Saturday, October 30, 2021

802...ऐसे डाला जाता है चारा ..

ऐसे डाला जाता है चारा ..

बेटा, इस मंगलवार को छुट्टी लेकर
घर आ जाना, कुछ ज़रूरी काम है

अमित बोला मम्मी, ऑफ़िस में बहुत काम है,
बॉस छुट्टी नहीं देगा
राधिका बोली अरे बेटा
वो एक रिश्ता आया था तुम्हारे लिये,
बड़ी ही सुंदर लड़की है,

अमित अरे माँ, बस इतनी सी बात,
तुम कहो और मैं ना आऊँ,
ऐसा हो सकता है भला..???
मन में फूट रहे लड्डूओं की आवाज
छिपाते हुए बेटे जी ने जवाब दिया
सोच रही थी कि एक बार तुम दोनों मिल लेते तो...

बॉस को किसी तरह टोपी पहनाकर,
रात को बेटा घर पहुँचा
माँ ने बेटे से ज़्यादा बात नहीं की,
बस खाना  परोसा और दूसरे दिन
जल्दी उठ जाने को कहा
सुबह के चार बजे तक तो नींद
बेटे की आँखों  से कोसों दूर थी,

माँ ने चाय  देते हुए कहा,
बाथरूम में कपड़े  रखे हैं,
बदलकर आ जाओ
बाथरूम में पुरानी टी-शर्ट
और शॉर्ट्स देखकर
बेटे का दिमाग़ ठनका,
बाहर आकर बेटे ने पूछा पुराने कपड़े ??

माँ ने मनोरम मुस्कान बिखेरते हुए कहा
घर की सफाई का बोलती तो तू
काम का बहाना बनाकर टाल देता,...
बोल….टालता की नहीं…
चल अब जल्दी से ये लंबा वाला झाड़ू उठा

तेरा बाप भी बहाने बना कर
समाज की मीटिंग में गया है
वो भी लड़की की माँ से मिलने के नाम पर आ रहा है
तू तो अभी
दीवार के कोने साफ कर,
बहुत जाले हो गये हैं 
सादर..

Friday, October 29, 2021

801...आप क्यों भावुक हो गए

 

एक 22-23 साल का नौजवान। साधारण सी दिखने वाली शर्ट, पैरों मे सस्ती सी चप्पल, एक जूते के दुकान में घुसा।


"क्या दिखाऊ भैया?" दुकानदार ने पूछा।

"लेडिज के लिए अच्छी सी चप्पल दिखाना जो अंदर से नरम हो एकदम फूल जैसी। अच्छे कंपनी की दिखाना भैया।"

"कौन सी साइज में दिखाऊ भैया?"

मेरे पास माँ के पैर का नाप नहीं है उसके पैर का छाप लाया हू। उस पर से चप्पल दे सकते है क्या?"

दुकानदार को थोड़ा अजीब लगा। "इसके पहले ऐसे किसी को चप्पल दी नहीं किसी को। आप अपनी माँ को ही ले आइए ना। फिर बदली का झंझट नहीं रहेगा।"

"मेरी माँ गाँव मे रहती है। आज तक उसने कभी चप्पल पहनी नहीं। मेरी पढ़ाई पूरी करने के लिए उसने दिन रात मेहनत की। मेरी छोटी सी फीस भरने के लिए लोगों के घर बर्तन मांजे, खेतों मे काम किया। बस इतना ही कहती थी, बेटा पढ़, बड़ा आदमी बन। एक फैक्टरी मे नौकरी लगी है और आज पगार मिली है। उसमे से आज उसके लिए चप्पल लूँगा और अपने हाथ से पहनाऊंगा। देखूँगा उसके आँखों की खुशी। क्या कहेंगी सुनना है मुझे।" इतना कह के उसने वो कागज आगे बढ़ाया। दुकानदार ने देखा, एक मैला सा कागज जिसपे पैरों के निशान बने थे।

दुकानदार की आंखें भर आयी। उसने पैरों के निशानो को छुआ। खुद उठा और एक अच्छी चप्पल निकाल के लाया। ठीक ठाक अंदाजा लगा के उसने निशान के माप की चप्पल उसे दिखाई। लड़के ने चप्पल पसंद की और पैसे देकर जाने लगा।

"रुको बेटा, ये और एक जोड़ी चप्पल लेकर जाना। माँ से कहना, बेटे ने लायी चप्पल खराब हो गई तो दूसरे बेटे ने दिया जोड़ा पहन ले, पर फिर कभी नंगे पाँव मत घूमना।"

लड़के के चेहरे पर एक खुशी झलक रही थी।" ये कागज मेरे पास छोड़ के जा। तूने मेरे माँ की याद दिला दी आज मुझे।"दुकानदार ने लड़के से कागज लिया और अपने पैसों के ड्रावर मे रखा और उस कागज को नमस्कार किया।

दुकान के नौकर देखते रह गए। "उस कागज को गल्ले मे क्यों रखे सेठ?" एक ने पूछा। "अरे, ये सिर्फ पैरों के निशान नहीं, लक्ष्मी के पाँव का छाप है। जिस माँ ने अच्छे संस्कार दे कर अपने बच्चे को बड़ा किया, उसे जीतने की प्रेरणा दी, उसके पैर अपने भी दुकान मे बरकत ले आयेंगे, इसलिए तो उसको तिजोरी में रखा। "
सादर

