Saturday, February 29, 2020

281..हिंदी ब्लॉगिंग की बगिया पुनः हरी भरी हो

सादर अभिवादन
इस तारीख का
पुनरागमन फिर चार साल बाद
....
प्रकृति में इतने 
बदलाव भी न करें कि
प्रकृति आप में ही 
बदलाव कर दे
STOP CLIMATE CHANGE
BEFORE IT CHANGES YOU
...
इससे आगे कुछ नही कहना
रचनाओँ की ओर चलें ...

आँखों में उजियारा भरके,
आलस छीने नव विहान।
उम्मीदों की किरणें देकर,
जीवन का करता निर्माण।
सिंदूरी आभा संग चमके,

तकने लगे हैं शौक़ से आईने अब अंधे ।।
गंजे अमीरुल-ऊमरा रखने लगे कंघे ।।

जानूँ न वो कैसी बिना पर दौड़ते-उड़ते ,
ना पैर हैं उनके न उनकी पीठ पर पंखे ।।

नितांत निर्जन निरस 
सूखे अनमने 
विचार शून्य परिवेश में 
पनप जाती है वह भी,  
जीवन की तपिश
सहते हुए भी,  
मुस्कुरा उठती है वह, 

साँस मौसम की भी कुछ देर को चलने लगती 
कोई झोंका तिरी पलकों की हवा का होता 

काँच के पार तिरे हाथ नज़र आते हैं 
काश ख़ुशबू की तरह रंग हिना का होता 

एक मार्च को इस पुस्तक का विमोचन किया जाना है, 
तो दिल्ली में जमावड़ा होगा देश के जाने - माने हिंदी ब्लॉगरों का। 
विमोचन के बहाने ब्लॉगर मिलन इस कार्यक्रम की 
शोभा में चार चाँद लगा देगा। 

हिंदी ब्लॉगिंग की बगिया पुनः हरी भरी हो, 
इसे नई दिशा और दशा प्राप्त हो। इसी आशा और विश्वास 
के साथ कार्यक्रम की सफलता हेतु रेखा दी व 
पुस्तक के सभी लेखकों व पूरी सम्पादकीय टीम 
को हार्दिक बधाई व शुभकामनायें ...
....
आज
बस इतना ही
सादर





Friday, February 28, 2020

280....राष्ट्रीय विज्ञान दिवस

सप्रेम अभिवादन
भारत रत्न प्राप्त 
महान वैज्ञानिक प्रोफेसर सी.वी. रमन (चंद्रशेखर वेंकटरमन) ने 
सन् 1928 में कोलकाता में 28 फरवरी के दिन एक उत्कृष्ट वैज्ञानिक खोज की थी, जो ‘रमन प्रभाव’ के रूप में प्रसिद्ध है। इसी खोज की याद में भारत में सन् 1986 से प्रतिवर्ष 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस (नेशनल साइंस डे) मनाया जाता है।

अब चलिए रचनाओं की ओर ...

उसके पति की कही बातों पर नीरा के पिता कोई जबाब देते ; 
उसके पहले उसकी भाभी चिल्ला पड़ी : शादी के इतने सालों के 
बाद धमकी देने से हम डरने वाले नहीं हैं । आपको नीरा को 
ले भी जाना होगा और हम जमीन देने वाले भी नहीं , 
आप ही एक दामाद नहीं घर में |


हरे पीले रंग सजाए थाली में
श्याम न आए आज अभी तक
रहा इन्तजार उनका दिन और रात
निगाहें टिकी रहीं दरवाजे पर |
हुई उदास छोड़ी आस उनके आने की
पर आशा  रही शेष  मन के किसी कोने में


नमी बंधुत्त्व की हो मन में,
हृदय स्वप्न  गूँथी  माला है, 
चीर तिमिर की छाती को अब,  
सूरज उगने वाला है।


कुछ दूर चला मैं 
रास्ता अनजाना था 
लोग भी नए 
मौसम भी कुछ नया सा 

नए दरख़्त नई छांव 
नई इमारतें नए गांव 
रास्ता था मुझे चलना था 
रास्ते पर आगे बढ़ना था 


