Sunday, May 31, 2020

371..ज़िन्दगी और मर्जी दोनों आपकी है

31 मई ....

31 मई को दुनिया भर में हर साल विश्व तंबाकू निषेध दिवस मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य तंबाकू सेवन के व्यापक प्रसार और नकारात्मक स्वास्थ्य प्रभावों की ओर ध्यान आकर्षित करना है, जो वर्तमान में दुनिया भर में हर साल 70 लाख से अधिक मौतों का कारण बनता है, जिनमें से 890,000 गैर-धूम्रपान करने वालों का परिणाम दूसरे नंबर पर हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सदस्य राज्यों ने 1987 में विश्व तंबाकू निषेध दिवस बनाया। पिछले इक्कीस वर्षों में, दुनिया भर में सरकारों, सार्वजनिक स्वास्थ्य संगठनों, धूम्रपान करने वालों, उत्पादकों से उत्साह और प्रतिरोध दोनों मिले हैं।
.....
दूसरा समाचार भी है
आज लॉकडाउन 4 समाप्त हो रहा है..और
अनलॉक पीरियड का पहला काल, कल से शुरु हो रहा है
इसमें प्रमुख भूमिका जनता की है
लॉकडाउन की आदतों पर 
लगाम कसे रखने की समझाईश भी है
यानी जीना है तो घर का भोजन
ही करना है...
ज़िन्दगी और मर्जी दोनों आपकी है
....
अब चलें रचनाओं की ओर..


जीवन का उद्देश्य भुलाकर
भटका जग के कानन में
व्यसन अहेरी जाल बिछाता
लोभ लुभाता आनन में
जीव बना पिंजरे का पंछी
करता रहता नित क्रंदन
महक रहा है कस्तूरी सा
अंश प्रभो का कर वंदन।।


इश्क है मेहमान दिल में आज भी
प्यार कम है पर ज़ियादा क्यों नहीं ।।

जा रहा था राह से मेरी मगर
प्यार से उसने पुकारा क्यों नहीं।।


मेरी क़लम पे मेरे उसूलो 
मेरी परवरिश की जर्द हैं,
आसानी से तुम्हारे रास्तों से 
हट जाऊं तो बता देना,


महीना बीत रहा है
कल कुछ कहा नहीं
क्या आज भी कुछ
नहीं कह रहा है
कहते हुऐ तो आ रहा हूँ
आज से नहीं एक
जमाने से गा रहा हूँ
मेंढको के सामने
रेंक रहा हूँ
गधों के पास जा जा
कर टर्रा रहा हूँ
इसकी सुन के आ रहा हूँ
उसकी बात बता रहा हूँ
पन्ना पन्ना जोड़ रहा हूँ
....
कल शायद फिर
सादर


Saturday, May 30, 2020

370..भगवान शिव अपनी तीसरी आँख की कनखियों से निहार रहे हैं

भगवान शिव अपनी तीसरी
आँख की कनखियों से
निहार रहे हैं समूचे विश्व को
पूरी आँख नहीं  
खोल पा रहे
कारण..
मीटिंग नहीं कर पाए त्रिदेव पहले..
यदि कर लेते तो ..
किसी एक व्यक्ति को चुनकर
एक नाव में बिठा लेते
शायद उपयुक्त व्यक्ति नहीं मिला
शेषशय्या धारी को
सोचने में क्या जाता है
चलिए चलें...

