सादर अभिवादन
सादर शुभ कामनाएँ
इकहत्तरवें गणतंत्र दिवस की
सादर शुभ कामनाएँ
इकहत्तरवें गणतंत्र दिवस की
गूगल जी महाराज ने भी एक
डूडल बनाया है
हर साल बनाता है
इस साल का कुछ विशेष है
डूडल बनाया है
हर साल बनाता है
इस साल का कुछ विशेष है
अब आपको ले चलती हूँ
पठनीय रचनाओं की ओर..
जारी बदस्तूर।
धरती तो धरणी है।
धरती रहेगी,
धुकधुकियों में अपनी
और रह रह कर उगलती रहेगी,
ज्वालामुखी, आक्रोश का!
आज चूड़ियाँ छोड़ हाथ में
लेनी है तलवार,
कोई मर्म तक छेद न जाये,
पहले करने होंगें वार,
आजादी का मूल्य पहचान लें
तो ही खुलेंगे मन के तार ,
हर तरह के दुश्मनों का
जीना करदो दुश्वार,
आओ तिरंगे के नीचे हम
आज करें यह प्रण प्राण,
देश धर्म रक्षा हित
सब कुछ हो निस्त्राण ।
अक्सर खामोश लम्हों में....मीना भारद्वाज
अक्सर खामोश लम्हों में
किताबें भंग करती हैं
मेरे मन की चुप्पी…
खिड़की से आती हवा के साथ
पन्नों की सरसराहट
बनती है अभिन्न संगी…
पन्नों से झांकते शब्द
कोरी बातें ....विभा रानी श्रीवास्तव 'दंतमुक्ता'
मुझे मेरे बचपन में देशप्रेम बहुत समझ में नहीं आता था। आजाद देश में पैदा हुई थी और सारे नाज नखरे आसानी से पूरे हो जाते थे। लेकिन झंडोतोलन हमेशा से पसंदीदा रहा। स्वतंत्रता दिवस के पच्चीसवें वर्षगांठ पर पूरे शहर को सजाया गया था। तब हम सहरसा में रहते थे। दर्जनों मोमबत्ती , सैकड़ों दीप लेकर रात में विद्यालय पहुँचना और पूरे विद्यालय को जगमग करने में सहयोगी बनना आज भी याद है
चौपाल में हुक़्क़े संग धुँआ में उठतीं बातें ...अनीता सैनी
बेचैनी में लिपटी-सी स्वयं को सबला कहती हैं,
वे आधिपत्य की चाह में व्याकुल-व्याकुल रहती हैं,
सुख-चैन गँवा घर का राहत की बातेंकर,
वे प्रतिस्पर्धा की अंधी दौड़ में दौड़ा करती हैं।
....
आज बस
फिर मिलते हैं
सादर
अक्सर खामोश लम्हों में....मीना भारद्वाज
अक्सर खामोश लम्हों में
किताबें भंग करती हैं
मेरे मन की चुप्पी…
खिड़की से आती हवा के साथ
पन्नों की सरसराहट
बनती है अभिन्न संगी…
पन्नों से झांकते शब्द
कोरी बातें ....विभा रानी श्रीवास्तव 'दंतमुक्ता'
मुझे मेरे बचपन में देशप्रेम बहुत समझ में नहीं आता था। आजाद देश में पैदा हुई थी और सारे नाज नखरे आसानी से पूरे हो जाते थे। लेकिन झंडोतोलन हमेशा से पसंदीदा रहा। स्वतंत्रता दिवस के पच्चीसवें वर्षगांठ पर पूरे शहर को सजाया गया था। तब हम सहरसा में रहते थे। दर्जनों मोमबत्ती , सैकड़ों दीप लेकर रात में विद्यालय पहुँचना और पूरे विद्यालय को जगमग करने में सहयोगी बनना आज भी याद है
चौपाल में हुक़्क़े संग धुँआ में उठतीं बातें ...अनीता सैनी
बेचैनी में लिपटी-सी स्वयं को सबला कहती हैं,
वे आधिपत्य की चाह में व्याकुल-व्याकुल रहती हैं,
सुख-चैन गँवा घर का राहत की बातेंकर,
वे प्रतिस्पर्धा की अंधी दौड़ में दौड़ा करती हैं।
....
आज बस
फिर मिलते हैं
सादर
सुंदर गणतंत्र संकलन। बधाई और आभार!!!
ReplyDeleteगंणतंत्र दिवस की बधाई। सुन्दर संकलन।
ReplyDeleteअक्सर खामोश लम्हों में
ReplyDeleteकिताबें भंग करती हैं
मेरे मन की चुप्पी…
मुझे भी गीताप्रेस की ढेर सारी पुस्तकें हमारे अग्रज सलिल भैया ने भेंट की हैं।
बचपन की याद आ गयी , जब बनारस में नीचीबाग पहुँच जाता था 'कल्याण' लेने।
सभी को गणतंत्र दिवस पर्व की शुभकामनाएँँ, आज का अंक वरिष्ठ साहित्यकारों की रचनाओं से सुशोभित है। अतः सभी को नमन जय हिन्द।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteमेरी रचना को स्थान देने हेतु तहे दिल से आभार आदरणीय दीदी जी
सादर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं । मेरे सृजन को संकलन में साझा करने के लिए सादर आभार यशोदा जी ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति। उमदा लिखा है।
ReplyDeleteबहुत शानदार प्रस्तुति,मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
ReplyDeleteसभी रचनाएं बहुत सुंदर।
सभी रचनाकारों को बधाई।