Saturday, August 31, 2019

100..कितने पी बस गिने कितने हैं मगर किसी को ना बतायें

हो गए पूरे सौ..
अशेष शुभकामनाएँ

अगस्त की विदाई...
आगमन नौवें महीनें का..
अब 100% उम्मीद है की
2020 आएगा ही....
सादर अभिवादन...
आइए रचनाओं डालें एक नज़र...

100 वाँ जन्मदिन मुबारक हो माझा ...डॉ. जेन्नी शबनम

जन्मदिन मुबारक हो माझा! 
सौ साल की हो गई तुम, मेरी माझा। 
गर्म चाय की दो प्याली लिए हुए 
इमा अपनी माझा को जन्मदिन की बधाई दे रहे हैं।
माझा कुछ नहीं कहती बस मुस्कुरा देती है। 
इमा-माझा का प्यार शब्दों का मोहताज़ कभी रहा ही नहीं। 
चाय धीरे-धीरे ठंडी हो रही है। 
माझा अपने कमरे में नज़्म लिख रही है 

टिकुली की माला... नूपुर शांडिल्य

पीला गेंदा, नारंगी गेंदा, 
मोगरा, रजनीगंधा, हरसिंगार, 
बेला, जूही और ये गुलाब !
टिकुली फूली नहीं समा रही थी ! 
सात साल की इस नन्ही परी  के हाथों में 
फूलों से भरी टोकरी नहीं, 
फूलों की घाटी ही सिमट आई थी !


क्या .............ज्योति सिंह
क्या कहा जाये 
क्या सुना जाये 
इस क्या से आगे 
यहाँ कैसे बढ़ा जाये 
समझ आता नहीं , 
क्योंकि ये दुनिया अब 
पहले जैसे सीधी रही नहीं , 


यह विश्राम की वेला है .... श्रीमति मुकुल सिन्हा

दिन ढ़ल चुका 
सांझ घिर आई 
शरीर थक चुका 
अब यह विश्राम की वेला है 
बंधनों में जकड़े चित्त को 
अब मुक्ति चाहिए 
चिर निद्रा में जाने से पहले
कर लूं खुद को थोड़ा निर्भार 
दिल पर कोई बोझ न रहे 

चलते-चलते चलें चलें

उफनती 
नदी में 
उछलती 
नावों में 
अफीम ले के 
थोड़ी सी 

हो सके 
तो 
सो जायें 

खबर 
मान लें 
बेकार सी 
फिसली हुई 
‘उलूक’ 
के 
झोले के छेदों से 

जी डी पी 
पी पी पी 
जैसी 
अफवाहों को 

सपने देखें 

अब बस..
चल चलें कुछ काम करें
सादर











Friday, August 30, 2019

99..कोरे कागज पर उतर कर .ये अमर हो जायेंगे

पड़ गया 99 के चक्कर में
ये ब्लॉग भी
अब 100 भी होगा

त्योहार पोला की शुभ कामनाएँ
हमारे छत्तीसगढ़ मे पहली बार
सार्वजनिक अवकाश घोषित हुआ है
आइए चलें आज की रचनाओँ की ओर...

रूकी हुई है कलम 
टिकी हुई कागज पर 
कि कोई ऐसी बात कह दूँ 
कोई सत्य ऐसा लिख दूँ 
कि आसमान का पट सरक 
सहसा ही सतरंगी धूप निकल आये... 

दिन प्रतिदिन 
मुझसे   
यूँ दूर जाता जा रहा है
जैसे 
साल का पहला दिन  
हर आते नए दिन के साथ 
दूर होता जाता है  

आज रात चाँद
ज़रा देर से
खिड़की पर आया
था भी कुछ अनमना सा
पूछा .... तो कुछ बोला नहीं
शायद उसने सुना नहीं
या फिर अनसुनी की
राम जाने....

ख्वाब वही 
ख्वाहिश वही 
अल्फाज वही 
ज़ुबां वही , 
फिर रास्ते कैसे 
जुदा है सफ़र के , 

कोरे कागज पर उतर कर .
ये अमर हो जायेंगे ;
जब भी छन्दो में ढलेंगे ,
गीत मधुर हो जायेंगे ;
ना भूलूँ जिन्हें उम्र भर
बन प्रीत के तराने रहो तुम !