Thursday, October 28, 2021

800 ..अपेक्षा से भरा हुआ चित्त निश्चित ही दुखी होगा



दुख का कारण
याद रखना, अपेक्षा से भरा हुआ चित्त निश्चित ही दुखी होगा।
मैंने सुना है कि एक आदमी बहुत उदास और दुखी बैठा है। उसकी एक बड़ी होटल है। बहुत चलती हुई होटल है। और एक मित्र उससे पूछता है कि तुम इतने दुखी और उदास क्यों दिखाई पड़ते हो कुछ दिनों से? कुछ धंधे में कठिनाई, अड़चन है? उसने कहा, बहुत अड़चन है। बहुत घाटे में धंधा चल रहा है। मित्र ने कहा, समझ में नहीं आता, क्योंकि इतने मेहमान आते—जाते दिखाई पड़ते हैं! और रोज शाम को जब मैं निकलता हूं तो तुम्हारे दरवाजे पर होटल के तख्ती लगी रहती है नो वेकेंसी को, कि अब और जगह नहीं है, तो धंधा तो बहुत जोर से चल रहा है! उस आदमी ने कहा, तुम्हें कुछ पता नहीं। आज से पंद्रह दिन पहले जब सांझ को हम नो वेकेंसी की तख्ती लटकाते थे, तो उसके बाद कम से कम पचास आदमी और द्वार खटखटाते थे। अब सिर्फ दस पंद्रह ही आते हैं। पचास आदमी लौटते थे पंद्रह दिन पहले; जगह नहीं मिलती थी। अब सिर्फ दस पंद्रह ही लौटते हैं। धंधा बड़ा घाटे में चल रहा है।

मैं एक घर में मेहमान था। गृहिणी ने मुझे कहा कि आप मेरे पति को समझाइए कि इनको हो क्या गया है। बस, निरंतर एक ही चिंता में लगे रहते हैं कि पांच लाख का नुकसान हो गया। पत्नी ने मुझे कहा कि मेरी समझ में नहीं आता कि नुकसान हुआ कैसे! नुकसान नहीं हुआ है। मैंने पति को पूछा। उन्होंने कहा, हुआ है नुकसान, दस लाख का लाभ होने की आशा थी, पांच का ही लाभ हुआ है। नुकसान निश्चित हुआ है। पांच लाख बिलकुल हाथ से गए।

अपेक्षा से भरा हुआ चित्त, लाभ हो तो भी हानि अनुभव करता है। साक्षीभाव से भरा हुआ चित्त, हानि हो तो भी लाभ अनुभव करता है। क्योंकि मैंने कुछ भी नहीं किया, और जितना भी मिल गया, वह भी परमकृपा है, वह भी अस्तित्व का अनुदान है।

-ओशो 

Wednesday, October 27, 2021

799 ...मेरी है हर साँस तुम्हारी। तुम पर ही मैं सब कुछ हारी

सादर अभिवादन
अक्टूबर जा जा जा
जा कर जल्दी से जनवरी को भेज
बच्चें तरस गए, स्कूल देखे
खाना बनाना सीख गए
अब वे सोचते कुछ और सीखें..
रचनाओं पर एक नज़र....



 तुम ढूँढ़ो दुनिया में ईश्वर।
मेरे तो तुम ही ईश्वर हो।

मेरी है हर साँस तुम्हारी।
तुम पर ही मैं सब कुछ हारी।


मुझे बीहड़ में बिठाकर
मेरे सपनें मलबें में तब्दील कर
तुम चाहते हो मेरी कलम से
रंगीन तितलियों की
उन्मुक्त उड़ान मैं लिखूं ?




शूल भरी राहों से तनिक ना घबराते,  
पग छालों में भी आह नहीं निकालते,

संकट में शोंणित और वेगवान रहता,
अपनी विजय पर कभी नहीं इतराते ।

अपने बचपन को याद करता हूँ,
जो अब सिर्फ यादों में बचा है थोड़ा-थोड़ा
और जो अब लौटकर फिर नहीं आनेवाला
पिता कभी-कभार बुदबुदाते हुए याद आते हैं,
साँप गुजर गया और हम लकीर पीटते रहे

बस
सादर


Tuesday, October 26, 2021

798 ..टूटता तिलिस्म कविता हमेशा कविता नहीं होती है

 सादर अभिवादन

आज पता नहीं क्यूं लिंक चुन ली गई मेरे द्वारा
शायद ईश्वर को पता हो
रचनाएँ देखें



विसंगति
कैसी अघोर
कविता कोमल तुम्हारी
किन्तु हृदय
कठोर !

कविता दीदी


आदमी काम से नहीं चिन्ता से जल्दी मरता है
गधा दूसरों की चिन्ता से अपनी जान गंवाता है

धन-सम्पदा चिन्ता और भय अपने साथ लाती है
धीरे-धीरे कई चीजें पकती तो कई सड़ जाती है


चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’


जान चाहेगा नहीं जान सा माना चाहे
चाहिए चाहने देना जो दीवाना चाहे

दिल का दरवाज़ा हमेशा मैं खुला रखता हूँ
कोई आ जाए अगर वाक़ई आना चाहे


चलते-चलते एक समीक्षा


"कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता/
कहीं ज़मीं नहीं मिलती..कहीं आसमां नहीं मिलता"



अवसाद . सन्नाटा .. अधजगी रातें
कान में बजती अनगिनत बेगैरत आवाज़ें
और टूटता तिलिस्म
कविता हमेशा कविता नहीं होती है
वह suicide note लिखने का अभ्यास भी हो सकती है
या ऱोज जीते - जी मरने का हलफ़नामा भी
..
बस
सादर

Sunday, October 24, 2021

797..मां की इक उंगली पकड़कर हंस रहा बचपन मेरा..देवमणि पांडेय


 फूल महके यूं फ़ज़ा में रुत सुहानी मिल गई
दिल में ठहरे एक दरिया को रवानी मिल गई

घर से निकला है पहनकर जिस्म ख़ुशबू का लिबास
लग रहा है गोया इसको रातरानी मिल गई

कुछ परिंदों ने बनाए आशियाने शाख़ पर
गाँव के बूढ़े शजर को फिर जवानी मिल गई

आ गए बादल ज़मीं पर सुनके मिट्टी की सदा
सूखती फ़सलों को पल में ज़िंदगानी मिल गई

जी ये चाहे उम्र भर मैं उसको पढ़ता ही रहूं
याद की खिड़की पे बैठी इक कहानी मिल गई

मां की इक उंगली पकड़कर हंस रहा बचपन मेरा
एक अलबम में वही फोटो पुरानी मिल गई

Thursday, October 21, 2021

796 जीवन का टॉनिक ..प्रस्तुति - शैलेन्द्र किशोर जारूहार



मैं अपने विवाह के बाद. अपनी पत्नी के साथ शहर में रह रहा था।

बहुत साल पहले पिताजी मेरे घर आए थे। मैं उनके साथ सोफे पर बैठा बर्फ जैसा ठंडा जूस पीते हुए अपने पिताजी से विवाह के बाद की व्यस्त जिंदगी, जिम्मेदारियों और उम्मीदों के बारे में अपने ख़यालात का इज़हार कर रहा था और वे अपने गिलास में पड़े बर्फ के टुकड़ों को स्ट्रा से इधर-उधर नचाते हुए बहुत गंभीर और शालीन खामोशी से मुझे सुनते जा रहे थे।
       
