Friday, July 31, 2020

432,,पैंसठ से ऊपर के बुड्ढे मास्टरों के लिये आज अखबार

नमस्कार
अरे भाई सच का नमस्कार
खबर तो है बड़ी
स्कूल चलेंगे अब नए ढर्रे पर
अब चलेंगे 5+3+3+4 के अनुसार (हायर सेकेण्डरी तक)
हमारे जमाने मे चले 10+2 +3 (स्नातक स्तर तक)
इससे पहले चले 5+3+3 (ग्यारहवीं तक)
यानी सरकार बदलाव के चरण बद्ध तरीकों से
लाएगी..यानी 2024-2025 में छात्र
नए पैटर्न मे परीक्षा देंगे...
पुराने ज्ञानवान अध्यापकों के जरिए
अध्यापकों को प्रशिक्षण दिया जाएगा
संक्षिप्त खबरें खत्म हुई..


अब पिटारा खोलें रचनाओं का...


सबसे पहले पढ़िए 140 वीं जयंती पर विशेष 
प्रेमचंद जयंती ...विभारानी श्रीवास्तव
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31 जुलाई 2020 प्रेम चंद की 140 वीं जयंती पर - ''लोग अंतिम समय में ईश्वर को याद करते हैं मुझे भी याद दिलाई जाती है। पर मुझे अभी तक ईश्वर को कष्ट देने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई।" - मुँशी प्रेमचन्द की पंक्तियों से मैं सदा बेहद प्रभावित रही ,स्वीकार करती हूँ।

उम्मीदों के तारे ..पुरुषोत्तम सिन्हा

चल चलें, उन्हीं पगडंडियों पर,
उसी राह पर,
बुन लें, अधूरे ये सपन,
चुन लें, वक्त के सारे संकुचन!
भर लें, फिर नयन में, 
उम्मीदों के तारे!


गंध ....डॉ. राजीव जोशी

"ठीक कह रही हो सरिता तुम! मैं भी यही सोच रहा था, कितने विचार मिलते हैं हमारे एक दूसरे से । मां जी से कह देंगे कि कोई कामवाली नहीं मिल रही है!! दोनों खिलखिला कर हँस पड़े। 


जैसा दिखता वैसा होता नहीं ...आशा सक्सेना

लागलपेट नहीं  कोई
ना  दुराव छिपाव कहीं  
झूट प्रपंच से रहता दूर
मन महकता चन्दन सा |
हर बात सत्य नहीं होती
आधुनिकता के इस  युग में
जैसा देखता  वही सोचता


बड़े काम की खबर ले कर आया है 

बूढ़ी हो चुकी
कोई एक सरकार 

‘उलूक’
इन्तजार कर आँखों के कुछ और 
कमजोर हो लेने का साल पाँच एक तक और 

तब तक डाल अच्छी बची खुची सोच का 
तेल डाल कर अचार 

फिर देखना लाठी लेकर आते हुऐ 
जवान कुलपति सत्तर साल के 
लगाते नई जमाने की 
उच्च शिक्षा का बेड़ा पार ।
...
आज बस
शायद कर फिर
सादर










Thursday, July 30, 2020

431.. पागल जमाने को और पागल बनाओ

खुशियां बढ़ती जा रहा है
सातवां जो बीत रहा है
होता तो है खतरनाक
हम आज घर से बाहर निकले
घण्टे भर में जो देखा
मन काँप गया...
जरा से भी भयभीत नहीं है लोग
फेसमास्क नहीं, एक गाड़ी में
तीन सवारी...
बेचारी पुलिस भी क्या करे
उन कतिपय लोगों की वजह से
वे भी संक्रमित हो रहे हैं
...
होइहैं वही जो राम रचि राखा


आलू पर दोहे ...कंचनलता चतुर्वेदी
जनमें धरती गर्भ से, रक्षा करे किसान।
बेचे अच्छे भाव में, और बने धनवान।।

नहीं जलन की भावना,करता सबसे प्रीत।
सबके दुख में साथ दे, बनकर उसका मीत।।


शहर में बारिश ..स्वराज्य करुण

काले ,घुंघराले बादलों 
के बीच सूर्योदय और सूर्यास्त !
उनकी रिमझिम बरसती
जल बूंदों की सरसराहट से भरा 
एक भीगा हुआ दिन ! 
जब दोपहर को भी लगता है जैसे
अभी तो सुबह के छह बजे हैं !