नहीं जानती मैं ही सब कुछ 
भूल चुकी हूँ या 
खाद्य सामग्री मिलावटी है 
या फिर पहले बड़े सराह-सराह कर 
खाने वालों के मुँह का 
ज़ायका बदल गया है ! 
पकवानों की थाली की तरह ही 
ज़िंदगी भी अब उतनी ही 
बेस्वाद और फीकी हो गयी है जैसे ! 
बिलकुल अरुचिकर, नीरस, निरानंद !
....
अब बस
कल फिर
सादर


Thursday, February 27, 2020

279..यह मत समझो, तुम अकेले हो


सादर अभिवादन
दिल्ली मे दंगा चालू आहे
अफवाहों का बाजार भी गर्म है
माननीय गूगल के एक न्यूज़ लेटर
में पढ़ी ये खबर...
कि पाकिस्तान नें
भारत का ध्यान पी.ओ.के से
हटाने के लिए सी.आई.ए के जरिए
शाहीनबाग में एक 
जलता हुआ कोयला(चिंगारी) डाला
कहां तक सच है ये तो 
ऊपरवाला जाने..
...
चलिए रचनाओं की ओर चलें



अज़ब जद्दोजहद में जी रहे हैं 
फटे हैं जिस्म, झण्डे सी रहे हैं 

हमारा कान कौव्वा ले गया है 
हमारे दोस्त दुःख में जी रहे हैं 

अचानक देशप्रेमी बढ़ गए हैं 
कुएँ में भाँग है सब पी रहे हैं 


क्यों   दिखता  नहीं 
एक  ज़िंदा  भारतीय
क्यों दिखती  नहीं
भूख  से कुलबुलाती
उसकी  अतड़ियाँ  ..!
उसकी  आशायें ,
उसकी हसरतें  ,
दिखती  कब  हैं 

प्रवक्ता हूँ, सियासत का।
दंगों में हताहत का हाल
सूरते 'हलाल' बकता हूँ,
खबरनवीसों में।
पहले पूछता हूँ,
थोड़ी खैर उनकी।
दाँत निपोरकर!
सुनाई देती है,


जलती बस्ती~ 
खड़ा है लावारिस 
संतरा-ठेला। 

शहरी दंगा~ 
एक सौ पचास है 
दूध का भाव।


समुद्र तुम्हारे सामने है,
डरो नहीं, मंथन करो,
हो सकता है, विष मिले,
पर अंत में अमृत मिलेगा.

यह मत समझो, तुम अकेले हो,
हिम्मत करो, आगे बढ़ो,
तुम्हारी मदद के लिए 
आ जाएगा कोई विष्णु कहीं से.
...अब बस
कल फिर
सादर...


Wednesday, February 26, 2020

278..अपना घर अपनों से बस आज बचाना है ।

सादर अभिवादन..
मन खिन्न है
सुनती और देखती हूँ
अपने ही अपनों के बैरी बने बैठे हैं।
राजनीति, राजनीति की तरह करिए
देश जलाकर राजनीति करने से 

क्या और किसे फायदा...
हानि तो राष्ट्रीय सम्पति 

की ही होती है....
अपने आहत होते हैं तो दुःख होता है
....
आज की रचनाएँ देखें..


पुरुषोत्तम उवाच... तंग गलियारे

माना, हम सब सह जाएंगे,
दंगों के विष, घूँट-घूँट हम पी जाएंगे,
आगजनी, गोलीबारी,
तन-बदन और सीनों पर, झेल जाएंगे,
लेकिन, मन की तंग गलियारों से,
आग की, उठती लपटें,
धू-धू, उठता धुआँ,
इन साँसों में, कैसे भर पाएंगे?


