सांध्यकालीन दैनिक
अंक में
आप सभी का स्नेहिल
अभिवादन
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बर्फ,ठिठुरती निशा प्रहर
कंपकपाते अनजान शहर
धुंध में खोये धरा-गगन के पोर
सूरज की किरणों से बाँधूँ छोर
सर्द सकोरे भरूँ गुनगुनी घाम
मलिन मुखों पे मलूँ नवल विहान
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आपके कहने का जो भी मतलब रहा हो, मेरे विचार पूरी तरह से स्पष्ट हैं , जिन्हें अपनी मिट्टी से प्रेम नहीं वे देश के गद्दार हैं.. ऐसी कोई वस्तु नहीं जिसके लिए विदेश जाकर बसना हो। भारत में जो दान कर देने की शक्ति है,केवल दधीचि-कर्ण की बात नहीं अभी हाल में ही तीन सौ करोड़ में बिकने वाला होटल कैंसर अस्पताल को दान किया गया...,"
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अब फूल भी खिलने लगा है निगाहों में
काँटों से मुझको प्यार था ये कल की बात है
अब जिनकी बेबफ़ाई के चर्चे हैं हर तरफ
वह पहले बफादार था ये कल की बात है
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तन भी कहाँ हरदम
साथ निभाता है।
बचपन से बुढापा तक
हाथ बढ़ाता है।
तिनका-तिनका ये
जीवन जोड़ता जाता है।
पलभर ही बुलावा में
तन-मन छोड़ के जाता है।
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यादें धड़कन क़िस्से क़समें
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कुछ तूफ़ानी कुछ शांत झील
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कभी पार गया कभी डूबा भी
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इस काल चक्र के दलदल में
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फ़ंसा कभी कभी फ़ंसा दिया
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कुछ बीत गया कुछ बिता दिया
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खग-वृंद के कलनाद में अतृप्त,
अनवरत ऊँघती अकुंचित व्याकुलताएँ,
नादमय उन्मुक्त संसृति स्मृति,
गूँजती घन घटाओं के आँगन में,
पुनीत पल्लव कुसुमन पुलकित,
क्षण-क्षण हुए शून्य में भाव-विभोर |
आज का यह अंक आपको कैसा लगा ? आपकी प्रतिक्रियाओंं की सदैव प्रतीक्षा रहती है। #श्वेता |
शुभ संध्या सखी
ReplyDeleteबढ़िया चयन
अभी तापमान में वृद्धि हुई है
राहत मिली है
सादर
सुन्दर सूत्र संयोजन।
ReplyDeleteव्वाहहहहह
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति..
सादर...
सस्नेहशीष व असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteसराहनीय प्रस्तुतीकरण
बहुत ही सुंदर सूत्र संयोजन
ReplyDeleteसादर
बेहतरीन प्रस्तुति प्रिय श्वेता दी. मेरी रचना को स्थान देने के लिये तहे दिल से आभार
ReplyDeleteसादर
बहुत शानदार प्रस्तुति।, सुंदर रचनाओं का संकलन।
ReplyDeleteसभी रचनाकारों को बधाई।
वाह बहुत बढ़िया।सुंदर संयोजन।सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
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