भयभीत,व्यग्र आँखें
बेबसी से देख रही हैं
शिवालिक की श्रृंखलाओं
को पार कर आई
मीलों आच्छादित
भूरे-काले उड़ते,
निर्मम बादलों से
बरसती विपदा,

मोड़ दी हमने ....पम्मी सिंह

2122 2122 212
मोड़ दी हमने मोहब्बत की सदा
अब पत्थरों से सखावत भूल गये,

आँख है भरी,बेकसों सी हैं अदा
बेदिली की अब इबादत भूल गये,




अल्लाह ने हुस्न की नियामत दी है तुम्हें
हर किसी को यह  भी नसीब नहीं होती


जिन डालियों पर
सजा करते थे झूले ,
कलरव था पंछियों का
वहाँ अब सन्नाटा है ,
झूल रहे हैं फंदे निर्लिप्त
कहलाते जो अन्न दाता
भूमि पुत्र भूमि को छोड़
शून्य के संग कर रहे समागम।


हवाओं सा जब से वो छू कर गया है 
मेरी रूह तक को वो महका गया है 

सजाया है किसने "अयान" मेरे घर को 
मेरे अंगना ये कौन आ गया है 


सो जाऊँ कैसे, मैं, करवटें लेकर! 
पराई पीड़ सोई, एक करवट, 
दूजे करवट, पीड़ पर्वत, 
व्यथा के अथाह सागर, दोनो तरफ, 
विलग हो पाऊँ कैसे! 
सो जाऊँ कैसे? 
सत्य से परे, मुँह फेर कर! 


किनारा कर लिया तुमने, 
तो जाओ छोड़ देते हैं
न हमको याद अब करना, 
तेरा दर छोड़ देते हैं।
..
अब बस
सादर

Friday, May 29, 2020

369....दीक्षा लेती तो इस लोक के साथ - साथ परलोक भी बिगड़ जाता

सादर नमन
आज की पहली रचना
सोचने पर मज़बूर करती है
एक बेहतरीन कटाक्ष है

नवीन परिचय
आदरणीय कमल उपाध्याय

यज्ञ कुंड के धुएँ से वातावरण पवित्र हो रहा था कि तभी ठाकुर साहब वहाँ आ पहुँचे। संत बाबा कुछ दिन पहले ठाकुर साहब के वहाँ भी हो आये थे। देखते ही उन्हें पहचान गए। ठाकुर साहब ने बाबा के कान में कुछ कहा, जिसके बाद बाबा क्रोधित हो गए।
बाबा को इस बात की सच्चाई पता चल गई थी की राजलक्ष्मी का नाम प्यारी बाई है और वो नाचने-गाने का काम करती है। बाबा ने तुरंत पानी के छीटें मारकर यज्ञ की आग को स्वाहा कर दिया। प्यारी को उन्होंने वैश्या, रंडी और कई शब्दों से संबोधित करते हुए, वहाँ से ठाकुर साहब के साथ निकल गए।


नींद नहीं 
आँखों में रह -
रह बादल घेर रहे ,
हरे बाँस 
सीटियाँ 
बजाते वंशी टेर रहे ,
मेहँदी रचे 
गुलाबी हाथों 
ने फिर किया प्रणाम | 

आर्थिक आत्मनिर्भरता
"स्व" की पहचान में जुटी,
अस्तित्व के लिए संघर्षरत,
सजग,प्रयत्नशील 
स्त्रियों की आँख पर
सामर्थ्यवान,सहनशील,
दैवीय शक्ति से युक्त,
चाशनी टपकते
अनेक विशेषणों की
पट्टी बाँध दी जाती है



सूने पार्क में कोने के चबूतरे पर बैठी
यादों के बियाबान जंगल में विचरण करती हुई..
तभी पीले पत्तों का
शाख से विदा हो कर
स्पर्श कर जाना ,
निःशब्द, स्तब्ध कर गया मुझे ।


सम्पूर्ण गीत ना सही,
मात्र एक अंतरा ही सही।
चौखट ही मान लो,
घर का अँगना ना सही।
पगली .. हूँ तो तेरा अंश।

पूर्ण कविता ना सही,
एक छन्द ही सही।
साथ जीवन भर का नहीं,
पल चंद ही सही।
पगली .. हूँ तो तेरा अंश।


शलभ ने शिखा को सदा ध्येय माना,
किसी को लगा यह मरण का बहाना,
शलभ जल न पाया, शलभ मिट न पाया
तिमिर में उसे पर मिला क्या ठिकाना?
प्रणय-पंथ पर प्राण के दीप कितने
मिलन ने जलाये, विरह ने बुझाये।
...
आज बस
कल फिर
सादर


Thursday, May 28, 2020

368 ...यक्ष प्रश्न: जीवन का उद्देश्य क्या है?