साक्षी ...अनीता

बनें साक्षी ? 
नहीं, बनना नहीं है 
सत्य को देखना भर है 
क्या साक्षी नहीं हैं हम अपनी देहों के 
शिशु से बालक 
किशोर से प्रौढ़ होते ! 
क्या नहीं देखा हमने 
क्षण भर पूर्व जो मित्र था उसे शत्रु होते  
अथवा इसके विपरीत 
वह  चाहे जो भी हो 


ज़िंदगियाँ उलझन में हैं ... अनीता सैनी

कुछ लोग 
आँखों पर सफ़ेद पट्टी बाँधने लगे
और कहने लगे 
देखना हम इतिहास रचेंगे
शोहरत के एक और
पायदान पर क़दम रखेंगे


चाँद रोता रहा ...प्रीती श्री वास्तव

जब भी ख्यालों में आया मेरे तू सनम।
सांस रुकती रही दिल धड़कता रहा।।

नाम लिख लिख के जागा किये रात भर।
रात ढलती रही चाँद रोता रहा।।



उलूक साहित्य का पन्ना

जरूरी प्रश्नों के
कुछ उत्तर कभी
अपने भी बना कर भीड़ में फैलाओ

लिखना कहाँ से कहाँ पहुँच जाता है
नजर रखा करो लिखे पर

कुछ नोट खर्च करो
किताब के कुछ पन्ने ही हो जाओ

‘उलूक’
चैन की बंसी बजानी है
अगर इस जमाने में

पागल हो गया है की खबर बनाओ
जमाने को पागल बनाओ।
...
बस
कल फिर
सादर



Wednesday, July 29, 2020

430..करना होगा हर मुहावरे में परिवर्तन, हमारे संविधान-सा

सादर अभिवादन
29 जुलाई ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार 
वर्ष का 211 वाँ दिन है। 
साल में अभी और 155 दिन बाकी है।
उपरोक्त कथन सिर्फ जानकारी हेतु
खुशियां न मनाएं

चलिए रचनाओँ की ओर ...

अक़्सर जीते हैं 
आए दिन 
हम कुछ 
मुहावरों का सच,
मसलन ....
'गिरगिट का रंग',
'रंगा सियार'
'हाथी के दाँत',
'दो मुँहा साँप'
'आस्तीन और साँप',
'आँत की माप'
वग़ैरह-वग़ैरह ..
वैसे ये सारे 
जानवर तो 
हैं बस बदनाम,
बस यूँ ही 



जिस साल
बीज बहा था जलधारा में
गद्दी पर बैठे राजा ने
आश्वासनों को बांधकर भेजा था कागज़ में
जो मौसम की मार खाते-खाते
किसानों तक पहुँचते - पहुँचते
बह गये लालच के तूफान में
जब मुआवज़े की रकम को
लिखते-लिखते टूट गई थी
सरकारी बाबू की कलम
दर्ज होंगे इतिहास के पन्नों पर
चमगादड़ बन लटके किसानों की लाशें



मन के सतह पर
तैरते अनुत्तरित 
 प्रश्न
महसूस होते हैं
गहरे जुड़े हुये...
किसी 
रहस्यमयमयी
अनजान,
कभी न सूखने वाले
जलस्त्रोत की तरह..,


गंभीर वृक्ष की शीतल छाँव 
उसमें उलझी-सी टोह
फिर वही लताओं की डोर-सी लगेगी
कभी अनुभव-सिरों पर बैठी ठौर-सी मिलेगी...
यह सही है
उस समय तुम अकेले रहोगे
फ़ासले
चिलचिलाती तेज़ धूप-से लगेंगे


मैं खुले दर के किसी घर का हूं सामां प्यारे
तू दबे-पांव कभी आ के चुरा ले मुझ को

कल की बात और है मैं अब सा रहूं या न रहूं
जितना जी चाहे तिरा आज सता ले मुझ को

वादा फिर वादा है मैं ज़हर भी पी जाऊं 'क़तील'
शर्त ये है कोई बांहों में संभाले मुझ को
....
इति शुभम्
सादर

Tuesday, July 28, 2020

429 मन के गलीचे को तो यूँ फैलाया मैं ने बहुत मगर

बिना सूचना दिए 
आने की आदत से मज़बूर
दिव्या का सलाम
टाईम-टेबल बिगड़ा सा है
होगा कब ठीक
ये तो राम ही जाने
..
आज की रचनाएँ कुछ यूँ है..

