सादर नमस्कार
लिखने के कुछ नहीं आज
पढ़ने के लिए
बहुत कुछ है....
लिखने के कुछ नहीं आज
पढ़ने के लिए
बहुत कुछ है....
आइए पढ़ते हैं ...
कटते नहीं दिन रात
समय गुजरा धीरे से
समय काटना हुआ दूभर
जिन्दगी हुई भार अब तो
मिलेगी इससे निजाद कब |
मैं ज़ख़्म देखता हूँ न अज़ाब देखता हूँ
शिद्दत से मुहब्बत का इज़्तिराब देखता हूँ
लगती है ख़लिश दिल की उस वक्त मखमली सी
काँटों पे जब भी हँसता गुलाब देखता हूँ
परिवर्तित जलवायु देखकर,
आज निहत्थे खड़े सभी ।
जो मेघों का सँतुलन बिगड़ा
नदियां हो गई कृष काय
सूरज तपता ब्रह्म तेज सा
धरती पूरी जलती जाय ।
साथ रहो तो सब मुमकिन है,
दूर रहकर क्या हासिल हुआ,
दिन के आठ पहर में से,
एक पहर गर भूल भी जाऊँ,
उसकी क्या गलती थी
उसने तो तिरंगा पकड़ रखा था
आखिरी गोली जब सीने में जा धंसी
जमीन पर वो चित् पड़ा था
कुम्हलाए सूरज में, वो भोर नहीं अब,
अंधेरी रातों का, छोर नहीं अब!
नमीं आ जमीं, या पिघल रहा वो सूरज,
खिली सुबह का, दौर नहीं अब!
...
अब बस
कल फिर
सादर
अब बस
कल फिर
सादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteसांध्य दैनिक में मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार।
सभी रचनाएं बहुत सुंदर।
सभी रचनाकारों को बधाई।
सांध्य दैनिक में प्रतिष्ठित कवियों के साथ मेरी भी रचना को शामिल करने के लिए आभारी हूँ । बहुत-बहुत धन्यवाद ।
ReplyDeleteसुप्रभात
ReplyDeleteसांध्य दैनिक में मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार यशोदा जी |
सभी रचनाएं मन को छू गईं |