Wednesday, January 31, 2018

शब्द...........डॉ. प्रभा मुजुमदार


मिट्टी से सोच
आकाश की कल्पना
वक़्त से लेकर
हवा, धूप और बरसात
उग आया है
शब्दों का अंकुर
कागज़ की धरा पर
समय के एक छोटे से 
कालखंड को जीता
ज़मीन के छोटे से टुकड़े पर
जगता और पनपता
फिर भी जुड़ा हुआ है
अतीत और आगत से
मिट्टी की
व्यापकता से।
-डॉ. प्रभा मुजुमदार

Tuesday, January 30, 2018

माँ (छन्द : माहिया).....कृष्णा वर्मा

माँ का घर में होना
चौरे पर दीपक
रोशन कोना-कोना।

हर उफ़्फ़ पर आह भरे
कितना बदलो तुम
माँ की ममता ना मरे।

दुख-दर्द सभी पीती
खोजे नेह सदा
घर की ख़ातिर जीती।

माँ छोड़ न तू डोरी
बचपन ज़िंदा रख
ना मरने दे लोरी।

माँ तेरे साय तले
लगते बिटिया को
तीज-त्योहार भले।
-कृष्णा वर्मा

Monday, January 29, 2018

जल चढ़ाया तो सूर्य ने लौटाए घने बादल ....कुँअर बेचैन

जल चढ़ाया
तो सूर्य ने लौटाए
घने बादल ।

तटों के पास
नौकाएं तो हैं,किन्तु
पाँव कहाँ हैं?

ज़मीन पर
बच्चों ने लिखा'घर'
रहे बेघर ।

रहता मौन
तो ऐ झरने तुझे 
देखता कौन?

चिड़िया उड़ी
किन्तु मैं पींजरे में
वहीं का वहीं !

ओ रे कैक्टस 
बहुत चुभ लिया
अब तो बस 

आपका नाम
फिर उसके बाद
पूर्ण विराम!
- कुँअर बेचैन
सौजन्यः नीतू रजनीश ठाकुर

Sunday, January 28, 2018

इनकी ख़ुशबू से....सीमा गुप्ता "दानी"

इनकी ख़ुशबू से मुअत्तर है ये गुल्शन मेरा,
मेरे बच्चों से महकता है नशेमन मेरा।

खेलते देखती हूँ जब भी कभी बच्चों को,
लौट आता है ज़रा देर को बचपन मेरा।

मुझको मालूम है दरअस्ल है दुनिया फ़ानी,
मोहमाया में गुज़र जाए न जीवन मेरा।

तू जो आ जाए तो बरसात में भीगें दोनों,
सूखा-सूखा ही गुज़र जाए न सावन मेरा।

खो गई कौन सी दुनया में न जाने 'सीमा',
आ तरसता है तेरे वास्ते आँगन मेरा।
-सीमा गुप्ता "दानी"

Saturday, January 27, 2018

अश्रु नीर....दीपा जोशी

यह नीर नही
चिर स्नेह निधि
निकले लेन
प्रिय की सुधि

संचित उर सागर
निस्पंद भए
संग श्वास समीर
नयनों में सजे

युग युग से
जोहें प्रिय पथ को
भए अधीर
खोजन निकले

छलके छल-छल
खनक-खन मोती बन
गए घुल रज-कण
एक पल में
-दीपा जोशी

Friday, January 26, 2018

गणतंत्र दिवस....श्वेता सिन्हा

गणतंत्र दिवस को 
न समझो तुम एक त्योहार
भारत के गणतंत्र का
है सारे जग में मान
सभी धर्मों को देकर स्थान
रचा गया है संविधान 
हर सब भारत वासी का
  है पूर्ण इसमें विश्वास
असली गणतंत्र तो तभी बनेगा
जब कागज़ पर छपा स्वप्न
पन्नों से निकलकर
आम जन के जीवन को
ख़ुशियों से भर देगा
अनेकता में एकता 
न रहे एक संदेश भर
हर भारतवासी कहे स्वयं को
है हम भारत के सपूत
बसे मातृभूमि में मन प्राण
अपने अधिकारों की
सजगता ले आये खुशी अपार
एक ही कर्म ग्रंथ सबका
कहलाये संविधान
चलो आज संकल्प उठाये
दिन है पावन कुछ काम करे
सच्चे भारतवासी बनकर
हमसब भारत का सम्मान करे




Thursday, January 25, 2018

बसंत आया (ताँका)...........डॉ. सरस्वती माथुर

बसंत राग
धरा गगन छाया
सुमन खिलाने को
ऋतुराज भी
कोकिल सा कूकता
मधुबन में आया।
.......
सरसों झूमा
बासंती मौसम में
खेतों में लहराया
धरा रिझाने
तरूवल्ली सजाने
बसंतराज आया।
.......
बौराया मन 
कोयलिया पंचम
राग छेड़ती डोले
ओढ़ कर चूनर
बासंती रंग संग 
फूल पात पे डोले।
.......
प्रीत के गीत
गुनगुनाता आया
पीताम्बर डाल के
बसंत छाया
कोयलिया कुहकी
पलाश दहकाया।
-डॉ. सरस्वती माथुर

Wednesday, January 24, 2018

ना .....री .....डॉ. इन्दिरा गुप्ता

पल पल लांछित होती नारी
मूक निहारे दुनियाँ सारी
नारी को ही जागना होगा
तभी मिटेगी ये व्यभिचारी !

