Friday, February 23, 2018

लक्ष्य को साधें (हाइकु)....कुसुम कोठारी

अम्बर सजा
इंद्रधनुषी रंग
बौराई दिशा। 

चांद सितारे
ले उजली सी यादें
आये आंगन। 

कौन छेडता
मन वीणा के तार
धीरे धीरे से।

दूधिया नभ
निहारिका शोभित
मन चंचल ।

हवा बासंती
बहती धीरे धीरे
गूंजे संगीत।

दरख्त मौन
बसेरा पंछियों का
सुबह तक।

सूरज जला
पहाड़ थे पिघले
नदी उथली ।

राह के कांटे
किसने कब बांटे
लक्ष्य को साधें।

-कुसुम कोठारी 

3 comments:

  1. लाजवाब...गागर में सागर समेटा आपने

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  2. वाह ... कुछ ही शब्दों में गहरी बात ...
    लाजवाब हाइकू हैं सभी

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  3. राह के कांटे
    किसने कब बांटे
    लक्ष्य को साधें।
    बहुत ही सुंदर मनमोहक रचना। अन्तः को कहीं न कहीं स्पर्श कर गई। बधाई ।

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