दूर दूर तक 
फैली सघन  
नीरवता,  
निर्जनता,  
हड्डियाँ पिघलाती  
जलाती धूप.  
सूखता कंठ,  
मृतप्राय  
शिथिल तन से  
चूता शोणित स्वेद

ताजे अखबार की ताजी खबर

घर 
पूरा 
हिल रहा है 

और 
तेरा 
‘फॉग’ 
चल रहा है 
‘डबल क्रॉस’ 
चल रहा है 

खुश्बुओं 
का 
जोर है 

बस 
फैलने 
फैलाने को 
मचल रहा है
....
आज के लिए इतना ही
आज्ञा दें
सादर





Thursday, August 29, 2019

98...हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद और भारत का खेल दिवस....

 स्नेहाभिवादन !
आज की सांध्य प्रस्तुति में सभी का हार्दिक स्वागत….
"स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है"
इस कथन का महत्व सर्वविदित है ।
आज हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का जन्म दिवस है ..
सम्पूर्ण राष्ट्र को अनन्त  बधाईयाँ । 
देश में खेलों को बढ़ावा देने के लिए 
हर वर्ष 29 अगस्त के दिन को हर्षोल्लास के साथ
"खेल दिवस" के रूप में मनाया जाता है । व्यस्त 
दिनचर्या में हम सभी को थोड़ा समय शारीरिक गतिविधियों को अवश्य देना चाहिए ।
इसी संकल्प के साथ पढ़ते आज के कुछ चयनित सूत्र---

ध्यानचन्द,  चाँद की रोशनी में हॉकी का अभ्यास करते थे
इस नाते ‘ध्यानचन्द सिंह’ से ‘ध्यानचंद’
 हुये। हॉकी को जानने और मानने वाले मानते थे
 कि ध्यानचन्द की हॉकी में चुम्बक लगा हुआ है। 
कई बार अन्तर्राष्ट्रीय मैच खेलने से पहले उनकी
 हॉकी स्टिक की जाँच की गयी। एक बार उसे 
तोड़कर भी देखा गया। वियना में ध्यानचन्द की 
एक प्रतिमा है जिसमें चार हाथ बने है। चारों में 
हॉकी स्टिक थामे हुये है।  पुनः राष्ट्रीय खेल के बादशाह के जन्मदिन पर अनन्त बधाई।

★★★

आम प्रचलित भाषा में कहूँ तो मुझे भी तुमसे मिलना है बिछड़ना नही है, मुझे भी तुमसे दूर नही रहना तुम्हारे बहुत करीब रहना है, मुझे भी अकेले रोना नही तुम्हारे साथ हँसना है, मुझे भी तड़प के मरना नही तुम्हारे साथ खुल के जीना है। मुझे नही पता कि मैं तुम्हारे बिना कैसे और कितना जी पाऊंगा पर इतना बता दूँ कि जब तुमसे पहली बार मिला था, तभी तुम्हारा एक हिस्सा अपने साथ ले आया था।

★★★

शून्य से आए हैं
शून्य में समा जाएंगे
शून्य के रहस्य को
हम फिर भी न समझ पाएंगे

शून्य में ब्रह्म छुपा
शून्य है परमात्मा
अनेकों रहस्य लिए
शून्य ही है आत्मा

★★★

हमारे बहुत से पर्वतवासी मित्रों की और हमारे
 पुरबिया मित्रों की ज़ुबानों में, एक ऐसी मशीन 
फ़िट होती है जो ‘श’ को ‘स’ में और ‘स’ को 
‘श’ में ऑटोमेटिकली बदल देती है. इस से – ‘क़िस्मत’, ‘किश्मत’ में बदल जाती है और
 ‘कोशिश’, ‘कोसिस’ में तब्दील हो जाती है.
मेरे एक बिहारी मित्र का गला बहुत अच्छा था. मैथिली के और भोजपुरी के लोकगीतों को गाने में
उनका कोई सानी नहीं था लेकिन उनको 
मुहम्मद रफ़ी की और जगजीत सिंह की ग़ज़लें 
गाने का बहुत शौक़ था-
‘तेरा हुश्न रहे, मेरा इस्क रहे तो, 
ये शुबहो या साम, रहे न रहे ---’
और -
‘शरकती जाए है, रुख शे नकाब, 
आहिश्ता-आहिश्ता --- ’
मित्र की ऐसी ग़ज़लें सुनकर मैं या तो अपना सर धुनने लगता था या
फिर उनका गला दबाने के लिए दौड़ पड़ता था.