पागल तो तुम भी थी
जानबूझ कर निकलती थी पास से
कि में सूंघ लूं
देह से निकलती चंदन की महक
पढ़ लूं काजल लगी
आंखों की भाषा
समझ जाऊं
लिपिस्टिक लगे होठों की मुस्कान--


मन के गलीचे को तो यूँ फैलाया मैं ने बहुत मगर,
जमीन चूमने को रहे बेताब उनके बहकते क़दम।

माना मेरे हालात से नाता नहीं, पूछें भर भी वो गर,
तो शायद क़ायम रहें अपना होने के दरकते भरम।


दोस्ती वो है जो आपके जस्बात को समझे,
दोस्ती वो है जो आपके एहसास को समझे!
मिल तो जाते हैं अपना कहने वाले ज़माने में बहुत,
अपना वो है जो बिना कहे ही आपको अपना समझे !!


घुमड़ के,और घिर-घिर,जो मेघ आने लगे हैं,
ये तन-मन भिगा के,नई चेतना जगाने लगे हैं,
सुलगते हुए भावों को यूँ,शीतल कर डाला है,
उम्मीद की नई कोंपल,मन में,उगाने लगे हैं।


बिना जल से
भरे नैनों के झरने
बहते जाते

कोरी हैं आँखें
सुन्दर नहीं है वे
जल के बिना
....
आज की क्लास खत्म
सादर

Monday, July 27, 2020

428..अच्छा पड़ोसी मूल्यवान वस्तु से कम नहीं होता है

नमस्कार...
आज हमारी बारी
लिखा - पढ़ी बाद में
आज की पसंदीदा रचनाएं देखें...


सावन का मृदु हास ...

शाख शाख बंधा हिण्डोला
ऋतु का तन भी खिला खिला

रंग बिरंगी लगे कामिनी
बनी ठनी सी चमक रही
परिहास हास में डोल रही
खुशियाँ आनन दमक रही
डोरी थामें चहक रही है
सारी सखियाँ हाथ मिला।।


शिव जी और उनका व्याघ्रचर्म

भगवान शिव का रूप-स्वरूप जितना आकर्षक है उतना ही रहस्यमय और विचित्र भी है। वे चाहे किसी भी रूप में रहें कुछ चीजें वे सदा धारण किए रहते हैं; जैसे, जटा, भस्म, चंद्र, सर्पमाल, डमरू, त्रिशूल, रुद्राक्ष, तथा व्याघ्रचर्म ! उनका कुछ भी अकारण नहीं है। इन सब वस्तुओं की अपनी-अपनी खासियत और महत्व है। इनमें से व्याघ्रछाल को छोड़ सभी की विशेषताएं तकरीबन सर्वज्ञात हैं ! पर यह व्याघ्रचर्म किसका है और कैसे प्राप्त हुआ यह कुछ अल्पज्ञात है, पर इसका उल्लेख पौराणिक कथाओं में उपलब्ध है..........!  


कुछ मुहावरे...

कलाल की दुकान पर पानी पीओ तो शराब का गुमान होता है 
फूलों के कारण माला का धागा भी पावन हो जाता है 
अच्छा पड़ोसी मूल्यवान वस्तु से कम नहीं होता है 
देने वाले का हाथ सदा लेने वाले से ऊँचा रहता है 


माटी के लाल ....

सैनिकों की प्रीत को परिमाण में न तोलना 
वे प्राणरुपी पुष्प देश को हैं सौंपतें।
स्वप्न नहीं देखतीं उनकी कोमल आँखें 
नींद की आहूति जीवन अग्नि में हैं झोंकते।


डिमेंशिया ....

