स्नेहिल अभिवादन
जनवरी को महीना
जाने को तत्पर
फरवरी आने को बेताब
जाने को तत्पर
फरवरी आने को बेताब
चलिए चलते हैं
आज रविवार की
शाम को खुशनुमा बनाएँ.....
सिन्दूर मिले सफेद दूध-सी रंगत लिए चेहरे
चाहिए तुम्हें जिन पर मद भरी बादामी आंखें
सूतवा नाक .. हो तराशी हुई भौं ऊपर जिनके
कोमल रसीले होठ हों गुलाब की पंखुड़ी जैसे
परिभाषा सुन्दरता की तुम सब समझो साहिब
जन्मजात सूर हम केवल भाषा "स्पर्श" की जाने
मुझे तुम्हारी सोहबत पसंद थी ,
तुम्हारी आँखे ,तुम्हारा काजल
तुम्हारे माथे पर बिंदी,और तुम्हारी उजली हंसी।
हम अक्सर वक़्त साथ गुजारते ,
अक्सर इसलिए के,
हम दोनों की अपनी ज़िंदगिया थी ,
रोजमर्रा की ज़िंदगिया।
एक दूसरे से अलहदा ,
बाहर की ज़िंदगिया !
श्रृंगार नही यह, किसी यौवन का,
बनिए का, व्यापार नही,
उद्गार है ये, इक कवि-उर का!
पीड़-प्रसव है, उमरते मनोभावों का,
तड़पता, होगा कवि!
जब भाव वही, लिखता होगा!
वो भाव जो उस के चेहरे,
आँखों में देख सकता था,
उस के चेहरे पर पढ़ सकता था,
वो उस का मेरे ओर हाथ बढ़ाना,
प्रेम ऊर्जा का हृदय तक पहुँच जाना।
कभी वह बैठक में होती थी,
चमचम चमकती थी,
बड़ी पूछ थी उसकी,
अब वह पुरानी हो गई है,
चमक खो गई है उसकी,
झुर्रियों जैसी लकीरों से
अब भर गई है वह कुरसी.
आज बस
कल फिर
सादर
कल फिर
सादर
संध्या नमन। मेरी रचना को पटल पर स्थान देने हेतु धन्यवाद दी। प्रस्तुति हमेशा की तरह, दमदार और रोचक। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteआ अनुराग शर्मा जी के ब्लाॅग पर कमेंट्स की जगह दिख नहीँ रही। अगर वे मुझे पढ़ रहे हों तो कुछ सुधार करे।
ReplyDeleteबेहतरीन सूत्र।
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