अचानक उन्होंने कहा- "अपने दोस्तों को कभी मत भूलना। तुम्हारे दोस्त उम्र के ढलने पर पर तुम्हारे लिए और भी महत्वपूर्ण और ज़रूरी हो जायेंगे। बेशक अपने बच्चों, बच्चों के बच्चों को भरपूर प्यार  देना मगर अपने पुराने, निस्वार्थ और सदा साथ निभानेवाले दोस्तों को हरगिज़ मत भुलाना। वक्त निकाल कर उनके साथ समय ज़रूर बिताना। उनके घर खाना खाने जाना और जब मौक़ा मिले उनको अपने घर खाने पर बुलाना।  
कुछ ना हो सके तो फोन पर ही जब-तब, हालचाल पूछ लिया करना।"      

मैं नए-नए विवाहित जीवन की खुमारी में था और पिताजी मुझे यारी-दोस्ती के फलसफे समझा रहे थे।

मैंने सोचा-  "क्या जूस में भी नशा होता है जो पिताजी बिन पिए बहकी-बहकी बातें करने लगे? आखिर मैं अब बड़ा हो चुका हूँ, मेरी पत्नी और मेरा होने वाला परिवार मेरे लिए जीवन का मकसद और सब कुछ है।

दोस्तों का क्या मैं अचार डालूँगा?"
लेकिन फ़िर भी मैंने आगे चलकर एक सीमा तक उनकी बात माननी जारी रखी।
मैं अपने गिने-चुने दोस्तों के संपर्क में लगातार रहा।

समय का पहिया घूमता रहा और मुझे अहसास होने लगा कि उस दिन पिता 'जूस के नशे' में नहीं थे बल्कि उम्र के खरे तजुर्बे  मुझे समझा रहे थे।  

उनको मालूम था कि उम्र के आख़िरी दौर तक ज़िन्दगी क्या और कैसे करवट बदलती है।    

हकीकत में ज़िन्दगी के बड़े-से-बड़े तूफानों में दोस्त कभी नाव बनकर, कभी पतवार बनकर तो कभी मल्लाह बनकर साथ निभाते हैं और कभी वे आपके साथ ही ज़िन्दगी की जंग में कूद पड़ते हैं। सच्चे दोस्तों का काम एक ही होता है- दोस्ती निभाना।

ज़िन्दगी के पचास साल बीत जाने के बाद मुझे पता चलने लगा कि घड़ी की सुइयाँ पूरा चक्कर लगाकर वहीं पहुँच गयीं हैं जहाँ से मैंने जिंदगी शुरू की थी।  

विवाह होने से पहले मेरे पास सिर्फ दोस्त थे।


विवाह के बाद बच्चे हुए।

बच्चे बड़े हो हुए। उनकी जिम्मेदारियां निभाते-निभाते मैं बूढ़ा हो चला।

बच्चों के विवाह हो गए और उनके अलग परिवार और घर बन गए।

बेटियाँ अपनी जिम्मेदारियों में व्यस्त हो गयीं।
उसके बाद उनकी रुचियाँ, मित्र-मंडलियाँ और जिंदगी अलग पटरी पर चलने लगीं।

अपने घर में मैं और मेरी पत्नी ही रह गए।
वक्त बीतता रहा।
नौकरी का भी अंत आ गया।
साथी-सहयोगी और प्रतिद्वंद्वी मुझे बहुत जल्दी भूल गए।

जो मालिक कभी छुट्टी मांगने पर मेरी मौजूदगी को कम्पनी के लिए जीने-मरने का सवाल बताता था, वह मुझे यूं भूल गया जैसे मैं कभी वहाँ काम करता ही नहीं था।

एक चीज़ कभी नहीं बदली- मेरे मुठ्ठी-भर पुराने दोस्त।

मेरी दोस्ती न तो कभी बूढ़ी हुई न ही रिटायर।

आज भी जब मैं अपने दोस्तों के साथ होता हूँ, लगता है अभी तो मैं जवान हूँ और मुझे अभी बहुत साल और ज़िंदा रहना चाहिए।  

सच्चे दोस्त जिन्दगी की ज़रुरत हैं, कम ही सही कुछ दोस्तों का साथ हमेशा रखिये।        

वे कितने भी अटपटे, गैरजिम्मेदार, बेहूदे और कम अक्ल क्यों ना हों, ज़िन्दगी के खराब वक्त में उनसे बड़ा योद्धा और चिकित्सक मिलना नामुमकिन है।

अच्छा दोस्त दूर हो चाहे पास हो, आपके दिल में धड़कता है।

सच्चे दोस्त उम्र भर साथ रखिये और हर कीमत पर यारियां बचाइये।
(ये है तो व्हाट्सएप्प आलेख पर इसे आलेख करे रूप में ढाला है
श्री शैलेन्द्र किशोर जारूहार जी ने)


Wednesday, October 20, 2021

795..संग-रेज़ो के सिवा कुछ तिरे दामन में नहीं ....शाहिद कबीर



 नींद से आँख खुली है अभी देखा क्या है
देख लेना अभी कुछ देर में दुनिया क्या है

बाँध रक्खा है किसी सोच ने घर से हम को

वर्ना अपना दर-ओ-दीवार से रिश्ता क्या है

रेत की ईंट की पत्थर की हो या मिट्टी की
किसी दीवार के साए का भरोसा क्या है

घेर कर मुझ को भी लटका दिया मस्लूब के साथ
मैं ने लोगों से ये पूछा था कि क़िस्सा क्या है

