Monday, February 5, 2018

ये कैसा बचपन.....डॉ. आरती स्मित


मैली कुचैली बोरी 
ठूँस-ठूँस कर 
भरे जानेवाले कचरे ---
जूठन और भी बहुत कुछ !
उन्हें बटोरते नन्हे हाथ 
बचपन के।
खेल नहीं खिलौने नहीं
कूड़े को उलीचती उँगलियाँ 
गंदगी से खुजलाता बदन 
फेंके जूठे केक और बिस्कुट 
छीनने को आतुर श्वान
क्रंदन करता अन्तर्मन!
ये कैसा बचपन?

आँखें है ख़्वाब नहीं 
क़दम हैं गति नहीं 
साँसें हैं जीवन नहीं 
ना हँसी-ठिठोली ना अल्हड़पन!
ये कैसा बचपन?

ललचाई नज़रें 
टुक-टुक देखती किताबें /
जूते और पोशाकें 
सुनतीं प्रार्थना की ध्वनि 
और हमउम्रों का शोर 
चेहरा धँस जाता बरबस 
लोहे के सींखचों में;
कुछ थाह पा लेने की ललक 
दरबान की कठोर आवाज़ 
रपेटने को खूंखार कुत्ते 
झुरझुरी खा जाता तनमन!
ये कैसा बचपन?

कूड़े की गठरी में 
कूड़े–सी ज़िंदगी !
माँ–बाप की गोद नहीं 
फुटपाथ का जीवन 
मंदिर में मुस्काते भगवान
आकुल मन है अनबूझ प्रश्न!
ये कैसा बचपन?

-डॉ. आरती स्मित

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