फागुन छायो अब बसंत पर
फगुनायौ अम्बर आकाश
अबीर गुलाल भर घट के भीतर
दियो उंडेल उषा नभ आज !
चटख केसरी रंग घुल गयो
थोड़ो टेसू दिनो डार
नव लाजवंती नार सरीखो
अम्बर सजो धजो सो जाय !
नीलाम्बुज ने ओढ़ी चुनर
हरीत पात की बूटी छाय
जल लागे ज्यू धूलि चुनरिया
सागर जल रंग दिनो जाय !
फागुन आयो बजे दुंदभी
मनइ चंग फगुनाई जाय
चहुँदिश बाज रहे नक्कारे
ऋतु गुलाल की हिय भरमाय!
डॉ. इन्दिरा गुप्ता ✍
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteखूबसूरत शब्दों से सजी
वाह!!सुंंदर रचना।
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