सिंचित किनारे भी, पल पल में मुस्काते थे।
मधुर स्नेह की बूंदे पाकर, मन ही मन इतराते थे।

कोई चेहरा उस हृदय को, हद से ज्यादा भाता था।
एक झलक पाते ही वो, दूर से दौड़ा आता था।

सादर 

Tuesday, September 21, 2021

768 ...कई चाबियाँ आईं- चली गईं लेकिन न खुला ताला

सादर अभिवादन
कड़वे दिन आ गए
पितृ-पक्ष को लोग कड़वे दिन ही कहते हैं शायद
पर ये दिन होते महत्वपूर्ण हैं..
कुछ यादें और मुलाकातें होते रहती है 
फिर कभी बताउँगी
रचनाएँ देखिए...



किसी के समक्ष प्रिय…मत खुलना
फिर कई चाबियाँ आईं-
चली गईं
लेकिन न खुला ताला
न ताले का मन
यहाँ तक कि
हथौड़े की मार से टूट गया
बिखर गया
लहूलुहान हो गया
मर गया पर अपनी ओर से खुला नहीं !




सूरज ने पश्चिम की
फाँदी दीवार
धरती में पसर गया
साँवल अँधियार
रोशनियाँ सड़कों की
हुई टीम- टाम
दोपहरी सिमट गई
छितराई शाम




हुआ मन अशांत
भरोसा तोड़ दौनों  ने
मझधार में छोड़ा |
समय के साथ जा कर
जाने कहाँ विलीन हुआ  
खुद ने ही धोखा खाया  
अपने अस्तित्व को खो कर |




सुख दुख की ये जीवन राहें
कर ले जो तू करना चाहे
है जीवन दो दिन का मेला
अकेला,राही चल अकेला


मिठाई का डिब्बा लिए आज कलुआ को देखा, आश्चर्य से भर गई । मन सोचते हुए उस पुरानी घटना पर अटक गया और सोचने लगी  कि अरे कैसे उस दिन इन्होंने कलुआ को अपनी गाड़ी के नीचे तक दबा दिया था,जब वो आधी रात को अंधेरे में नशेड़ियों और जुआरियों के साथ दारू के नशे में, पेड़ के नीचे बैठा जुआ खेल रहा था

सादर 

Monday, September 20, 2021

767 ..मुहब्बत की नदी में,बहे धार बनकर

सादर अभिवादन
मूसलाधार बारिश
भाद्र मास में..
क्वांर का महीना
बुढ़ौती बारिश की...

आज की सारी रचनाएँ
ब्लॉग अपराजिता से...
कई पुरस्कारों से सम्मानित
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
अभिनन्दन करती हूँ.



मुहब्बत के जल से , भरे ताल पोखर,
झर-झर झरनों से यूं झंझावात हो।

मुहब्बत की नदी में,बहे धार बनकर,
दूर -सुदूर तक यही जलजात हो।




चाय पीने का मजा कुल्हड़ में है।
अजी प्याले में वो खुशबू कहाँ
जो हमारा प्यारा कुल्हड़ में है।
स्वदेशी माटी की सोंधी- सोंधी,
भीनी -भीनी खुशबू से भरपूर।
पवित्रता व प्यार के लिए
सारी दुनियाँ में मशहूर।




निकट बगीचे से मंगली चाची,
सूखी लकड़ियां बीनकर
लायी।शाम ढली तो
वह घर के आगे,
उसे जोड़कर
अलाव
जलायी।
अलाव देखकर लक्ष्मी दादी,
लाठी टेक लपकती आई।
पारो काकी भी जब
देखी,झट से
आई फेक
रजाई।




भौंरे छेड़ते हैं  तान कभी बागों में मधुर,
कानों में गूंजे तेरी गीतों की गुनगुनाहट है।

जाड़े की नर्म धूप में तपन मिलती थोड़ी,
एहसासों में लगता तेरे साँसों की गरमाहट है।

जब पेड़ों पर विहग चहककर कलरव करते,
क्यूँ लगता है तेरी बातों की फुसफुसाहट है।



मैं बुरी लगती हूँ महफिल में  तुझे,
दिल में मेरा अक्स डालकर देखो।

क्यूँ  इतराते हो खुद पर मीत मेरे,
मन में जरा यह सवाल कर देखो।

तुझसे मेरी बस यही गुजारिश है,
मेरे साथ खुद को ढाल कर देखो।
....
सादर

Sunday, September 19, 2021

766..दो गज जमीन के मोहताज हैं ..... बहादुरशाह 'ज़फर'

