Thursday, January 2, 2020

224...ज़िहाल-ए मिस्कीं मकुन ब-रंजिश ब हाल-ए-हिज्रा बेचारा दिल है..

साल एक गुज़र गया
मनाया जा रहा हैं शोक
गुज़र जाने का
उधेड़ी जा रही है
बखिया पुराने पापों की
उधेड़ो जी भरकर...हमें क्या
हम तो चलते हैं अपनी पुरानी पगडंडियों पर
आप भी चलिए न हमारे साथ...

बहुत परेशान था मन
शिथिल होकर
लड़खड़ा गया था।
अलगाव चाहता था सपनों से;
आँसू जिन्दगी में घुल चुके थे
जैसे- शराब में बर्फ की डली;



सुरम्य सुरभित नव विहान ,
तुमसे है मुझे कुछ मांगना ।
मेरे और अपनों की खातिर ,
ऊर्जस्विता की है कामना ।।


रमिया आज फूले न समाई।
महीने भर की मिली कमाई।

चार घर चुल्हे-चौका करती।
झाड़ू-पोछा कर पानी भरती।

कपड़े धोती औ बर्तन धोती।
तड़के जगती देर से सोती।


नागरिकता संशोधन अधिनियम के पक्ष/विपक्ष पर युवतियों-महिलाओं में चल रहे गर्मागर्म विचार-विमर्श के साथ चल रही किट्टी पार्टी में पूरी तन्मयता से पप्पी सबके थाली को पवित्रता प्रदान करने में भी लगा हुआ था।
लपलपाती जीभ और एक व्यंजन का स्वाद ग्रहण कर वह दूसरी सजी थाली की ओर बढ़ जाता। इस प्रकार वह कई चक्करों में प्राय सभी थालियों में सजे व्यंजनों का स्वाद ले चुका था...। किन्तु इससे वहाँ उपस्थित किसी सदस्य को कोई अन्तर नहीं पड़ रहा था।


सर्द सन्नाटा ...
सुबह  के  वक़्त  
आँखें  बंद कर के देखती हूँ जब  
तो यह जिस्म के कोनो से
ससराता हुआ निकलता जाता  है
सूरज की किरणे गिरती  हैं


5 comments:

  1. सुंदर रचनाओं का संगम।सभी रचनाएँ बेजोड़ ।मेरी रचना को साझा करने के लिए हार्दिक धन्यबाद एवं आभार आपका।

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति । मेरी रचना को साझा करने के लिए आपका हार्दिक आभार ।

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  3. बढ़िया अंक..
    सादर...

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  4. सस्नेहशीष व असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार छोटी बहना

    संग्रहनीय प्रस्तुतीकरण

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  5. बहुत अच्छी प्रस्तुति

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