कितनी रातें, गुज़ारी तबसे, निहारता !
घूरती शून्य को, आँखें तुम्हारी, निस्तेज!
बैठा मुँडेर पर मैं, कौए बैठते थे जहाँ,
और उन्हें दौड़ा-दौड़ा  कर उड़ता मैं,
कहीं जूठे न कर दे, सूखते गेहूँ,
तुम्हारी छठी मैया के परसाद  के!
...
लोग भयातुर हैं, और क्यों न हों
कतिपय नासमझ लोगों के कारण
अगल-बगल के निवासी चिन्तित हैं


कुछ लोग अपने आपको बचाने के लिए
ज़रूरत से ज़ियादा सोंठ-लहसुन का सेवन कर
पेट की बीमारी पालने लगे है
आयुर्वेद शत-प्रतिशत कारगर है
अनुचित देख-रेख में दवा हानि भी पहुंचा भी देती है
कृपया ध्यान रक्खें
और स्वस्थ रहें
सादर



Sunday, July 26, 2020

427..सुबह से खड़ी थी,राहों में तेरी

शुभ रविवार
जुलाई महीने का अंतिम रविवार
बीत गई जुलाई भी
नहींं जाएगा कोरोना
पर ये दिलासा तो दे लें मन को
कि हम सुधर रहे हैं
न छू रहे हैं और न ही
छूने दे रहे हैं...

चलिए रचनाओँ की ओर..

कितनी  अजीब बात है 
कि हम दूर-दूर जाते हैं,
देख लेते हैं सब कुछ,
पर उसे नहीं देख पाते,
जो हमारे सबसे क़रीब है

कई दिनों से इस तिजोरी की चाबी
हथियाने की जुगत में थे ना तुम ?
लो यह चाबी और ले जाओ
जो ले जाना चाहते हो
चाहो तो सब कुछ ले जाओ


मेरे मन में खलिश पैदा करके 
तुम्हें क्या मिलता है  
मेरे दिल का सुकून
कहीं खो गया है |
उससे तुम्हारे मन में
अपार शान्ति का एहसास जगा है



नदी को समझने के लिए 
पानी होना पड़ता है 
और नदी किसी से 
उम्मीद नहीं करती हैं 
ठीक उसी तरह  
छोडें हुये किनारों पर 
नदी वापस नहीं लौटती हैं


तुम आ रहे हो,ये खबर हो गई।
रास्तें में तेरी, यह नजर हो गई।

सुबह से खड़ी थी,राहों में तेरी,
खड़ी ही रही,  दोपहर हो गई।

तब से खड़ी थी, शाम ढले तक,
शाम ढली  राह, बेनजर हो गई।
....
आज बस
कल फिर..
सादर

Saturday, July 25, 2020

426 ...हस्ती हमारी कुछ भी तो नहीं

कोई टाईम-टेबल नही है
दिव्या का
कोई इन्तजार नही करता
पर परी मेरी प्रतीक्षा में रहती है
ममा आएगी तो मैं अपने हाथों से
उनको खिलाऊँगी...
बहुत रुलाएगी ये सच में...

आज की पसंद....


आई सुहानी नागपंचमी ..मालती मिश्रा
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डम डम डमरू बाजे, 
गले में विषधर साजे।
जटाओं में गंगा मां करतीं हिलोर,
आई सुहानी नागपंचमी का भोर।

द्वार सम्मुख नाग बने,
गोरस का भोग लग।
करना कृपा हम पर हे त्रिपुरार,
दूर करो जग से कोरोना की मार।




चाय पीना तो भूल ही गया खैर 
चाय तो फिर पी जा सकती हैं 
पर इस तरह के विचार 
बहुत मुश्किल से पनपते है.
दौर पतझड़ का सही
उम्मीद तो हरी है--


उस दिन के बाद लौटकर फिर गुजरे नहीं गली से
अब आईने में भी पराए से हुए सूरत के मुताबिक

वक्त की रफ्तार में, हस्ती हमारी कुछ भी तो नहीं
मिलना है जो मिलता है इस किस्मत के मुताबिक


हाट के शोरगुल बीच सदियों से 
खड़ा मैला कुचैला खुरदरा
वो बूढ़ा वृक्ष न जाने आँखो में 
है किसका इंतजार नित लौटती
 दूर तक जाकर उसकी निगाहें 

निराश मन से निहारता वो
मटमैले पैरों पे पुराना पर 
आज भी जीवित
मोचीराम का खुरदरा स्पर्श

इश्क मेरा रूहानी है ...मधु सिंह 
इश्क   मेरा   रूहानी है 
राहे- ख़ुदा    कहानी है 

बन बैठा मैं रब का बंदा
रब ही मेरी कहानी है 

सांसो की धड़कन में मेरे 
रब की लिखी कहानी है 
...
बस..
सादर






Friday, July 24, 2020

425 ...जल्दी का काम तो शैतान का कहलाता है

सादर नमस्कार
जुलाई का चौबीसवां दिन

हाँ, अब दिन ही गिना जाएगा
इक्कीस जो देखना है

आज की प्रस्तुति....