बिखरे भाव समेटने होगे
रक्ताभ नयन पुनि करने होगे
ज्वाला सी धधको तुम जग में
तजो विवशता और लाचारी !

नारी का मतलब है ना ....री
सर झुका काहे तू हारी
असत्य का प्रतिरोध करो तुम
दोयम दर्जा तू तो ना ...री !

घर समाज की धुरी तू है
काहे की लघुता लाचारी
उठो झाड़ लो धूल समय की
निरीह नहीँ तू है बलशाली !

डॉ. इन्दिरा गुप्ता ✍


Tuesday, January 23, 2018

है आती सदा तेरी


तन्हाई में बिखरी खुशबू-ए-हिना तेरी है।
वीरान खामोशियों से आती सदा तेरी है।।


अश्क के कतरों से भरता गया दामन मेरा।
फिर भी खुशियों की माँग रहे दुआ तेरी है।।


अच्छा बहाना बनाया हमसे दूर जाने का।
टूट गये हम यूँ ही या काँच सी वफा तेरी है।।


सुकून बेचकर ग़म खरीद लाये है तुमसे।
लगाया था बाज़ार इश्क का ख़ता तेरी है।।


वक्त की शाख से टूट रहे है यादों के पत्ते।
मौसम ख़िज़ाँ नहीं बेरूखी की हवा तेरी है।।

©श्वेता

Monday, January 22, 2018

विद्या की देवी को नमन

वन्दे सदा चेतसा ज्ञानशक्तिम्
हृदय से सर्वदा ज्ञानशक्ति प्रदात्री माँ सरस्वती की वंदना करती हूँ।
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥

या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥1॥
शुक्लाम् ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्यां जगद्व्यापिनीम्।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌॥
हस्ते स्फटिकमालिकाम् विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम्‌।
वन्दे ताम् परमेश्वरीम् भगवतीम् बुद्धिप्रदाम् शारदाम्‌॥2॥
...................

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥1॥

अर्थ : जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली मां सरस्वती हमारी रक्षा करें। ..

शुक्लाम् ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्यां जगद्व्यापिनीम्।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌॥
हस्ते स्फटिकमालिकाम् विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम्‌।
वन्दे ताम् परमेश्वरीम् भगवतीम् बुद्धिप्रदाम् शारदाम्‌॥2॥


अर्थ : शुक्लवर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत्‌ में व्याप्त, आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों से भयदान देने वाली, अज्ञान के अंधेरे को मिटाने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली और पद्मासन पर विराजमान बुद्धि प्रदान करने वाली, सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, भगवती शारदा (सरस्वती देवी) की मैं वंदना करती हूं..



Sunday, January 21, 2018

सच कहेगा..........’गुमनाम’ पिथौरागढ़ी


२१२२
सच कहेगा
तो मरेगा

दुश्मनी से
घर जलेगा

झूठ यारों
सर धुनेगा

हाल दिल का
कब सुनेगा

कोठरी दिल
ग़म पलेगा

दिल है दर्पण
सच कहेगा

साथ तू है
जग जलेगा
-’गुमनाम’ पिथौरागढ़ी

Saturday, January 20, 2018

मुखरित मौन.......


मौन भी मुखरित
साथ रहे 
जब राधा और श्याम
कंगन बिछुआ,
 पायल छनके 
 ‎संग मुरली के तान
मगन प्रेम में 
बिसराये कब 
भोर से हो गयी साँझ
नैन की 
आँख-मिचौली में 
क्या बतियाने का काम
पात कदंब के 
ले हिलकोरे 
जमना बैठी लहरे थाम 
हवा रागिनी 
गाये झूमकर 
है भँवरों का गुनगुन गान
मोहनी रस पी 
सुधबुध खो 
प्रीत सुनाये राधेश्याम 
©श्वेता
                                                   

लावारिस की गोद में वारिस

तू भी लावारिस है और मेरा भी नही कोई वारिस
एक दूसरे का अब हमको,बन कर रहना सहारा है

दर्द, भूख और जिंदगी के सितम, तुम पर पड़ने नही दूँगा
मेरी जिंदगी का अनमोल रिश्ता, मेरी मझधार का किनारा है

जिंदगी के हर सितम सहकर, हर ख़ुशी तुम्हारी खरीदूँगा
अब तू ही बनेगा मेरा वारिस, तू ही छोटा परिवार हमारा है

गोद ले लिया एक बचपन ने, दूसरे लावारिस बचपन को 
बया करती तस्वीर कहानी, लावारिस होना ही कसूर सारा है..!!
-लावारिस रचना
वारिस की तलाश

Friday, January 19, 2018

जय श्री गणेश.....

श्री गणेशाय नमः
।। संकटनाशनगणेशद्वादशनामस्तोत्रम्।।
नारद उवाच
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायुःकामार्थसिद्धये।।
प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं दि्वतीयकम्।
तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम्।।
लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजं च धूम्रवर्णं तथाष्टमम्।।
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्।।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो।।
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम्।।
जपेद् गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभेत्।
संवत्सरेण च संसिद्धिं लभते नात्र संशयः।।
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत्।
तस्य विद्या भवेत् सर्वा गणेशस्य प्रसादतः।।

।। इतिश्रीनारदपुराणे संकटनाशननाम गणेशद्वादशनामस्तोत्रं सम्पूर्णम्।।