सादर नमस्कार
जीवन का उद्देश्य 
उसी चेतना को जानना है 
जो जन्म और मरण के 
बन्धन से मुक्त है।....और 
उसे ही जानना ही मोक्ष है।

अब चलिए रचनाओं की ओरयय
प्रदर्शी का जन सैलाब उमड़ता देखकर और 
बिक्री से उफनती तिजोरी से 
आयोजनकर्ता बेहद खुश थे। 
जब बेहद आनन्दित क्षण 
सम्भाला नहीं गया तो 
उन्होंने अपने मातहतों से कहा,-
"इस साल तुम्हारा बोनस दोगुना होगा।"


हुई मानवता शर्मसार 
रोज देखकर अखवार 
बस एक ही सार हर बार 
मनुज के मूल्यों का हो रहा हनन 
ह्रास उनका परिलक्षित 
होता हर बात में 
आसपास क्या हो रहा 
वह नहीं जानता 


मां
अगर ऐसा करूंगी तो फिर किस
स्वाभिमान से
अपने बच्चों को
बुरे भले की पहचान करवाऊंगी
किस मुंह से उन्हें
यातना और अन्याय के आगे
न झुकने का पाठ पढ़ाऊंगी


नवकिसलय अब तमस कोण से 
अँगड़ाई जब जब लेगा
अमराई के आलिंगन में 
नवजीवन तब खेलेगा।


लहरे छाप के रूप में ......
शंख ,सीपियों को छोड़ जाती हैं।
मछली पानी में अपनी गन्ध छोड़ देती है
पर एक इंसान ही ऐसा जीव ......है 


वक्त किसी के लिए 
ठहरता नही 
मगर तुम्हें उम्मीद है 
कि वो ठहरेगा 
सिर्फ और सिर्फ 
तुम्हारे लिए 
और इंतजार करेगा 
...
किस के रोके रूका है सवेरा 
रात भर का है मेहमान अंधेरा

अब बस
सादर


Wednesday, May 27, 2020

367..स्वायंभू लॉकडाउन को जारी रखना होगा

शासन मे लॉकडाउन में छूट दे दी है
लोग कहीं भी आ जा सकते हैं
कहीं भी खा-पी सकते हैं
पर..
जीवित गर रहना है तो
स्वायंभू लॉकडाउन को
जारी रखना होगा
लॉकडाउन खत्म हो गया है
विषाणु नहीं.. वो है हाजिर
सामने वाले व्यक्ति में
ये मानकर चलना होगा

...
आइए पिटारा खोलते हैं....


शलभ मैं शापमय वर हूँ! ...महादेवी वर्मा

शलभ मैं शापमय वर हूँ !
किसी का दीप निष्ठुर हूँ !

ताज है जलती शिखा
चिनगारियाँ शृंगारमाला;
ज्वाल अक्षय कोष सी
अंगार मेरी रंगशाला;
नाश में जीवित किसी की साध सुंदर हूँ !


लहकी नागफणी ...कुसुम कोठारी

कैसी तृप्ती है औझड़ सी
तृषा बिना ऋतु के झरती ।
अनदेखी सी चाह हृदय में
बंद कपाट उर्मि  भरती।
लहकी नागफणी मरुधर में
लूं तप्त फिर भी न सूखे।।


फिर मिलते हैं सफ़र में ....अनीता सैनी

ऊषा उत्साह का पावन पुष्प गढ़ती है
प्राची में  प्रेम का तारा चमकता है।
अंशुमाली-सा साथ होता है अहर्निश
दुआ बरसती है तब शौर्य दमकता है।
तुम इत्मीनान से चलना पथिक
ये जो घर हैं न फिर मिलते हैं सफ़र में
यों भ्रम में बुने सपने भी
 कभी-कभी सूखे में हरे होते हैं।


