Wednesday, January 15, 2020

237 ...हाँ मौन के भी "शब्द" होते हैं

सादर अभिनन्दन
पंद्रहवी तारीख
माह जनवरी की
देर नहीं लगता
गुज़रने में
आया है तो
गुजर भी जाएगा
इसी का नाम है
वक्त...

चलिए रचनाओं की ओर ....

डीजे के कानफोड़ू संगीत से
अपनी सोसायटी में रौनक बढ़ी है
क्या फर्क पड़ता है,अगर छात्रों की
पढ़ाई में कुछ अड़चन पड़ी है
हमें क्या....किसी का बीमार बुजुर्ग
कानफोड़ू संगीत से परेशान है....


हाँ मौन के भी "शब्द" होते हैं
और बेहद मुखर भी
चुन -चुन कर आते हैं ये उस अँधेरे से
जहाँ मौन ख़ामोशी से पसरा रहता है
बिना शिकायत -
बैठे-बैठे न जाने क्या बुनता रहता है .. ?
शायद शब्दों का ताना-बना


रोते क्यों वो भेज प्रणय वर बेटी को।
मानें हैं जो दीप किरण घर बेटी को॥

बेटे-सा दामाद अगर मिलता देखा।
तो ही लेते निर्णय जब खिलता देखा॥
सोने जैसा पीतल जब चलता देखा।
रोते क्यों ? क्या? सोच समझ कर बेटी को .....


उड़ूँ मचलकर, जैसे नभचर,
नन्हीं नटखट, करती छटपट।
रंग-विरंगी, मन- मतंगी,
हटपट-झटपट भागूँ सरपट।

देश-विदेश में पहचान मेरा,
जन-जन मेरे संग हैं।
मन में सबके भरूँ उमंग,
मेरा नाम पतंग है।


एक बचपन 
जो आज फिर फिर मिलता है 
ख़ाली वक़्त में 
और मिट्टी रूह में घुलती है 

जब सपनों से भर रही थी
पिता जी डूबे हुए थे 
दादा जी बाहर 
आ रहे थे तब
...
बस
कल फिर मिलते हैं
सादर

7 comments:

  1. बेहद उम्दा प्रस्तुति।सभी रचनाएँ बेहतरीन ।सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई। मेरी रचना को स्थान देने के लिए सादर आभार।सभी को मकरसंक्राति की अनंत शुभकामनाएँ।

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  2. वाह! बहुत सुंदर।

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  3. लाजवाब प्रस्तुति बेहद उम्दा रचनाएं
    मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार।

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  4. शुक्रिया और आभार आपका !

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  5. सुंदर प्रस्तुति सुंदर लिंक चयन।
    सभी रचनाकारों को बधाई।

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  6. बहुत बढिया लिंक्स।

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