सादर नमस्कार
चल पड़ी है नाव
अब गुंज़ाइश़ कम है
डूबने की
वैसे कागज की नाव
कभी डूबती नहीं
इस बारे में आपके क्या विचार है..
चल पड़ी है नाव
अब गुंज़ाइश़ कम है
डूबने की
वैसे कागज की नाव
कभी डूबती नहीं
इस बारे में आपके क्या विचार है..
आज की रचनाएँ....
कानों में मोबाईल लगा
कोकिल के स्वर सुनेगा कौन ?
कुक्कुट की ना बाँग सुन रहे
गऊओं का रंभाना मौन !
तभी मुखिया जी की आवाज उसके कान में पड़ती है -" अरे देखो ! एक तो छूट ही गया। इसके लिए भी दो दोने लेते आना जरा ? "
यह देख वह जोर से चिल्लाना चाहता था - " भिखमंगा नहीं रिक्शेवाला हूँ मैं..।" लेकिन, गला उसका रुँध गया ...।
उसका स्वाभिमान मंदिर के चौखट पर कुचल गया..!आज भगवान जी की मूर्ति के समक्ष यह कैसा अन्याय हो गया.. !! भिक्षुकों की टोली में एक नया भिखारी आखिर क्यों शामिल हो गया.. !!!
खेल रही है किस्मत चौसर
फेक रही है कैसे पासे
भ्रमित हो रहा मानव ऐसे
मानवता मिट रही धरा से
बारिश के पानी में
छम-छम नाचते
पानी के बुलबुले
तैरते देख कर,
जब कोई बच्चा
दौड़ कर आता है,
बड़े चाव से
काग़ज़ की नाव
बना कर
पानी में बहाता है,
ठीक कहा यशोदा दी आपने
ReplyDeleteकागज की नाव कभी डूबती नहीं, क्योंकि इसमें प्यारा- सा , निर्दोष और निश्छल बचपन जो सवार रहता है।
मेरी कहानी को स्थान देने के लिए आपका हृदय से आभार और सभी रचनाकारों को मेरा प्रणाम शुभ संध्या। ---
बढियां लाजबाव प्रस्तुति
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteबेहतरीन अंक ,सादर नमन दी
ReplyDeleteयशोदाजी, आपका बहुत-बहुत आभार । इतनी अच्छी रचनाओं के साथ स्थान देने के लिए ।
ReplyDeleteनमस्ते ।
रोचक भूमिका के साथ पठनीय रचनाओं का संकलन, आभार मुझे भी स्थान देने हेतु !
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