संग-रेज़ो के सिवा कुछ तिरे दामन में नहीं
क्या समझ कर तू लपकता है उठाता क्या है

अपनी दानिस्त में समझे कोई दुनिया 'शाहिद'
वर्ना हाथों में लकीरों के अलावा क्या है
-शाहिद कबीर 

Monday, October 18, 2021

794 ..गिरा हुआ आदमी ....गजेन्द्र भट्ट


सेठ गणपत दयाल के घर के दरवाजे के पास दीनू जाटव जैसे ही पहुँचा, उसने मकान के भीतर से आ रही रोने की आवाज़ सुनी। ठिठक कर वह वहीं रुक गया। कुछ रुपयों की मदद की उम्मीद लेकर वह यहाँ आया था। उसकी जानकारी में था कि सेठ जी आज घर पर अकेले हैं, क्योंकि सेठानी जी अपने बेटी को लेने उसके ससुराल गई हुई थीं। वह लौटने लगा यह सोच कर कि शायद सेठानी जी बेटी-नातिन को ले कर वापस आ गई होंगी, बाद में आना ही ठीक रहेगा। पाँच-सात कदम ही चला होगा कि दबी-दबी सी एक चीख उसे सुनाई दी। सड़क के दूसरी तरफ बैठा एक कुत्ता भी उसी समय रोने लगा था। किसी अनहोनी की आशंका से वह घबरा गया और वापस गणपत दयाल के घर की तरफ लौटा।

'किसकी चीख हो सकती है यह? सेठ जी की नातिन अगर आई हुई है तो भी वह चीखी क्यों होगी? क्या करूँ मैं?', पशोपेश में पड़ा दीनू दरवाजे के पास आकर रुक गया। तभी भीतर से फिर एक चीख के साथ किसी के रोने की आवाज़ आई। अब वह रुक नहीं सका। उसने निश्चय किया कि पता तो करना ही चाहिए, आखिर माज़रा क्या है! हल्का सा प्रहार करते ही दरवाजा खुल गया। दरवाजा भीतर से बन्द किया हुआ नहीं था। भीतर आया तो बायीं ओर के कमरे से आ रही किसी के रोने की आवाज़ और उसे चुप कराने के लिए धीमे स्वर में किसी के द्वारा धमकाये जाने की आवाज़ भी उसने सुनी। उसे लगा कि यह आवाज़ सेठ जी की ही हो सकती है।


स्तम्भित था दीनू! समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे वह! 'सेठ जी अपनी रोती-चीखती नातिन को तो यूँ धमका नहीं सकते।' -सहमा-सहमा वह कमरे के पास आया। भीतर से आ रही आवाज़ अब साफ सुनाई दे रही थी।

"रोना-चीखना बन्द कर! तू खुद ही आई है यहाँ। शोर मचाएगी तो तेरी ही बदनामी होगी। चुपचाप पड़ी रह।" -गणपत दयाल कह रहे थे।

"अंकल, मैंने बताया न आपको। मम्मी-पापा ने हाट में जाते समय कहा था कि घर पर अकेली मत रहना, गणपत चाचा के वहाँ चली जाना, इसलिए आई थी मैं। मुझे छोड़ दो, जाने दो प्लीज़!" -डरी-डरी यह आवाज़ किसी लड़की की थी।

अब सब्र नहीं कर सका दीनू! उसने जोर-से दरवाजे को धक्का दिया। दीनू की आशा के विपरीत दरवाजा तुरंत खुल गया। यह दरवाजा भी भीतर से बंद नहीं था।

 "कौन है बे?'-लड़की पर झुके गणपत दयाल हड़बड़ा कर खड़े हो गये।

"मैं दीनू! यह क्या कर रहे हो सेठ जी?"

"अरे, तू भीतर कैसे आ गया? बाहर का दरवाजा तो बंद था। कैसे खोला तूने?"- गणपत दयाल ने घबराहट पर काबू पाने की कोशिश की।

"दरवाजा भीतर से बन्द नहीं था। मैंने खटखटाने के लिए हाथ मारा तो खुल गया।" -दीनू ने जवाब दिया। कहते-कहते उसकी नज़र सामने पलंग पर पड़ी। एक लड़की आधे-अधूरे कपड़ों में पलंग पर लेटी मुँह पर हाथ धरे सिसक रही थी। उसका फ्रॉक पलंग पर ही एक तरफ पड़ा था। लड़की दीनू को देख कर पलंग पर उठ बैठी, कातर स्वर में उसके मुख से निकला - "दीनू काका..."

दीनू चौंका, वह गणपत दयाल के रिश्तेदार की चौदह वर्षीय बेटी आशा थी, जिनका घर सेठ जी के घर से तीन मकान की दूरी पर ही था।

"छिः सेठ जी, आपकी रिश्तेदार है यह! आपकी नातिन की उमर की बच्ची है! कुछ तो शरम करते!" -दीनू ने गणपत दयाल की ओर घृणा भरी नज़रों से देखा।

गणपत दयाल ने नहीं सोचा था कि एक छोटी जात का आदमी इतनी हिम्मत कर लेगा। उन्हें आश्चर्य व अफ़सोस भी हो रहा था कि वह बाहरी दरवाजा भीतर से बन्द करना भूल कैसे गए थे।

गाँव में उनका बहुत रुतबा था। कई लोग उनके कर्ज से दबे हुए थे। उन्हें भरोसा था कि दीनू तो एक मामूली गरीब चमार है, डपटने और लालच देने पर चुपचाप सिर झुका कर लौट जाएगा, सो गरज कर बोले- "तेरी इतनी हिम्मत! जा, भाग जा यहाँ से।... और खबरदार, किसी से कुछ बोला तो।" -उन्होंने जेब से सौ रुपये का एक नोट निकाल कर उसकी तरफ फेंका।

"सेठ जी, गरीब हूँ, पर इतना बेगैरत नहीं कि एक कागज़ के टुकड़े पर ईमान बेच दूँ। आप इस बच्ची को जाने दो यहाँ से।"