तस्वीरें पलटना भी बहाना हो गया ...अभिषेक ठाकुर

टूटे ख़्वाबों को दफ्न कर दिया जब से
ज़िंदगी का सफ़र भी सुहाना हो गया

कब तलक राह देखे कोई अच्छे दिनों की
छोड़ो कि अब मंज़र वो पुराना हो गया


प्रलयकाल .....सुधा सिंह व्याघ्र

क्रोध की अग्नि में , 
भस्म सबको करेगा। 
गेहूँ के साथ चाकी में, 
घुन भी पिसेगा।। 
..
बस
कल फिर
सादर



Tuesday, May 26, 2020

366..अपने शिल्पी के नाम से विख्यात, रामप्पा या राम लिंगेश्वर मंदिर


आदरेषु

आज का अंक
वर्षांत अंक है
आज से 365 दिन पहले
इस ब्लॉग की शुरुआत हुई थी
आज का अंक चित्रावली अंक है
कोई रचना नहीं
सिर्फ और सिर्फ
राम का नाम
और रामेश्वर का नाम


अपने शिल्पी के नाम से विख्यात, 

प्राणप्रतिष्ठा के दिन महाराज गणपति देव ने जैसे ही मंदिर को देखा, 
वे अचंभित, ठगे से खड़े रह गए ! उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था 
कि ऐसा भव्य, खूबसूरत, विशाल और अद्भुत निर्माण उन्हीं के 
राज्य में हुआ है ! उनकी आँखों से अश्रुधारा बह निकली ! 
उन्होंने आगे बढ़ कर रामप्पा को गले से लगा लिया और कहा 
कि मैं धन्य हूँ, जो तुम जैसा कलाकार मेरे पास है। 
संसार की कोई भी निधि, कोई भी संपदा तुम्हारी इस 
कला का मोल नहीं चुका सकती ! तुमने मुझे और 
अपनी धरती को धन्य कर दिया। आज तक हर मंदिर उ
समें स्थापित देव प्रतिमा के नाम से ही जाना जाता रहा है, 
पर मैं इस मंदिर का नाम तुम्हारे नाम पर रखता हूँ ! 
आज से यह मंदिर रामप्पा मंदिर के 
नाम से जाना जाएगा.....!
रामाप्पा या राम लिंगेश्वर मंदिर तेलंगाना में मुलुगू जिले के 
वेंकटापुर मंडल के सैकड़ों साल से आबाद पालमपेट गांव में स्थित है। तेलंगाना के वारंगल जिले से इसकी दूरी करीब 70 की. मी. है। 

मंदिर का विहंगम दृश्य

और इसी तैरते पत्थर से बना था रामसेतु

मंदिर के अंदर भगवान शिव जी का मंदिर


-
शिवहाहन नंदीश्वर
और मंदिर में स्थित कुछ
स्तम्भ और भित्तिचित्र





विशाल प्रांगण


इसकी दिनों-दिन बढ़ती ख्याति के कारण यहां 
पर्यटकों की आवा-जाही भी बहुत बढ़ गई है। इसीलिए 
उनकी सुख-सुविधा को ध्यान में रख पर्यटन विभाग भी 
जागरूक हो गया है उसी के तहत इसके
पास की झील के 
किनारे कॉटेज व रेस्त्रां वगैरह की सुविधाएं 
उपलब्ध होने लग गई हैं।
अंत में एक ही विनती
श्रीरामचन्द्र जी से
पूरे विश्व से विषाणु कोरोना
का समापन करें और 
और रोगियों को स्वस्थ करें
आभार भाई गगन शर्मा जी को
इतनी सुन्दर जानकारी साझा की

आपकी जानकारी हेतु
मैं सपरिवार इस मंदिर मे गई थी
यह मंदिर भद्राचलम में है
रेल्वे स्टेशन भद्राचलम रोड के नाम से है
 जगदलपुर-हैदराबाद रोड पर स्थित है
सादर

Monday, May 25, 2020

365.. रेत के समान फिसलते गुज़र गया साल...