सादर नमस्कार
अंतिम मुगल बादशाह की एक हृदयस्पर्शी रचना
अंग्रेजों ने उन्हे बहुत सताया उनके अंतिम अल्फ़ाज़
अंग्रेजों को चेतावनी देते हुए उन्होंने कहा था

हिंदिओं में बू रहेगी जब तलक ईमान की, 
तख्त ए लंदन तक चलेगी तेग हिन्दुस्तान की।


लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में,
किस की बनी है आलम-ए-नापायेदार में।

बुलबुल को बागबां से न सैयाद से गिला,
किस्मत में कैद लिखी थी फसल-ए-बहार में।

कह दो इन हसरतों से, कहीं और जा बसें,
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़दार में।

एक शाख गुल पे बैठ के बुलबुल है शादमान,
कांटे बिछा दिए हैं दिल-ए-लाल-ए-ज़ार में।

उम्र-ए-दराज़ माँग के लाये थे चार दिन,
दो आरज़ू में कट गये, दो इन्तेज़ार में।

दिन ज़िन्दगी खत्म हुए शाम हो गई,
फैला के पांव सोएंगे कुंज-ए-मज़ार में।

कितना है बदनसीब 'ज़फर' दफ्न के लिए,
...
उनकी अंतिम इच्छा भी, उन्हें हिंदुस्तान में दफनाया जाए
पर उन्हें रंगून (म्यामार) में दफनाया गया

प्रस्तुत है आज की एकल रचना 

Saturday, September 18, 2021

765 ...ख़ाक ऐसी ज़िन्दगी पे कि पत्थर नहीं हूँ मैं

सादर अभिवादन
विदा मांगता सितम्बर
मैं ये विदाई के बारे में क्यों लिखती हूँ
यूंकि 2020 की त्रासदी झेल चुके मन को
तसल्ली मिले....कि 2022 जो आए
दोनों टीके लगा कर आए

अब रचनाएँ..

मन एक छोटे से पौधें की तरह होता है
वो उंमुक्तता से झुमता है
बशर्ते कि
उसे संयमित अनुपात में
वो सब मिले
जो जरुरी है
उसके विकास के लिये
जड़े फैलाने से कही ज्यादा जरुरी है




दौड़ती थी जिंदगी, दौड़ा इंसान था
थम गया पल में सभी कुछ, क्या कयामत हो गई

लोग कहते हों भले, जो होना है हो कर रहे
अनहोनियां होने लगी पर, क्या कयामत हो गई




रात की
स्याह दीवार पर
चांद का खूंटा
ढो रहा है
तारों की चुनरी को




औरतें पुल बनना नहीं चाहती हैं
इन समाज के ठेकेदारों ने
अपने निकम्मे झोली में से
उन्हें वही शिक्षा दी सदियों से




दायम  पड़ा हुआ तेरे दर पर नहीं हूँ मैं
ख़ाक ऐसी ज़िन्दगी पे कि पत्थर नहीं हूँ मैं

क्यों गर्दिश-ए-मुदाम  से घबरा न जाये दिल?
इन्सान हूँ, प्याला-ओ-साग़र  नहीं हूँ मैं

 या रब! ज़माना मुझको मिटाता है किस लिए
लौह-ए-जहाँ पे हर्फ़-ए-मुक़र्रर  नहीं हूँ मैं


सादर 

Friday, September 17, 2021

764..जन्म-दिवस पर आपको, नमन हजारों बार

सादर अभिवादन 



आज जन्म दिन

आदरणीय विश्वरत्न नरेन्द्र मोदी जी का
नरेंद्र मोदी भारत के अब तक के सबसे परिवर्तनकारी प्रधानमंत्री रहे हैं। 
लोकप्रियता और पराक्रम में उन्होंने जवाहरलाल नेहरू और 
इंदिरा गांधी को पीछे छोड़ दिया है। 
सुधारों में वह पी.वी. नरसिम्हा राव और अटल बिहारी वाजपेयी का रिकॉर्ड तोड़ चुके हैं। उन्होंने भारतीयों में ऐसी आकांक्षा जगाई, 
जैसी पहले कभी नहीं देखी गई थी। 
मोदी के नेतृत्व में, भारत ने सबसे बड़ा सत्ता परिवर्तन देखा, 
जिसमें बी.जे.पी. का उदय सत्ताधारी दल के रूप में एक 
नई राजनीतिक कहानी तथा शैली के रूप में हुआ, 
जिसने कांग्रेस की छह दशकों की श्रेष्ठता को समाप्त कर दिया।