अनीता उवाच ...बीज रोप दे बंजर में

बीज रोप दे बंजर में कुछ,
यों कोई होश नहीं खोता,
अंशुमाली-सी ज्योति मन की,  
क्यों पीड़ा पथ में तू बोता।


विभा रानी श्रीवास्तव 'दंतमुक्ता'. ....किनारों पर वापसी

"अरे! नहीं... बिलकुल ज्यादा नहीं है । इतनी पुस्तकें तो यह एक महीने में पढ़ लेती है। विद्यालय से गृहकार्य मिला है, दो पुस्तकों को लेकर समुन्दर के किनारे बैठकर पढ़ें और छुट्टी खत्म होने के बाद कक्षा में पूरे अनुभव को सबसे साझा करें। पुस्तकालय में इंट्री फ्री और पुस्तकें मुफ्त में मिल जाने से हम अभिभावकों को बहुत सुविधा हो जाती है।"
"ग्रेट! काश भारत में भी यह लहर चलती और बचपन को असामयिक नष्ट होने से बचाया जा सकता।" इशिका कुछ करने की योजना सोच रही थी जब वह भारत वापसी करेगी।


कविता रावत कथन ...मतलबी इंसान से पालतू कुत्ता भला होता है

तलवार अपनी म्यान को कभी नहीं काटती है
उपकार की परछाई बहुत लम्बी होती है

एहसान का बोझ सबसे भारी लगता है
मतलबी इंसान से पालतू कुत्ता भला होता है


एक कड़ुआ सच उलूक के पन्ने से

‘उलूक’
उल्लू के पट्ठे
के
लिखे लिखाये
के
चक्कर में
नहीं
पड़ना है

अपना घर
अपनों से

बस

आज
बचाना है ।
...
आज बस
कल फिर
सादर



Tuesday, February 25, 2020

277..बेपरवाही ने अपना चोला ओढ़ लिया

स्नेहिल अभिवादन
इतिहास में घटित-घटनाएं, 
जन्म लिए व्यक्ति, विदा लिए महान व्यक्ति, 
पर्व और उत्सव से जुड़ी बहुत सी ऐसी बातें 
जो हमें कुछ सीख दे जाती है. और कहती है कि 
हमें भी अपने जीवन को जीनें का ढंग सीखना चाहिए. 
साथ ही कैसे संघर्ष, और उत्साह के साथ आगे बढ़ना है.
इस तरह की तमाम बाते सामने आती है
इस वर्ष आज का दिन याद किया जाएगा वो इसलिए
कल से दौरे पर आए अमेरिकी राष्ट्रपति
माननीय डोनाल्ड ट्रम्प आज भी भारत में हैं
....
अब चलिए चलें आज के दौरे पर..

मैं, 
मैं तो उस पार ..
छप छप करते 
पैर थम गए।  
उपेक्षा लौट आई, 
बेपरवाही ने 
अपना चोला ओढ़ लिया। 
झील में..  
खूबसूरत फूल 
खिल रहे थे।


शब्दों की चादर ओढ़े, 
घर से निकला... 
घूम रहा था 
अब लौटना चाहता है 
शब्द काफी नहीं
उसके लिए 
जो बयान करना चाहे 
मन अब 
मौन कहा चाहता है 
शब्द नहीं


रसभरे करे आज बहाने
मिसरी घोल,
फाँसों से चुभते हैं दिल में
कड़वे बोल।
छलता है मानव ही सबको
करके झोल,
छुपी हुई सच्चाई जैसे
कछुआ खोल।


कलुषित सौंदर्य,नहीं विचार सापेक्ष,
जटिलताओं में झूलता भावबोध हूँ मैं,
उत्थान की अभिलाषा अवनति की ग्लानि,
कल का अदृश्य वज्र मैं, मैं ज्वलित हूँ, 
एक पल ठहर प्रस्थान जलता वर्तमान हूँ मैं।


जो अनजाने कुहरों के पार डूब जाती है,
एक दिया उस चौराहे पर
जो मन की सारी राहें
विवश छीन लेता है,
एक दिया इस चौखट,
एक दिया उस ताखे,
एक दिया उस बरगद के तले जलाना,
जाना, फिर जाना,
...
अब बस
कल फिर
सादर




Monday, February 24, 2020

276...सुनो सखी ! कुछ मदद करोगी ? छत पर थोड़ा नीर रखोगी ?

