Saturday, June 12, 2021

703..गुलज़ार साहब के विचार, वर्तमान ब्रह्माण्ड के भविष्य पर -

थोड़े से करोड़ों सालों में
सूरज की आग बुझेगी जब
और राख उड़ेगी सूरज से
जब कोई चाँद ना डूबेगा
और कोई ज़मीं ना उभरेगी
दबे बुझे एक कोयले सा
टुकड़ा ये ज़मीं का घूमेगा भटका भटका
मद्धम खाकीस्तरी रोशनी में

मैं सोचता हूँ उस वक़्त अगर
कागज़ पे लिखी एक नज़्म कहीं
उड़ते उड़ते सूरज में गिरे
और सूरज फिर से जलने लगे !
- गुलज़ार

Monday, June 7, 2021

702..प्रकृति रम्य नारी सृष्टि तू

बार बार उड़ने की कोशिश

गिरती और संभलती थी

कांटों की परवाह बिना वो

गुल गुलाब सी खिलती थी

सूर्य रश्मि से तेज लिए वो

चंदा सी थी दमक रही

सरिता प्यारी कलरव करते

झरने चढ़ ज्यों गिरि पे जाती

शीतल मनहर दिव्य वायु सी

बदली बन नभ में उड़ जाती

कभी सींचती प्राण ओज वो

बिजली दुर्गा भी बन जाती

करुणा नेह गेह लक्ष्मी हे

कितने अगणित रूप दिखाती

प्रकृति रम्य नारी सृष्टि तू

प्रेम मूर्ति पर बलि बलि जाती

- रामकुमार भ्रमर