दामोदर नर इन्द्र से, ऊँचा माँ का भाल।
अभिनन्दन जग कर रहा, ले पूजा का थाल।।
जन्म-दिवस पर आपको, नमन हजारों बार।
दीर्घ आयु की कामना, करता दोहाकार।।




क्या होता तो दिखता क्या है
भरम यवनिका डाल रहे
लाठी वाले भैंस नापते
निर्बल अत्याचार सहे
दूध फटे का मोल लगाया
ऐसा भी व्यापार किया।।



“ माँ देखो ,बेशुमार किरणों के साथ चकरी पूरे आँगन में चक्कर लगाती हुई घूमती है तो लगता है जैसे यह विष्णु भगवान का चक्र है जो अँधेरे को काट रहा है । या अँधेरे की नदी में बेहद चमकीला भँवर है जो धारा को अवरुद्ध कर फैलता जा रहा है या फिर आसमान से बिछडा कोई सितारा है जो जमीन पर गिर कर आकुल हुआ घूम रहा है .”




नेह का आनन्द है या बिछुड़ने की त्रासना।
कौन विश्लेषण करे या संश्लेषण में जुटे,
कर रहा अव्यक्त की जैसे सतत आराधना।
जिस घड़ी से आ गया सानिध्य में तेरे प्रिये!
हो गया मैं पतन या उत्थान के भय से परे।
इस दशा में कौन तुमको दूर अपने से करे।



रोम-रोम में
जिसके
एहसास की नम माटी में
अँखुआये थे
अबतक तरोताज़ा हैं
साँसों में घुले
प्रेम के सुगंधित फूल ।
....
आज मैं..
देवी जी अपने मोबाईल की पूजा करने में लगी है
आपके प्रसाद के दर्शन भी होंगे
सादर

Thursday, September 16, 2021

763 झूम के आई घटा, टूट के बरसा पानी

सादर अभिवादन
कल भगवान विश्वकर्मा जी की जयन्ती है
करबद्ध नमन
मोबाईल भी एक मशीन है
कल दुग्धाभिषेक कर के पुष्प अर्पण के
प्रसाद का चित्र ऑनलाईन प्रेषित करें
अब रचनाएँ...


मैं सोचने लगी कहीं हिन्दी दिवस के अवसर पर ऐसे वीडियो प्रचारित करना हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार के विरुद्ध यह अंग्रेजी परस्तों की साजिश तो नहीं? खैर छोड़िए कोई बात नहीं, मैं तो उनसे यही कहूँगी कि-
“छोड़ दो साजिशें तुम्हारी अब एक न चलेगी
हिन्दी है माथे की बिन्दी माथे पर ही सजेगी“

हर चाह नश्वर की होती है
शाश्वत को नहीं चाहा जा सकता  
वह आधार है चाहने वाले का
हर याचक आकाश से उपजा है
और पृथ्वी की याचना करता है



जब तक जीवन है तुम जियो शान से
समझौता मत करो आत्मसम्मान से

अगर आत्मविश्वास हृदय में खास है
धीरज की पूंजी, जो तुम्हारे पास है

रखो हौसला ,लड़ लोगे तूफान से
समझौता मत करो आत्म सम्मान से


किसने भीगे हुए बालों से ये झटका पानी
झूम के आई घटा, टूट के बरसा पानी

कोई मतवाली घटा थी कि जवानी की उमंग
जी बहा ले गया बरसात का पहला पानी


किसी राष्ट्र का
गौरव उसकी
आज़ादी है भाषा ,
अपने ही
कुल,खानदान ने
समझा इसे तमाशा,
पढ़ती रही
ग़ुलामों वाली
भाषा दिल्ली,काशी ।


बचपन ही से
सुनती आई हूं
आगे बढ़ने की बात ,
तो निश्चय ही
पीछे लौटना होता होगा
गलत या बुरा।
फिर फिर मैं लौट रही हूं
तीन-चार दशक पीछे,


सादर