सादर अभिवादन
ऑपरेशन ब्लॉगिंग का चल रहा है
हमने 1500 ब्लॉग फॉलो किए हैं
उसमें से नब्बे प्रतिशत ब्लॉग बंद हैं..
सत्यानाश हो इस मुए मोबाईल का
लोग लिखते तो हैं..पर फेसबुक
अथवा व्हाट्सएप्प पर चेंप देते हैं

उनकी चेंपी हुई वे चार पंक्तिया 
लिखइता का नाम बदल कर
मिनटों कॉपी होकर सारी दुनिया में
फैला दी जाती है
सभी ब्लॉगर भाई बहनों से निवेदन
अपने लिखने के पश्चात अंत में
यह टैग ज़रूर लगाएँ
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
बहरहाल चलिए कुछ रचनाओँ पर एक नज़र..

सुबह की ताजी हवा थी महकी
कोयल कुहू - कुहू बोल रही थी....
घर के आँगन में छोटी सी सोनल
अलसाई आँखें खोल रही थी....
चीं-चीं कर कुछ नन्ही चिड़ियां
सोनल के निकट आई......
सूखी चोंच उदास थी आँखें
धीरे से वे फुसफुसाई....
सुनो सखी ! कुछ मदद करोगी ?
छत पर थोड़ा नीर रखोगी ?


पीर जलाती आज विरह की,
बनती रीत,
मिले प्रेम में घाव सदा से,
बोलो मीत ।

विरह अग्नि में मीरा करती ,
विष का पान,
तप्त धरा पर घूम करें वो,
कान्हा गान ।


छुपी है क्यूँ रौशनी, रात की आगोश में!

विवश बड़ा, हुआ दिवस का पहर, 
जागते वो निशाचर, वो काँपते चराचर!
भान, प्रमान का अब कहाँ?
दिवा, खो चली यहाँ,
वो दिनकर, दीन क्यूँ है बना?
निशा, रही रुकी,
उस निशीथिनी की गोद में!


ब्लागिंग को जिंदा करने के लिये..
तो सभी ब्लागर बंधुओं से निवेदन है कि ब्लागिंग का यदि जीर्णोदार करना है तो रायता फ़ैलाना ही एक मात्र ईलाज है. जितना रायता फ़ैलाओगे उतनी ही ब्लागिंग जीवित होती जायेगी. ब्लागिंग के स्वर्णिम काल में कितना रायता फ़ैला हुआ रहता था? कसम से हमने तो कभी उस जमाने में घर में रायता या सब्जी नहीं बनाई. उसी रायते से दोनों टाईम की रोटी खा लेते थे….


ब्लॉगिंग की वापसी के शुभ संकेत के पार्श्व में 
पहले भी कई बार, कई अवसरों पर इसकी चर्चा हम कर चुके हैं कि कैसे इंटरनेट से परिचय बना और उसके बाद कैसे बड़े डरते-डरते ब्लॉगिंग आरम्भ की गई. इस मई में पूरे बारह वर्ष हो जायेंगे ब्लॉगिंग करते हुए. हालाँकि ब्लॉग अप्रैल में ही बना लिया गया था मगर कुछ अज्ञात से भय हावी थे, सो किसी तरह की पोस्ट नहीं लिखी गई. बहरहाल, एक बार ब्लॉगिंग आरम्भ हुई तो फिर आज तक रुकी नहीं है. ब्लॉगिंग के उस दौर में ब्लॉग बनाये जाने के बाद उसे लोगों पर पहुँचाना समझ से बाहर था. खोजबीन के दौरान ब्लॉग एग्रीगेटर जैसा कोई शब्द सुनाई दिया और फिर उससे जुड़कर न केवल अपने ब्लॉग की पहुँच अन्य लिखने वालों तक पहुँचाई वरन उनके ब्लॉग तक भी अपनी पहुँच बनाई. ब्लॉगिंग के उस दौर में लोगों की सक्रियता देखते ही बनती थी. कुछ नाम ब्लॉगिंग के उस्ताद माने-समझे जाते थे. उनका किसी ब्लॉग पर, खासतौर से नए ब्लॉगर के ब्लॉग पर, जाना ही अपने आपमें उपलब्धि बन जाया करती थी. 
आज अब बस
सादर
जय हो 
#हिन्दी_ब्लॉगिंग

Sunday, February 23, 2020

275..चांद तुम लेफ्टिस्ट से हो गए हो

सादर अभिवादन
होली नज़दीक है
है तो पवित्र उत्सव
पर कतिपय लोगों नें
इसमें गंदगी भर दी है
चलिए चलिए चलें रचनाएँ प्रतीक्षा में है...

