अम्बर सजा
इंद्रधनुषी रंग
बौराई दिशा।
चांद सितारे
ले उजली सी यादें
आये आंगन।
कौन छेडता
मन वीणा के तार
धीरे धीरे से।
दूधिया नभ
निहारिका शोभित
मन चंचल ।
हवा बासंती
बहती धीरे धीरे
गूंजे संगीत।
दरख्त मौन
बसेरा पंछियों का
सुबह तक।
सूरज जला
पहाड़ थे पिघले
नदी उथली ।
राह के कांटे
किसने कब बांटे
लक्ष्य को साधें।
-कुसुम कोठारी
लाजवाब...गागर में सागर समेटा आपने
ReplyDeleteवाह ... कुछ ही शब्दों में गहरी बात ...
ReplyDeleteलाजवाब हाइकू हैं सभी
राह के कांटे
ReplyDeleteकिसने कब बांटे
लक्ष्य को साधें।
बहुत ही सुंदर मनमोहक रचना। अन्तः को कहीं न कहीं स्पर्श कर गई। बधाई ।