★★★

नामुमकिन को मुमकिन करना
सबके वश का काम नहीं,

हुई सफलता उसी को हासिल
हार भी जिसके लिए हार नही ।

★★★

शुभ संध्या
🙏
"मीना भारद्वाज"















Wednesday, August 28, 2019

97....तन के मोह में समझ न आया

स्नेहिल नमस्कार
-------
जीवन दर्शन पर कुछ पंक्तियाँ
-----
लोलुप मन मेरा कितना तड़पा
तृप्ति,अतृप्ति का रोना रो
तन के मोह में समझ न आया
यह जनम-मरण का फेरा है

मनु मुसाफ़िर आजीवन भटका
जग ही सर्वस्व समझ बैठा
अंत समय फिर प्रश्न में उलझा
अब कौन धाम तेरा डेरा है?

★★★★★


नाम इतने दिए मुझे तूने  
नाम इतने दिए तुझे मैंने  
कभी कोई कहीं तो सुनता होगा 
सुन के कैसे तू सह पाता है !

★★★★★


जज़्बात छिपाये तो 

टीस उठेगी 

छिपाने की जगह दिखाया भी करो 

ज्यादा दिन दूर रहने से 

दूरियां बढ़ जाती हैं

★★★★★


दरअसल मेरी कोशिश
तुम्हें, तुम्हारी सारी ख़ूबसूरती के साथ
एक प्रेम कविता बना देने की थी

जिसमें तुमको ज़िंदा रहना था
जैसे मेरा प्यार ज़िंदा है
तुम्हारे चले जाने के बाद भी

मैंने कहा था
तुमसे ख़ूबसूरत
कोई कविता नहीं

★★★★★


पकड़ी गयी अधिकतर
मछलियों के गले में कांटे फंसे मिले  

अपवाद रहीं वे मछलियाँ
जिनके कांटें खाने वाले के गले में फंसे

फिर भी मछलियाँ
शिकारी का विलोम नही.

★★★★★★★


आँखों में गुज़ारा है तुमने, 
रात का हर पहर ,
ठुड्डी टिकाये रायफ़ल पर,  
निहारा है खुला आसमान, 
चाँद-सितारों से किया, 
 बखान अपना फ़साना गुमनाम 

★★★★★★
और चलते-चलते
चंद पंक्तियाँ

अनायास भावनाओं की
बहती बयार संग बहती हुई
तुम्हारे मन की कपूरी-सुगन्ध
पल-पल .. निर्बाध .. निर्विध्न ..
घुलती रहती है हर पल ..
निर्विरोध .. निरन्तर ..
मेरे मन की साँसों तक

★★★★★

आज की शाम का यह मुखरित मौन
आप सभी को कैसा लगा?
आप सभी की प्रतिक्रियाओं
 की प्रतीक्षा रहती है।

#श्वेता सिन्हा 


Tuesday, August 27, 2019

96...धूप में कुम्हलाना मत ....

 स्नेहाभिवादन !
"सांध्य दैनिक मुखरित मौन" की प्रस्तुति में 
मेरी ओर से आप सब का हार्दिक स्वागत …
अब आपके समक्ष पेश हैं ...
आज के चयनित सूत्र---


समय की गणना के लिए सप्ताह एकमात्र ऐसी इकाई है जो किसी प्राकृतिक घटना पर आधारित नहीं है । समय की अन्य सभी इकाइयां जैसे, वर्ष, महीना, दिन, घटी, घंटा, किसी न किसी प्राकृतिक घटना से संबंद्ध हैं । चंद्रमा की घटती-बढ़ती कलाओं के आधार पर दिनों की गणना की प्रक्रिया आदिम लोगों ने प्रारंभ की थी, किसी गणितज्ञ या वैज्ञानिक ने नहीं ।

