साँसों से नहीं जाती है जज़्बात की ख़ुशबू
यादों में घुल गयी है मुलाकात की ख़ुशबू
चुपके से पलकें चूम गयी ख़्वाब चाँदनी
तन-मन में बस गयी है कल रात की ख़ुशबू
नाराज़ हुआ सूरज जलने लगी धरा भी
बादल छुपाये बैठा है बरसात की ख़ुशबू
कल शाम छू गये थे तुम आँखों से मुझे
होंठों में रच गयी तेरे सौगात की ख़ुशबू
तन्हाई के आँगन में पहन के झाँझरे
जेहन में गुनगुनाएँ तेरी बात की ख़ुशबू
#श्वेता🍁
वाह श्वेता जी, जज्बातों को क्या शब्द दिए आपने कि जीवंत हो उठे.।..।
ReplyDeleteखूबसूरत लिखा, जेहन में गुनगुनाएं तेरे बात की खुशबू।
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत लाजवाब जज्बात की खुशबू.....
जेहन में गुनगुनाएँ तेरे बात की ख़ुशबू
वाहवाह...
खूबसूरत!
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत अहसास
ReplyDeleteआपकी अनुभूतियाँ मन को भिंगो देती हैं
सादर
बहुत खूबसूरत
ReplyDeleteएहसास भरी शब्दों से सजी
नायाब रचना
कल शाम छू गये थे तुम क्या बात है बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.....श्वेता जी
ReplyDeleteखूबसूरत एहसासों से भरी शानदार रचना. 👏👏
ReplyDeleteनिःशब्द!!!
ReplyDeleteवाह ! वाह !! क्या कहने हैं ! लाजवाब ! बहुत खूब आदरणीया ।
ReplyDeleteबहुत खूब👌
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