साथ मिले जब इक दूजे का, 
कुछ भी हासिल हो जाए ।
शूल राह से दूर सभी हो, 
घने तिमिर भी छँट जाएँ।। 
मुट्ठी में उजियारा भर कर, 
दूर अँधेरा कर देना। 


उनकी आँखों से पैगाम मिला है
मेरी निगाहों को श्रंगार मिला है
कहीं धुल न जाए काजल
प्रिया का अक्स उसमें छिपा है |


बिल्ली
बनकर रोज
प्रगति की राह काटते,
खबरों के
मालिक
अफ़ीम सी ख़बर बाँटते,
सारे नकली
ताल-तबलची
रंग-राग में ।


वस्ल की रात आज आई है
बज उठीं है ये चूड़ियां शायद..।।

आग दिल में लगी बुझे कैसे
उठ रहा इस लिये धुआं शायद।।

उनके आने से बहार भी आई
खूब मचले ये शोखियाँ शायद।।


ए चांद ये सुना है
तुम जिहादी हो गए हो
चौदहवीं के चांद थे तुम
अब ईद के  ही हो गए हो !!

तुम  तो थे  प्रीतम  की
रचना का  सुंदर मुखड़ा
सुना है मुफलिसी की
रोटी भी हो गए हो !

Saturday, February 22, 2020

274..इक हाँ के इंतिज़ार में सदियां गुज़र गईं

सादर अभिवादन..
बीत गई फरवरी भी
अब करिए मार्च का इंतजार
दौड़ा चला आ रहा है
.....
चलिए नई-पुरानी कुछ रचनाओं पर एक नज़र..


नितीश तिवारी ...कितनी अच्छी हो तुम
romantic love poem
नाराज हो जाती हो,
फिर भी मान जाती हो,
कितनी अच्छी हो तुम,
जो हर पल मुझे चाहती हो।


ज़नाब मेंहदी अब्बास रिज़वी ....इक हाँ के इंतिज़ार में

मंज़िल मिलेगी मुझ को भरोसा रहा सदा,
नारा - ए - इंक़लाब लगाएंगे रात दिन।

इक हाँ के इंतिज़ार में सदियां गुज़र गईं,
मिलते जवाब नाज़ उठाएंगे रात दिन।



गुरुमिन्दर सिंह ...अख़बार और पत्रिका
My photo
क्या लिख छोड़ू इन पन्नों पर,
कौन पढ़ेगा क्यूँ पढ़ेगा,
इन पन्नों को,
कोई युग पुरुष तो हूँ नहीं,
न जन्मा हूँ,
कुलीनों की बस्ती में,
फिर क्योंकर कोई आकर्षित होगा,


पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा ....हे शिव

अर्पित है, दुविधा मेरी,
समर्पित, मन की शंका मेरी,
बस खुलवा दे, मेरे भ्रम की गठरी,
उलझन, सुलझ जाए थोड़ी,
जोड़ लूँ, मैं ये अँजुरी!


श्रीकान्त सौरभ ..अधूरी चाहत

"तू जा और वो धरमशाला का कमरा है न। वहीं बैठकर बतिया ले अपने राजा बाबू से। तब तक मैं इधर रहकर चौकीदारी करती हूं।" उसकी सलाह पर लड़की शर्माते हुए उधर चली दी। साथ में लड़का भी हो लिया।
...
आज बस
कल फिर
सादर...



Friday, February 21, 2020

273..ओस थे घास पर और नमी आंखों की शब्द शब्द पिघले

सादर अभिवादन....
आज 21 फरवरी
एक खास दिन

अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस
भाषाई और सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषावाद के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देना। 'मातृभाषा दिवस' २१ फ़रवरी को मनाया जाता है। १७ नवंबर, १९९९ को यूनेस्को ने इसे स्वीकृति दी। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य है कि विश्व में भाषाई एवँ सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा मिले।
...
आज महाशिवरात्रि है
सभी भक्तों का मनोकामना पूर्ण हो
......
अब चलें रचनाओं की ओर...