"अबे स्साले, चमार होकर जबान लड़ाता है।" -दीनू के मुँह पर थप्पड़ जड़ते हुए गणपत दयाल दहाड़े।

 दीनू सेठ जी की बहुत इज़्ज़त करता था और अपनी औक़ात से भी अनजान नहीं था। कई बार वह उनसे छिट-पुट मदद लिया करता था और बदले में कोई सेवा वह बताते, तो कर देता था।... लेकिन आज वह इस बड़े आदमी का असली रूप देख कर अपना आपा खो बैठा, बिफर कर बोला- "चमार हूँ, गरीब हूँ, मगर आपके जितना गिरा हुआ आदमी नहीं हूँ।"

इसके पहले कि गणपत दयाल कुछ सोच-समझ पाते, दीनू ने झपट कर उनकी कमर कस कर पकड़ ली और उन्हें पीछे धकेलते हुए आशा से कहा- "जाओ बिटिया, निकल जाओ यहाँ से।"

आशा ने पलंग से अपना फ्रॉक उठाया और कमरे से निकल भागी।

किंकर्तव्यविमूढ़ गणपत दयाल अब कुछ सावधान हुए। दीनू की पकड़ से उन्होंने स्वयं को मुक्त किया और उसे नीचे गिरा कर हाथ और दोनों पैरों से बेतहाशा मारने लगे। दीनू दोनों हाथों से खुद को बचाने की असफल कोशिश करता फर्श पर पड़ा पिटता रहा। आशा को बचाने का उसका उद्देश्य पूरा हो गया था। उसने सेठ जी पर हाथ नहीं उठाया, क्योंकि उसके भीतर उठे तूफ़ान में अब इतनी तेजी नहीं रही थी कि गाँव में स्थापित सामाजिक मर्यादा का उल्लंघन कर सके।


दीनू पिटते-पिटते व गणपत दयाल पीटते-पीटते निढ़ाल हो गये थे और दोनों ही अब कुछ कहने-करने की स्थिति में नहीं रहे थे। गणपत दयाल अब भी अपने मन को यही समझा रहे थे कि गाँव वाले सब-कुछ जानने के बाद भी कुछ नहीं बोलेंगे और बात को आई-गई कर देंगे।... और दीनू? जमीन पर पड़े, कराह रहे दीनू को पिटने से भी अधिक पीड़ा इस बात की हो रही थी कि पैसे की मदद नहीं मिल पाने के कारण सुबह से भूखे उसके बच्चों को अब शाम का खाना भी नसीब नहीं होगा।

-गजेन्द्र भट्ट 

Sunday, October 17, 2021

793 ..कुछ इंतिज़ार की आदत सी हो गई है ..निदा फ़ाज़ली

एक नज़्म ...निदा फ़ाज़ली



वो शोख शोख नज़र सांवली सी एक लड़की ....
जो रोज़ मेरी गली से गुज़र के जाती है
सुना है
वो किसी लड़के से प्यार करती है
बहार हो के, तलाश-ए-बहार करती है
न कोई मेल न कोई लगाव है लेकिन न जाने क्यूँ
बस उसी वक़्त जब वो आती है
कुछ इंतिज़ार की आदत सी हो गई है
मुझे
एक अजनबी की ज़रूरत हो गई है मुझे
मेरे बरांडे के आगे यह फूस का छप्पर
गली के मोड पे खडा हुआ सा
एक पत्थर
वो एक झुकती हुई बदनुमा सी नीम की शाख
और उस पे जंगली कबूतर के घोंसले का निशाँ
यह सारी चीजें कि जैसे मुझी में शामिल हैं
मेरे दुखों में मेरी हर खुशी में शामिल हैं
मैं चाहता हूँ कि वो भी यूं ही गुज़रती रहे

अदा-ओ-नाज़ से लड़के को प्यार करती रहे 

आज बस


Saturday, October 16, 2021

792...कोई शीशा ज़रूर टूटा है गुनगुनाती हुई खनक है वही

सादर अभिवादन
आज डॉ. बशीर बद्र की दो ग़ज़लें


 मुस्कुराती हुई धनक है वही
उस बदन में चमक दमक है वही

फूल कुम्हला गये उजालों के
साँवली शाम में नमक है वही

अब भी चेहरा चराग़ लगता है
बुझ गया है मगर चमक है वही

कोई शीशा ज़रूर टूटा है
गुनगुनाती हुई खनक है वही

प्यार किस का मिला है मिट्टी में
इस चमेली तले महक है वही

.....


कोई हाथ नहीं ख़ाली है
बाबा ये नगरी कैसी है

कोई किसी का दर्द न जाने
सबको अपनी अपनी पड़ी है

उसका भी कुछ हक़ है आख़िर
उसने मुझसे नफ़रत की है

जैसे सदियाँ बीत चुकी हों
फिर भी आधी रात अभी है

कैसे कटेगी तन्हा तन्हा
इतनी सारी उम्र पड़ी है

हम दोनों की खूब निभेगी
मैं भी दुखी हूँ वो भी दुखी है

अब ग़म से क्या नाता तोड़ें
ज़ालिम बचपन का साथी है

आज बस इतना ही

सादर 

Friday, October 15, 2021

791..भारतीय कैलेण्डर में तिथि छूटती- बढ़ती है

जय मातेश्वरी
आज विजया दशमी भी है
भारतीय कैलेण्डर में तिथि छूटती बढ़ती है
माताश्री का नवमी और विजया दशमी एक साथ

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।


आज माँ सिद्धिदात्री  दर्शन देंगी
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व- ये आठ सिद्धियाँ होती हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के श्रीकृष्ण जन्म खंड में यह संख्या अठारह बताई गई है। इनके नाम इस प्रकार हैं-

माँ सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को ये सभी सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ हैं। देवीपुराण के अनुसार भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वे लोक में 'अर्द्धनारीश्वर' नाम से प्रसिद्ध हुए।
...
आज विजया दशमी भी है..