इंसान तो पहले से ही कन्फ्युजियाया हुआ है ...

पुराने मुहावरों लोकोक्तियों या उद्धरणों को, जो अलग-अलग समय में अलग-अलग विद्वानों द्वारा अलग-अलग समय और परिस्थितियों में दिए गए थे, यदि अब एक साथ पढ़ा जाए, तो कई बार विरोधाभास तो हो ही जाता है साथ ही कुछ हल्के-फुल्के मनोरंजन के पल भी उपलब्ध हो जाते हैं। ऐसे ही कुछ उद्धरण, बिना किसी पूर्वाग्रह या कुंठा के, उन आदरणीय व सम्मानित महापुरुषों से क्षमा चाहते हुए पेश हैं ! आशा है सभी इसे निर्मल हास्य के रूप में ही लेंगे ...........................!


पावस की आहट ....

दस्तक दे रहा दहलीज पर कोई
चलूँ उठ के देखूँ कौन है
कोई नही दरवाजे पर
फिर ये धीरे धीरे मधुर थाप कैसी?
चहुँ ओर एक भीना सौरभ
दरख्त भी कुछ मदमाये से
पत्तों की सरसराहट
एक धीमा राग गुनगुना रही
कैसी स्वर लहरी फैली।

बचपन ....

बचपन के वे दिन
भुलाए नहीं भूलते
जब छोटी छोटी बातों को
दिल से लगा लेते थे |
रूठने मनाने का सिलसिला
चलता रहता था कुछ देर
समय बहुत कम होता था


गहने ...

अब गहने ख़त्म हुए,
सिर्फ़ माँ बची है,
बच्चों में वह ढूंढती है 
पहले जैसा प्यार.

देर से समझ पाई है माँ 
गहनों से प्यार का रिश्ता.


काव्य पाठ ...
"लिंक-लिक्खाड़"
सावन सा  वन-प्रान्त में, क्यों न दिखे उल्लास।
हर-हर बम-बम देवघर, सारा शहर उदास।।

कंधों पर घरबार का, रहे उठाते भार।
आज वायरस ढो रहे, मचता हाहाकार।।


सस्ते वाले कपड़े ...

''हां, वो खुद के लिए सस्ते वाले कपड़े ही खरीदते हैं। लेकिन वो हमारे लिए कभी पैसे का नहीं सोचते। क्या उन्होंने तुझे कभी भी कोई भी चीज खरीदने के लिए मना किया? नहीं न? जब वो हमारे लिए सस्ते कपड़े नहीं खरीदते तो हम क्यों उनके लिए सस्ते कपड़े खरीदे? मुझे उनके लिए ब्रांडेड नाइट पैंट ही खरीदना हैं।''
...
बस
कल फिर
सादर




Thursday, July 23, 2020

424 ...हाँ! यही तो प्यार है

नमस्कार सभी को
सावन का दूसरा पखवाड़ा
उत्सवों का प्रारम्भ...
जुलाई का अंतिम सप्ताह
2020 का गमनारम्भ

आज का पिटारा खोलें.....
आज की पिन पोस्ट
बगल में अपना प्रारंभिक विद्यालय देख बाबुजी से पूछा- याद है बाबूजी !बचपन में आप रोज इसी विद्यालय में मुझे पढ़ने के लिए पहुँचाने आते थे ?
बाबुजी ने रुआंसे से स्वर में कहा।हाँ बेटा ! और यह भी याद है कि यह वृद्धाआश्रम आश्रम पहले अनाथालय हुआ करता था।और इस अनाथालय से मैं और तुम्हारी माँ तुम्हें अपने साथ ले गए थे। जब यहाँ के सारे बच्चों को निःसंतान दम्पति ले गए तो यहाँ वृद्धाआश्रम चलाया जाने लगा।उस दिन मैं नहीं सोंचा था कि जिसे मैं यहाँ से निकालकर प्यार से पाल-पोष कर, पढ़ा-लिखा कर काबिल बनाऊँगा,वह एक दिन मुझे यूँ अनाथों की तरह मेरे घर से निकालकर यहीं पहुँचा  देगा।


भीड़ देख अझुरायल हउवा?
भाँग छान बहुरायल हउवा?