धीरे-धीरे से पाँव उठाती
चाल चली वो मध्धम-मध्धम
नैनों में काजल था श्यामल
सपने सजे थे उज्जव उज्जल
किससे कहे मन की वो बातें
लाज का पहरा झीना-झीना।

रची  थी हाथों में मेहंदी
रंग बहुत ही भीना-भीना।


ओस थे घास पर 
और नमी आंखों की 
शब्द शब्द पिघले 
पर 
पंक्तियों की कतार में 
कविता प्यासी रह गई !!


कुंकुम बिन्दी मेंहदी, काले-काले बाल।
रचकर दिखलाती हिना, अपना खूब कमाल।।

मेंहदी को मत समझना, केवल एक रिवाज।
सुहागिनों का गन्ध से, हिना खोलती राज।।


शरद चाँदनी से उजले हाथों में, 
मेहंदी के मोहक उठाये पात , 
पुलकित हृदय से इठलायी, 
हर्षित फ़ज़ा से झूमी साँझ।


हल्की गुलाबी मेहँदी रची तो दूल्हा  मिलेगा  हसींन 
गहरी रची तो आएगा ऐसा होगा जो मन का रंगीला 
ये हैं निशानी सुहाग  की ,लाली इसमें अनुराग की। 
....
आज बस इतना ही
कल फिर
सादर


Thursday, February 20, 2020

272..बादलों पर घर बनाया, ख्बाव देखा एक प्यारा

स्नेहिल अभिवादन..
आज की रचनाओं की ओर सीधे...

निम्न कोटि के हो रहे ,नेताओं के बोल,
मूल्यों को रख ताक पर,देते ये विष घोल ।
नायक जनता के बनें,करिए दूर विकार ।
अपने हित को त्यागिये,रखिए शुद्ध विचार।
याद करें संकल्प ये ,देश प्रेम आधार ।


इधर उनकी यंत्रवत शोक-प्रतिक्रिया पूर्ण हुई और संयोगवश उसी वक्त चौके से उनकी धर्मपत्नी की आवाज़ आई - " आइए जी बाहर .. खाना लगा रहे हैं। टी वी भी चालू कर दिए हैं। पिछले साल का पुलवामा वाला दिखा रहा है। आइए ना ... "
" आ गए भाग्यवान ! बस खाना खाने से पहले वाली 'शुगर' की दवा तो खा लेने दो।" फिर वाश-बेसिन में 'लिक्विड-शॉप' से हाथ धोते हुए बोले -" वैसे 'जिंजर-लेमन' तंदूरी 'चिकेन' की बड़ी अच्छी ख़ुश्बू आ रही है तुम्हारे 'किचेन' से..आज एक -दो रोटी ज्यादा बना ली हो ना? "
" हाँ जी! ये भी कहने की बात है क्या ? 


रेगिस्तान-वन खेत-खलिहान घर-द्वार, 
मानवीय अस्तित्त्व से जुड़ी बुनियादी तहें, 
इंसानी साँसों को दूभर बनाते अगणित बीज, 
गाजर घास बन गयी है अब मानवता की खीझ।

जीवन के इस कठिन सफर में,
चलते जाना मुश्किल जग में।
राह में कई बवंडर होंगे ,
कई शांत से झोंके भी।
कई राह के रोड़े होंगे ,
कई मील के पत्थर भी।

बसंत तेरे आगमन पर
खिलखिलाई ये धरा भी
इक नजर देखा गगन ने
तो लजाई ये धरा भी

कुहासे की कैद से अब
मुक्त रवि हर्षित हुआ
रश्मियों से जब मिला
तो मुस्कराई ये धरा भी


नाव लहरों पर उछलती,
दिख रहा उद्भ्रांत सागर
वायु के पर को लगाकर,
स्वप्न उड़ते आज तन धर ।
चाँदनी उतरी धरा पर
तब प्रिये ! तुमने पुकारा ।
कल्पना के गाँव में भी ,
कब बना है घर हमारा ।
....
आज रचनाएँ अधिक हो गई है
एक रचना सीधे फेसबुक से है
सादर