दशहरा अथवा विजयदशमी राम की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह आदिशक्ति पूजा का पर्व है, शस्त्र पूजन की तिथि है। हर्ष और उल्लास तथा विजय का पर्व है। देश के कोने-कोने में यह विभिन्न रूपों से मनाया जाता है, बल्कि यह उतने ही जोश और उल्लास से दूसरे देशों में भी मनाया जाता जहां प्रवासी भारतीय रहते हैं।

इस पर्व को भगवती के 'विजया' नाम पर भी 'विजयादशमी' कहते हैं। इस दिन भगवान रामचंद्र चौदह वर्ष का वनवास भोगकर तथा रावण का वध कर अयोध्या पहुँचे थे। इसलिए भी इस पर्व को 'विजयादशमी' कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि आश्विन शुक्ल दशमी को तारा उदय होने के समय 'विजय' नामक मुहूर्त होता है। यह काल सर्वकार्य सिद्धिदायक होता है। इसलिए भी इसे विजयादशमी कहते हैं।

आज बस इतना ही

सादर 

Thursday, October 14, 2021

790..शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते..

जय मातेश्वरी
“सर्वमंगल मांगल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके.
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते..”
आज माँ महागौरी  के दर्शन 


एक कथा अनुसार भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी जिससे इनका शरीर काला पड़ जाता है। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान इन्हें स्वीकार करते हैं और शिव जी इनके शरीर को गंगा-जल से धोते हैं तब देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं तथा तभी से इनका नाम गौरी पड़ा। महागौरी रूप में देवी करुणामयी, स्नेहमयी, शांत और मृदुल दिखती हैं। देवी के इस रूप की प्रार्थना करते हुए देव और ऋषिगण कहते हैं 
“सर्वमंगल मांगल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके. 
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते..”। 
महागौरी जी से संबंधित एक अन्य कथा भी प्रचलित है इसके जिसके अनुसार, एक सिंह काफी भूखा था, वह भोजन की तलाश में वहां पहुंचा जहां देवी उमा तपस्या कर रही होती हैं। देवी को देखकर सिंह की भूख बढ़ गयी परंतु वह देवी के तपस्या से उठने का इंतजार करते हुए वहीं बैठ गया। इस इंतजार में वह काफी कमज़ोर हो गया। देवी जब तप से उठी तो सिंह की दशा देखकर उन्हें उस पर बहुत दया आती है और माँ उसे अपना सवारी बना लेती हैं क्योंकि एक प्रकार से उसने भी तपस्या की थी। इसलिए देवी गौरी का वाहन बैल और सिंह दोनों ही हैं।

आज बस इतना ही
कल माँ सिद्धिदात्री के दर्शन करिएगा

सादर 

Wednesday, October 13, 2021

789 ..नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

जय मातेश्वरी
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
आज माँ कालरात्रि  दर्शन देंगी


एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता |
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी ||
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा |
वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयन्करि ||

नवरात्रि की सप्तमी के दिन माँ कालरात्रि की आराधना का विधान है। इनकी पूजा-अर्चना करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है व दुश्मनों का नाश होता है, तेज बढ़ता है। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में सातवें दिन इसका जाप करना चाहिए।

ॐ ऐं ह्रीं क्रीं कालरात्रै नमः  

Tuesday, October 12, 2021

788..गोपियों ने भी कृष्ण की प्राप्ति मां कात्यायनी की पूजा अर्चना करके ही की थी

 जय मातेश्वरी


या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

आज माँ कात्यायनी  दर्शन देंगी
माँ कात्यायनी मंत्र फॉर लव मैरिज,  हम सभी लोग जानते हैं कि नवरात्रि के 9 दिनों में हर 1 दिन अलग-अलग माता रानी की पूजा की जाती है।  नवरात्री का जो छठवां दिन होता है वह मां कात्यायनी  का होता है। उस दिन हम मां कात्यायनी की पूजा अर्चना की जाती हैं।

आज हम मां कात्यायनी से ही संबंधित कुछ मंत्रों के बारे में आपको बताने जाएंगे जिसका उपयोग कर आप अपने जीवन में लव मैरिज को लेकर जिन समस्याओं से जूझ रहे थे वह समस्या खत्म हो जाएगी  और आप जरूर सफल होंगे मां कात्यानी का मंत्र उच्चारण करके।

मां कात्यायनी के मंत्र को जानने से पहले सबसे पहले हम यह चाहते हैं की हम मां कात्यायनी को जाने,उनकी क्या शक्ति है जो उनके मंत्र को पढ़ने से हमारा लव मैरिज हो सकता है ।आइए जानते हैं कुछ तथ्य मां कात्यानी के विषय में मां कात्यानी के पिताजी ऋषि थे और उनके पिता का नाम कात्यायन ऋषि था । इस वजह से उनको भी कात्यायनी के नाम से बुलाया जाता था। मां कात्यायनी की चार भुजाएं हैं । इनका वाहन सिंह है और लव मैरिज के लिए इनकी पूजा अर्चना करके सफलता  प्राप्त की जा सकती है।

गोपियों ने भी कृष्ण की प्राप्ति मां कात्यायनी की पूजा अर्चना करके ही की थी। गोपियों को सफलता मिली थी मां कात्यायनी की पूजा अर्चना करके इसलिए तब से लेकर अब तक जिन लोगों को भी लव मैरिज में बाधा विघ्न मिली है वह लोग मां कात्यायनी की पूजा अर्चना करके लव मैरिज के लिए अपने माता पिता को राजी कर अपने प्रेम संबंध में सफल हुए हैं।

अगर आप भी अपने माता पिता को मना कर उनको राजी करना चाहते हैं अपने प्रेम संपर्क के के लिए तो बिल्कुल भी चिंता मत कीजिए अगर आप मां कात्यायनी की पूजा अर्चना करेंगे तो आप 100% इस मंत्र उपासना में सफल होंगे और बिल्कुल लव मैरिज होगी आपकी इसके लिए आपको चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