कल जो लिखे
सो लिखे..

आज....
कुछ मुबारबाद
फेसबुक से


देखा है आसमान पे जब से हिलाले-ईद।
दुनिया ख़ुशी से झूम रही है मना ले ईद।
-कुँवर कुसुमेश
.....
तिरी दीद जिस को नसीब है
वो नसीब क़ाबिल-ए-दीद है
तुझे सोचना मेरी चाँद रात
तुझे देखना मेरी ईद है

-तुषार रस्तोगी
....
अब चलें पिटारा खोलें....


ईद मुबारक ..उम्मीद तो हरी है

सुबह से 
इंतजार है 
तुम्हारे मोंगरे जैसे 
खिले चेहरे को
करीब से देखूं
ईद मुबारक 
कह दूं



मुक्तक ...काव्य कूची

न हमको सांझ की चिंता,न हमको रात का डर है,
मिले जो तुम मुझे मित्रों, न हमको घात का डर है,
पलों को जी लिया करते,ठहर जाये यहीं जीवन,
रहे बैचैन क्यों अब हम ,मुझे किस बात का डर  है।


अनछुआ मन ....मेरी धरोहर

पानी की तलाश में
सूखी रेत पर रगड़ाता
अनछुआ मन
मरीचिका के भ्रम में
तड़पता रहता है
परविहीन पाखी-सा
आजीवन।


समय की रेत फ़िसलती हुई, ...मेरी जुबानी 

समय की रेत फ़िसलती हुई, 
उम्र मेरी ये ढलती हुई, 
करती है प्रश्न खड़े कई। 

क्या वक्त है कि मुड़के पीछे देखें, 
क्या वक्त है कि कुछ नया सीखें। 
सीखा जो भी अब तलक, 
कर उसको ही और बेहतर भई। 
समय की रेत... 


विधु का सागर स्नान ....मन की  वीणा

रजनीपति किलोल करते
पारावार अवगाहना
झाग मंडित नीर सारा
उबटन रजत कर नाहना
बैठ कौमुदी झूले पर
रात बीती जा रही है।।
...
बस..
कल का अंक
वर्षांत अंक होगा
सादर





Sunday, May 24, 2020

364 ...छुप जाओ, हर किसी से तुम पर क्या...

सादर नमस्कार
मई जा रही है
आभार मई..
गनीमत आप
मात्र तीस दिन की हो
दिन अगर इकतीस होते....तो
और बोझिल लगता..
तुम्हारा गुज़रना


चलिए आज के पिटारे की ओर..

उठते तूफ़ान की नहीं कोई ख़बर...

एक माँ चीख़ी...
बच्चे की थी करुण पुकार 
जग ने कहा -
माँ-बेटे की पीड़ा का विलाप! नहीं नियति पर ज़ोर। 
पूछ-पूछ पता घरों का, देगा दस्तक यह तूफ़ान 
बाक़ी मग्न झूमो जीवन में सुख का थामे छोर।  


बेगाने

बाग़ के मालिक ने ढेला उठा कर वृक्ष की टहनियों पर दे मारा। चह-चह करते पंछी उड़ चले।
फुटपाथ पर बैठा नजफ़ भावशून्य आँखों से आसमान में उन्हें दूर तक जाते हुए देखता रहा।
“कहाँ गए होंगे? अपने-अपने बसेरों पर शायद?” नजफ़ की होठों की सूखी पपड़ाई पत्तियाँ थरथरा उठीं।

नर में नारायण ....

