Tuesday, January 28, 2020

250...जेब में ज़रूर चवन्नी रखना

सादर अभिवादन
अंक हजार में
सात सौ पचास कम

चलिए चलें आज की रचनाओँ की ओर
आज एक ब्लॉग नया है

चार सौ वर्ष पहले की बात है भारत में एक राजा था। वह तृप्ति नदी के किनारे बुरहानुपर में रहता था उसकी रानी चाँद की तरह सुन्दर थी। वह उसको देखे बिना भोजन भी नहीं करता था। वह राज-काज में पूरी सहायता करती थी। दीन-दुखियों को दान दिलाया करती थी, अनाथ बालिकाओं की शिक्षा व विवाह का प्रबन्ध करती थी।
सभी राज-काज के कामों में रूचि लेती थी। एक दिन राजा को स्वप्न आया कि उसकी रानी की मृत्यु हो गई। उसको समुद्र पार जौनावादी बाग में दफना दिया गया। राजा शयन कक्ष में ही सप्ताह तक लेटा रहा। राज दरवार में जाना भी भूल गया उसे ऐसा लगा जैसा उसका जीवन ही समाप्त हो गया हो, तभी एक परी आसमान से उत्तर कर आयी और कहने लगी, हे राजन क्यों चिंता में डूबे हो। राजा ने कहा मेरी रानी का स्वर्गवास हो गया है अतः में संन्यास लेना चाहता हूँ।


वर्षों पुरातन, सभ्यता हमारी,
आठ सौ नहीं, हजारों सदियाँ गुजारी,
नाज मुझे, मेरी संस्कृति पर,
कुचलने चले तुम, मेरे सारे धरोहर,
पर हैं जिन्दा, ये आज भी,
लिए गोद में, तेरी हर निशानी, 


पत्ते गिरने का मौसम नहीं रुकता,
वक़्त की रेल गुज़रती है
निःशब्द अपने गंतव्य
की ओर, पार्क
के बेंच
पर पड़े सूखे पत्तों में कहीं खो
जाते हैं यादों के तहरीर,


है बहारों का मौसम बता दो कहाँ!
ठंडी पुरवाइयां चलके ढूंढे वहाँ!!
यूँ लगे मिल गया, जैसे वनवास है!
मैं न जानूँ सनम, कैसा अहसास है!!


आदमी सोच रहा 
हम हरे खून वाले 
जब बहेंगे 
तब बहेगा जहर 
तो खून लाल कर दो देवता 
या पानी बना बहा दो सब 
आ जाने दो प्रलय 
अब जलमग्न हो जाने पर ही धूल पाएगी दुनिया


रास्ता है खुला कड़ी धूप तो होगी ।
फेंटा सर पर बांध कर ही निकलना ।
राह में साथ पानी अवश्य रखना ।
और जेब में ज़रूर चवन्नी रखना ।
....
बस
कल 
फिर
सादर

6 comments:

  1. लाजवाब 250वाँ अंंक। बधाई।

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  2. क्यों चवन्नी ही
    रुपिया क्यूँ नही..
    अच्छी प्रस्तुति..
    सादर..

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    1. आड़े वक़्त में चवन्नी
      बहुत काम आती है ।

      किसी की याद दिलाती है,
      जिनके पास कुछ भी नहीं था
      देने को चवन्नी के सिवा ।
      चवन्नी में ही था दुलार उनका ।
      आशीर्वाद दुनिया भर का ।

      ये चवन्नी खर्ची नहीं जाती ।
      मतलब जेब में कहने को चवन्नी !
      पर असल में दौलत दुनिया भर की !

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  3. बेहतरीन संकलन

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  4. वाह क्या खूब बात बनीं है, लाजवाब 250 वाँ अंक और मुझें उसमें जगह दी गई है, तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूँ।
    उन सभी साथियों का आभारी हूँ, जिन्होने मेरे लेख को पढ़ा है और उस पर अपने विचार व्यक्त किये हैं।

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  5. सादर आभार, आदरणीया ।
    रंग-रंग की रचनाओं के पड़ोस में स्थान दिया ।
    सभी को बधाई ।

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