जो भी व्यक्ति मां कात्यायनी का मंत्र उपासना उन की पूजा-अर्चना श्रद्धा से भक्ति से करेंगे वह लोग जरूर सफल होंगे ऐसा माना जाता है। अगर आप अपनी मर्जी से विवाह करना चाहते हैं या आप अपने आप किसी से प्रेम करते हैं और घर पर किसी वजह से कह नहीं पा रहे हैं तब मां कात्यायनी की पूजा कीजिए इससे आप आसानी से अपने घर में अपने मन की बात को रख पाएंगे और मनचाही शादी भी होगी आपकी।

अगर आपके कुंडली में विवाह में बाधा लिखा हुआ है तो भी घबराने की कोई जरूरत नहीं है मां कात्यायनी की पूजा आपके उस विवाह योग के बाधा को हटा देगा और आपका विवाह खुशी-खुशी उस व्यक्ति से हो जाएगा जिस व्यक्ति से आप  प्रेम करते हैं।

संपूर्ण ब्रज मंडल में मां कात्यायनी को अधिष्ठात्री  माता के रूप में भी जाना जाता है। मां कात्यायनी का संबंध दो ग्रह बृहस्पति एवं शुक्र से बहुत घनिष्ठ रूप से  है क्योंकि बृहस्पति महिलाओं के विवाह से संबंधित  होता है इसलिए इनका संपर्क बृहस्पति से जुड़ा हुआ होता है और दांपत्य जीवन से भी यह  जुड़ी होती है इस वजह से शुक्र का संबंध इन के साथ गहरा होता है। इसलिए अगर आप अपने दांपत्य जीवन में अपने वैवाहिक जीवन में खुश रहना चाहते हैं तो बृहस्पति और शुक्र के दिन मां कात्यायनी की पूजा अर्चना धूमधाम से करें।

इनकी पूजा-अर्चना लाल एवं पीले वस्त्र पहनकर गोधूलि बेला के समय करना चाहिए इससे माता संतुष्ट होती है एवं इनको शहद चढ़ावे में चढ़ाएं एवं इनको पीले फूल अर्पित कीजिए नैवेद्य चढ़ाएं।

कात्यायनी महामाये , महायोगिन्यधीश्वरी।
नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः।।

जय मातेश्वरी की

Monday, October 11, 2021

787....माता अपने भक्तों की सभी इच्छा पूर्ण करती हैं

जय मातेश्वरी


या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम
ऐसा माना जाता है कि स्कंदमाता की उपासना करने से मोक्ष के द्वार खुलते हैं और माता अपने भक्तों की सभी इच्छा पूर्ण करती हैं। ... माता की चार भुजाएं हैं, दायीं तरफ की ऊपर वाली भुजा में माता ने भगवान स्कंद को गोद में ले रखा है और नीचे वाली भुजाओं में कमल पुष्प विराजमान है।माता श्री को नमन जय मातेश्वरी की

इति शुभम.. 

Sunday, October 10, 2021

786..माँ कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं


मातेश्वरी की कृपा सब भक्तें पर  बरसे
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।'
अपनी मंद, हल्की हँसी द्वारा अंड अर्थात ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के रूप में पूजा जाता है। संस्कृत भाषा में कूष्माण्डा को कुम्हड़ कहते हैं। बलियों में कुम्हड़े की बलि इन्हें सर्वाधिक प्रिय है। इस कारण से भी माँ कूष्माण्डा कहलाती हैं
माँ कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। माँ कूष्माण्डा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं। यदि मनुष्य सच्चे हृदय से इनका शरणागत बन जाए तो फिर उसे अत्यन्त सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो सकती है।
जय मातेश्वरी की


Saturday, October 9, 2021

785 ..आज माताश्री माँ महागौरी

सादर नमन

आज माताश्री  माँ महागौरी

नवरात्रि उत्सव देवी अंबा (विद्युत) का प्रतिनिधित्व है। वसंत की शुरुआत और शरद ऋतु की शुरुआत, जलवायु और सूरज के प्रभावों का महत्वपूर्ण संगम माना जाता है। इन दो समय मां दुर्गा की पूजा के लिए पवित्र अवसर माने जाते है। त्योहार की तिथियाँ चंद्र कैलेंडर के अनुसार निर्धारित होती हैं। नवरात्रि पर्व, माँ-दुर्गा की अवधारणा भक्ति और परमात्मा की शक्ति (उदात्त, परम, परम रचनात्मक ऊर्जा) की पूजा का सबसे शुभ और अनोखा अवधि माना जाता है। यह पूजा वैदिक युग से पहले, प्रागैतिहासिक काल से चला आ रहा है। ऋषि के वैदिक युग के बाद से, नवरात्रि के दौरान की भक्ति प्रथाओं में से मुख्य रूप गायत्री साधना का हैं। नवरात्रि में देवी के शक्तिपीठ और सिद्धपीठों पर भारी मेले लगते हैं ।

आज बस
थक गए हैं, अपनी सारी उर्जा
खो चुकी हूँ
सादर


Friday, October 8, 2021

784..उच्च-वर्ग की सजी रसोई, मिडिल क्लास का चौका सूना

सादर अभिवादन
नवरात्रि चालू आहे
आज माताश्री दर्शन ब्रह्मचारिणी के रुप में

माँ दुर्गाजी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्तफल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता।

माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान ’चक्र में शिथिल होता है। इस चक्र में अवस्थित मनवाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।

इस दिन ऐसी कन्याओं का पूजन किया जाता है कि जिनका विवाह तय हो गया है लेकिन अभी शादी नहीं हुई है। इन्हें अपने घर बुलाकर पूजन के पश्चात भोजन कराकर वस्त्र, पात्र आदि भेंट किए जाते हैं।

आज की रचनाएँ..