ये सच है कि कोई भी नेकी की राह आसान नहीं होती ।बहुत रुकावटें आती हैं । जब आप शुभ संकल्प लेते हैं तो कुछ लोग नकारात्मकता भी फैलाते हैं ऐसे वक्त पर ...लेकिन यदि आप उजले मन से नेकी के रास्ते पर आगे बढ़ते हैं तो राहें खुद आसान हो जाती हैं । कभी कहीं पढी पंक्तियाँ कुछ-कुछ याद आ रही हैं...
"साफ है मन यदि
राह है सच्चाई की
तो प्रार्थना के बिना भी
प्रसन्न होंगे देवता....!!” 

चन्द अपनो की तलाश होती है ...

जिन्हें भीड़ नहीं
चन्द अपनो की
तलाश होती है

जो किसी भी कार्य के
अंत का सोच कर
आरम्भ करने से
पीछे नहीं हटतीं

क्या छुप पाओगे तुम ...

छुप जाओ, हर किसी से तुम पर क्या... 
स्वयं से छुप पाओगे तुम 
वो गलतियाँ , जो की थी 
तुमने जानबूझकर ... 
रह -रहकर अँधेरे कोणों से 
अट्टहास करती जब तुम्हारे समक्ष आयेंगी... 
तुम्हारे हृदय को कचोटती 
काले साये की तरह तुम्हें डराएंगी 
कहो भाग कर तब कहाँ जाओगे तुम
...
आज बस
कल फिर
सादर











Saturday, May 23, 2020

363... "हमलोग भारत वापस जा सकते हैं, आज डर कुछ कम हुआ।"

सादर अभिवादन...
आज न कुछ कहना है
और न ही कुछ सुनना है
कभी लगता है ..सब
ठीक है..लगता है
सिर्फ... दिखता नहीं है

ठीक...पता नहीं कब होगा
चलिए चलें आज का पिटारा देखें...


चीनी कानाफूसी ....

"अरे वाहः! फुटबॉल खेलने वाला पार्क खुल गया।" चौंकते हुए मैं बोली। शाम का समय था और चारों जन, मैं, मेरे पति और बेटे-बहू के साथ टहलने निकले थे। पचासी दिनों से पसरा सन्नाटा फुटबॉल पर पड़ते थाप से टूट गया था।
"हाँ माँ! बच्चों और बड़ों को खेलता देखकर अच्छा लग रहा है। कल हमलोग पहाड़ों की तरफ लॉन्ग ड्राइव पर घूमने निकलेंगे।" चहकते हुए मेरी बहू ने कहा।
"हमलोग भारत वापस जा सकते हैं, आज डर कुछ कम हुआ।" मैं बोली।


परिपक्वता ......

सर्वस्व से विराम का
मध्य का तत्व
जीवन से निस्तार
का संपूर्ण शोध हो...
किंतु 
प्रकृति के रहस्यों का
सूक्ष्म अन्वेषण,
"आत्मबोध"
विरक्ति का मार्ग है


जाने कहाँ खो गई हूँ , मैं ....

एक हलचल
एक बेचैनी
एक तलाश
एक तिश्नगी
कुछ भ्रान्त हूँ .. मैं क्लांत हूँ
कि, कौन कहानी का किस्सा हूँ ,
मैं ?



अगर बाहर मैं जाती हूँ,मेरे पीछे वो आता है,
जो रुक जाते कदम मेरे,नहीं पग वह बढ़ाता है।

वो पीछा करता नजरों से,जहाँ मैं दूर जाती हूँ,
जो मैं नजरें उठाती हूँ,नजर ना वह उठाता है ।

मिले फ़ुर्सत कभी तो ...

"शायद  प्यार करना मुझे आया ही नहीं आज तक,
 मिले फ़ुर्सत कभी तो .. आकर थोड़ा बतला देना ..."

शायद  प्यार करना मुझे आया ही नहीं आज तक,
मिले फ़ुर्सत कभी तो .. आकर थोड़ा बतला देना ...
....
आज बस
शायद कल फिर..
सादर