पानी की बूँदें कहें, मुझको रखो सहेज।
व्यर्थ न बहने दो मुझे, प्रभु ने दिया दहेज॥
बादल बरखें नेह के, धरा प्रफुल्लित होय।
हरित चूनरी ओढ़ के, प्रकृति मुदित मन होय॥
ताल तलैया बावली, बनवाने का काम।
पुण्य कार्य करते रहे, पुरखे अपने नाम॥
निर्मल जल पीते रहे, दुनिया के सब लोग।
नहीं किसी को तब हुआ, इससे कोई रोग॥
अविवेकी मानव हुआ, कर बस्ती आबाद।
नदी सरोवर बावली, किए सभी बरबाद॥
जल को संचित कीजिये, ताल बांध औ कूप।
साफ स्वच्छ इनको रखें, नहीं छलेगी धूप॥
सरवर गंदे हो गये, तो जीवन दुश्वार ।
जल, थल, नभ-चर औ अचर, संकट बढ़ें हज़ार॥
जल जीवन मुस्कान है, समझो इसका अर्थ ।
पानी बिन सब सून है, नहीं बहाओ व्यर्थ॥
-मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’
वाह क्या बात है....लाजवाब
ReplyDeleteनिर्मल जल पीते रहे, दुनिया के सब लोग।
ReplyDeleteनहीं किसी को तब हुआ, इससे कोई रोग॥
और -
जल जीवन मुस्कान है, समझो इसका अर्थ ।
पानी बिन सब सून है, नहीं बहाओ व्यर्थ॥सुन्दर पक्तिया !
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