बुधिया जरल बीज से घायल
कइसे कही कि सावन आयल!

पुरूब नीला, पच्छुम पीयर
नीम अशोक पीपल भी पीयर



घन गरजे चपला चमके
नभ से छम-छम जल बरसे
गाये मस्त पवन मल्हार
मधुश्रावणी का त्योहार....
पावस की प्यारी रातें
करती चंचल उर गातें
दृग में कोमल मनुहार


मेरी लिखावटों के पीछे 
दरार है 
मेरी लिखावटों के पीछे दरार है 
हाथ काँपते हैं मेरे 
तेरा नाम लिखने से 
हाँ! यही तो प्यार है। 

काले मेघा घिर-घिर आये.....
बिन बरसे मत जाना
रात है काली  दिल में उदासी 
नैना बरसे मत जाना।।

सोंधी मिट्टी इत्र सम महके 
तेरे आने से खुशिया बरसे
ताल ,तलैयों के दिन फिर आये
नदिया हर्षे मत जाना।।
.....
एक गीत सुनिए
धीरे-धीरे मचल ऐ दिल-ए-बेकरार

सादर

Wednesday, July 22, 2020

423 ..आओ बारिश में थोड़ी सी शरारत करें

सादर बरसावन
नया कुछ नहीं
सारा पुराना ही है
भगवान शिव कृपा कर रहे हैं
मानुष के मन से
कोरोना का भय निकाल रहे है
मन मे सोचे थे कि कोरोना पर कोई पोस्ट
नहीं लेंगे पर भयातुर लोगों को कोरोना के
सिवाय़ कोई विषय ही नहीं मिल रहा लिखने को
खैर...चलिए देखें आज क्या है...

क़लम से काग़ज़ पर उतरने से पहले
कविता लंबा  सफ़र तय करती है। 
 विचारों की गुत्थी पहले सुलझाती
फिर बिताए प्रत्येक लम्हे से मिलती है। 
 समूचे जीवन को कुछ ही पलों में 
 खँगालती फ़िर सुकून से हर्षाती है। 


एक शख्स सुबह सवेरे उठा साफ़ कपड़े पहने और सत्संग घर की तरफ चल दिया ताकि सतसंग का आनंद मान सके, रास्ते में ठोकर खाकर गिर पड़ा कपड़े कीचड़ से सन गए वापस घर आया कपड़े बदलकर वापस सत्संग घर की तरफ रवाना हुआ फिर ठीक उसी जगह ठोकर खा कर गिर पड़ा और वापस घर आकर कपड़े बदले फिर सत्संग घर की तरफ रवाना हो गया जब तीसरी बार उस जगह पर पहुंचा तो क्या देखता है की एक शख्स चिराग हाथ में लिए खड़ा है और उसे अपने पीछे पीछे चलने को कह रहा है


बारिश की बूंदों ने 
सहला दिया,प्यासी धरती के
तन को,नम होकर,
बूंदे जब समा गई,
धरती के आगोश में,
अंकुरो की कुलबुलाहट से,
माटी हुवी बैचेन,
फाड़ धरती का सीना,
वो नन्हा अंकुर, 
निकल आया बाहर,


आओ बारिश में थोड़ी सी शरारत करें 
छप छप करते हुए कुछ दूर तक चलें 

वो देखो चिड़िया कैसे दुपक के बैठी है 
बस ऐसे ही हम तुम भी संग संग चलें 


जल ही लहर लहर से सागर 
जल ही बूंद भरा जल गागर, 
फेन बना कभी हिम् चट्टान 
वाष्प बना फिर उड़ा गगन पर !


शिव से रति है काँप रही ,काँपे देव अनंग
जप तप और पुरुषार्थ कर, शिव का कर ले संग

शिव के चरणों भू मण्डल शीश पर नील गगन
बादल से है गरज रही शिव जी की गर्जन
..
बस
सादर