◆◆◆

सूने घर में किस तरह सहेजूँ मन को।
पहले तो लगा कि अब आईं तुम, आकर
अब हँसी की लहरें काँपी दीवारों पर
खिड़कियाँ खुलीं अब लिये किसी आनन को।

◆◆◆

धूप से कुम्हलाता पौधा देखा है? जो कहीं थोड़ी सी छाँव तलाशता दिखे? कैसे पता होता है पौधे को कि छाँव किधर होगी... उधर से आती हवा में थोड़ी रौशनी कम होगी, थोड़ी ठंड ज़्यादा? किसी लता के टेंड्रिल हवा में से माप लेंगे थोड़ी छाँव?

◆◆◆

हवाओं में ऐसी ख़ुशबू पहले कभी न थी
ये चाल बहकी बहकी पहले कभी न थी

ज़ुल्फ़ ने खुलके उसका चेहरा छुपा लिया
घटा आसमा पे ऐसी पहले कभी न थी

◆◆◆

यूँ बातों में कहें लोग कुछ भला-बुरा 
 नहीं मगर यह दिल बदला आघात में

 क्या दिन थे जब बैठे हम बिन बात भी
 अब फुरसत है कहाँ किसे दिन रात में

◆◆◆

शुभ संध्या
🙏
"मीना भारद्वाज"

Monday, August 26, 2019

95... "लकड़ भी हज़म ,पत्थर भी हज़म "

सादर अभिवादन
जाना है..
जाएँगे..
जाएँगे जरूर..
याद आ रही है
बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्‍टी चटनी-जैसी माँ
माँ अब नहीं है
भाभी तो है..

चलिए देखें आज के अंक मे क्या है...

अब ज़िन्दगी के 50 साल तक "खुद को मैं "यह समझने वाली कि "लकड़ भी हज़म ,पत्थर भी हज़म " ,पेट को अपने खूब लाड़ से खिलाती पिलाती रही , पर अचानक एक दिन पेट को न जाने क्या सूझी खाने ले जाने वाली नली को रिवर्स गेयर में चलाने लगा ,अब जो लकड़ ,पत्थर हज़म कर रहा था पेट वो खिचड़ी ,दलिया पर भी अटक अटक के उनको भी वापस गले के रास्ते बाहर करने  लगा । 
पेट की तो हो गयी "कलाकारी" और अपनी जेब का बज गया बैंड । 

बरेली के सेठ फजल उर्र रहमान ऊर्फ चुन्ना मियां ने यहां पर भगवान विष्णु का लक्ष्मी- नारायण मंदिर का निर्माण कराकर हिंदू- मुस्लिम एकता की एक मिसाल कायम की। ये मंदिर बड़ा बाजार के पास खोखरा पीर इलाके में कटरा मानराय में है। इसके ठीक बगल में बुधवारी मस्जिद भी है। इस इलाके में पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थियों को बसाया गया था।

धोबी का कुत्ता घर का ना घाट का
धोबी का कुत्ता क्यों कहा जाता है ? मैंने तो किसी भी धोबी को आज तक कुत्ता पालते देखा नहीं ... और फिर इसे धोबी से जोड़ कर ही क्यूँ कहा जाता है ?

मेरा मित्र मुस्कराया और कहा कि -

यह शाब्दिक आतंकवाद सी दुर्घटना है। इस मुहावरे का जन्म हुआ तो बिल्कुल सही तुलना से है। लेकिन शब्द बदल गए हैं। यही वजह है कि इसमें कुत्ता घुस गया हैं।

पुरातन काल में जब धोबी किसी के भी घर जाते थे। तो उसी घर के आस-पास किसी भी पेड़ की बड़ी सी लकड़ी तोड़कर एक सोटा बनाया जाता था। जिससे उस घर के कपड़े घाट पर ले जाकर धोए जाते थे।

इस सोटे को कुतका कहा जाता था। जब कपड़े धो लिए जाते थे तो धोबी वह कुतका घर के बाहर ही किसी झाड़ी में छोड़कर वापस अपने घर लौट आता था। दूसरे दिन सुबह जब कपड़े धोने होते थे , तो वहीं कुतका वहां से फिर उठाकर कपड़े घाट पर ले जाकर धोए जाते थे। यह कुतका धोबी अपने घर नहीं ले जाता था।

मेरी फ़ोटो
मिल गए ऐश्वर्य कितने अनगिनत
पञ्च-तारा जिंदगी में हो गया विस्मृत विगत
घर गली फिर गाँव फिर छूटा नगर
क्या मिला सचमुच ...