उच्च-वर्ग की सजी रसोई, मिडिल क्लास का चौका सूना
कार्पोरेटी रेट बढ़ा कर, कमा रहे हैं हर दिन दूना।।

मध्यम-वर्ग अकेला भोगे, महँगाई की निठुर यातना
कौन यहाँ उसका अपना है, जिसके सम्मुख करे याचना।।




चुनावी चक्र चल गया। सारा नगर दहल गया।।
व्याख्यानबाजियाँ चलीं। वो जालसाजियाँ चलीं।।

होतीं सभाएँ शाम को। एकत्र कर तमाम को।।
कुछ ताल ठोंक बैठते। मूँछें गजब की ऐंठते।।




ज्ञानपीठ नालंदा मे था
गुरुजनों का प्रसाद
किसी जमाने में बच्चों
मैं रहा बहुत आबाद

राजा कुमार गुप्त ने
मुझे स्थापित करवाया
पाली भाषा में विद्यार्थी
करते पठन संवाद




मैं आज भी वहीं हूँ खड़ा, जहाँ से निकलती
थी एक धुंधली सी रहगुज़र, न जाने
कितनी बार उजड़ कर बसता
रहा, उस मोड़ के आगे
जो झिलमिलाता
सा है एक
ख़्वाबों
का शहर,


आज बस इतना ही
सादर


 

Thursday, October 7, 2021

783 ..आज माताश्री के पहले दर्शन शैलपुत्री के रुप में


सादर अभिवादन
नवरात्रि हिंदुओं का एक प्रमुख पर्व है। नवरात्रि शब्द एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है 'नौ रातें'। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दसवाँ दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है।
आज माताश्री के पहले दर्शन शैलपुत्री के रुप में


आज की रचनाएँ..



देवी दुर्गा जय महेश्वरी
राजेश्वरी, मात जगदम्बा,  
आश्विन शुक्ल नवरात्रि शारद
अद्भुत उत्सव कालरात्रि का !

देवी का आगमन  सुशोभन
उतना ही है भव्य प्रतिगमन,
जगह-जगह पंडाल सजे हैं
करते बाल, युवा सब नर्तन !




हर कोई यही चाहता है कि जब तक जिंदगी है वह स्वावलंबी बना रहे ! पटाक्षेप होने तक चलायमान स्थिति में रह सके ! सच भी है, जब तक इंसान क्रियाशील रहता है उसका शरीर भी साथ देता रहता है ! उम्र को सिर्फ एक अंक मानने वाले ज्यादा देर तक गतिशील बने रहते हैं ! पर इसके बावजूद इंसान अब इंसान ना रह कर मशीन बना दिया गया है ! जब तक काम करती है, बढ़िया ! अन्यथा उठा कर "स्क्रैप" में फेंक दो ! देश में यूँही नहीं सैंकड़ों की तादाद में वृद्धाश्रम खुलते जा रहे हैं ! वह भी वहां, जहां बचपन से ही माँ-बाप को भगवान का दर्जा देने की सीख दी जाती है ! वहां इन तनहा इंसानों को डोलते देख रूह कांप जाती है !!



कंजूस प्रेमी नहीं होता..हो नहीं सकता।
नहीं तो वह कंजूस नहीं हो सकता।
ये दोनों बातें एक साथ नहीं घट सकतीं;
ये विपरीत हैं। जितना तुम धन को इकट्ठा करते हो
उतना ही तुम्हारा प्रेम पर भरोसा कम है।
तुम कहते होः कल क्या होगा? बुढ़ापे में क्या होगा



मेरा प्रेम
था अलिंद के बाएं कोने पर
ऐसा रिक्त स्थान
जहाँ हमने सहेजी
सिर्फ व सिर्फ तुम्हारी मुस्कान
परत दर परत
चिहुंकती चौंकती खिलखिलाती
तो कभी मौन स्मित मुस्कान

सादर


Wednesday, October 6, 2021

782..ये अंक अवकाश की सूचना है

सादर अभिवादन
आज से अवकाश अंक शुरु
आपसे निवेदन
अंक नहीं पढ़ना हो तो न पढ़ें  
टिप्पणी नहीं देना हो तो न दें
ये अंक अवकाश की सूचना है
1000 अंक होते ही..ब्लॉग तो रहेगा पर
कोई नया अंक नही आएगा
अब तक आपने साथ दिया
आभार आप सभी को
सादर

आज के अंक मे महालया
पितृ पक्ष  की आखिरी श्राद्ध तिथि  को महालया पर्व  मनाया जाता है। यानी महालया के साथ ही श्राद्ध खत्म हो जाते हैं। वहीं महालया के साथ ही दुर्गा पूजा  के उत्सव की शुरुआत हो जाता है देखिय़े, सुनिए



सादर

Tuesday, October 5, 2021

781 ..हमारे रास्ते सारे स्वतः ही मिलतें जाएंगे

सादर अभिवादन
कल की प्रस्तुति में कोई टिप्पणी नहीं
से भी हो सकता है है..किसी ने सूचना न देखी हो
या , ये भी हो सकता है कि मैं सूचना देना भूल गई हूँ
चलो कोई बात नहीं, हमारे संग्रह में वृद्धि हुई

आज की रचनाएँ ..



तन्हाइयों में क़ैद था आँसू भी जल में था
ग़म भी तमाम रंग में खिलते कमल में था

महफ़िल में सबके दिल को कोई शेर छू गया
शायर का इश्क,ग़म का फ़साना ग़ज़ल में था




जब मैं बूढ़ा हो जाउंगा तब तुम भी मेरा हाथ पकड़ कर सड़क पार करना। आपकी यह शिक्षा मुझे बहुत अच्छी लगी।सचमुच आज वही स्थिति हो गयी। मेरे कार्यालय से आने का और आपके सब्जी लाने का समय एक ही है।जब मैं आपको सड़क पार करने में असमर्थ पाता हूं



बादलों से घिरी
अंधियारती शाम
या फिर
किसी की याद,
किसी का छोड़ जाना,
किसी मित्र का
हो जाना अजनबी




मुझे याद है
आज भी
तुम्हारी आंखों में
उम्र के सूखेपन के बीच
कोई स्वप्न पल रहा है
कोई
श्वेत स्वप्न।
तुम जानती हो
कोरों में नमक के बीच




खिजाएँ लौट जाएंगी सजन जब मुस्कुराएंगे ।
बहारें संग आयेंगी, भँवर भी गुनगुनाएंगे ।।

नहीं कोई भी गम होगा सजन जब साथ में होगा
हमारी रास्ते सारे स्वतः ही मिलतें जाएंगे ।

सादर