अब तो  सोच  की
इन्तहा आम  हो गई
हम क्या थे ?क्या चाहते थे ?
क्या हो गए ?
किसने बाध्य किया
राज फाश करने को
अब तो बात फैल गई
चर्चा सरेआम हो गई
......
सादर आभार
यशोदा






Sunday, August 25, 2019

94..आज की बोझिल शाम..उदास क्यों है

मोबाईल तेरे खेल निराले..
सामने से दो भद्र महिलायें आधुनिक वस्त्र 
धारण किये हुए थीं, 
और बातें करते हुए चल रही थीं, 
तथा साथ ही एक महिला 
फोन पर चलते हुए कुछ टाईप भी कर रही थीं, 
तभी बीच में गोबर मिल गया, 
साथ चल रही महिला मित्र ने रोका 
अरे संभल कर,तो फोन वाली महिला, 
जोर से हिन्दी में बोली, 
मॉय गॉड, केक कटने से बच गया।

सादर अभिवादन...
महीना अगस्त भी चला जा रहा है
रोकने की ताकत नहीं न है किसी में
चलिए चलते हैं रचनाओं की ओर....


भारतीय पुरुष अपनी जिम्मेदारी से भाग रहे हैं!!!
भारतीय पुरुष अपनी जिम्मेदारी से भाग रहे हैं!!!
ये एक बेहद शक्तिशाली तस्वीर हैं। ये तस्वीर उन लोगों के लिए एक करारा जवाब हैं जो कहते हैं कि "बच्चों की परवरिश करना सिर्फ़ महिलाओं का काम होता हैं। बच्चे को संभालने की ज़िम्मेदारी माँ की ही होती हैं। पिता का काम सिर्फ़ कमा कर लाना हैं।"


मोक्ष.. विभा रानी श्रीवास्तव

"कितनी शान्ति दिख रही है दादी के चेहरे पर...?" 
दादी को चिर निंद्रा में देख मनु ने अपने चचेरे भाई रवि से कहा।
"हाँ! भैया हाँ! कल रात ही उनके मायके से चाचा लेकर आये.. 
और अभी भोरे-भोरे ई..,"


वो कृष्ण है ....आत्ममुग्धा
मेरी फ़ोटो
जो जीवन जीना सीखाये
हर रंग में रंग जाना सीखाये
वो कृष्ण है
जो मान दे सभी को
सबके दिलों में समा जाये
वो कृष्ण है



बिल्ली का खून ...फ़रीदा राज़ी ईरानी
अब मैं अपनी बिल्ली के बदन पर नज़र करती हूँ। 
कैसा सूख कर रह गया है? यह मुझे अच्छा लग रहा है, खुद को हल्का-हल्का महसूस कर रही हूँ। कोई खास बात नहीं, वह मर गई। हम दोनों को चैन पड़ा। कब से वह अपाहिजों की तरह घिसट रही थी। 
उसकी म्याऊँ म्याऊँ से पता चलता था कि वह दुख झेल रही है मगर ज़ाहिर नहीं करती।


"पहाड़ों की एक सांझ" .....मीना भारद्वाज

पहाड़ों की एक सांझ
गीले गीले से बादल
मोती सी झरती बूँदें
खाली बोझिल सा मन


खबर - ए- उलूक ..
होती रहे शाम उदास 
आज की भी और 
कल की भी 
बहुत कुछ होता है 
करने और सोचेने 
के लिये बताया हुआ
खाली इन बेकार की 
बातों को ही क्यों है 
....
आज्ञा
दिग्विजय..