Saturday, January 11, 2020

233 ..."राष्ट्र देवो भवः"

सादर अभिवादन
आज 11 जनवरी है
आज ही भारत के लाल
स्मृतिशेष पूर्व प्रधानमंत्री
आदरणीय लालबहादुर जी शास्त्री 
का ताशकंद में हृदयाघात से निधन हुआ था
देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जिक्र आते ही सबसे पहले जय जवान, जय किसान का नारा याद आता है। शास्त्री जी ने इस नारे के अलावा "राष्ट्र देवो भवः" का मंत्र भी दिया था।
शत शत नमन..

अब चलिए रचनाओं की ओर ...

जलती लौ पर मिटा पतंगा 
ये जुगनू बनता कब तारा 
भ्रमित देश के वासी हैं सब 
योग रोग केवल ये सारा
मूल्यवान माँ की ममता का
समझे कितने एक इशारा 
ढूँढ़ धरोहर ऐसी सारी 
जिनसे होता सदा गुजारा 


कोरे कागज़ सा मन बचपन का
भला  बुरा न समझता
ना  गैरों का प्यार
जो  होता मात्र दिखावा |
दुनियादारी से दूर बहुत
 मन उसका कोमल कच्चे धागे सा
जितना सिखाओ सीख  लेता  


पार जाने की कड़ी सा
बन गया है इक नदी सा

भूल के अक्स मजहबी सा
याद आये आदमी सा

तआ'रुफ़ उसका  दूर से दे
पास बैठे अजनबी सा



जो हर बार कुछ ऐसा महसूस
कराता है की जिंदगी से
प्यार हो जाता है
जिसका प्यार मुझे कमज़ोर
कतई नहीं करता
बल्कि
दोगुनी ताक़त से भर देता है


जाड़ों की गुनगुनी धुप में
छत की मुंडेर पर
दिन-रात चुभती
निष्ठुर सर्द हवाओं से
होकर बेखबर
सूरज की रश्मि सी
बिखेर रही हो तुम
कच्ची, सौंधी, लुभावनी
प्यार भरी मुस्कान!
...
आज बस
कल फिर मिलते हैं
सादर

7 comments:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति..
    सादर..

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  3. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति 👌👌👌

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  4. सुंदर प्रस्तुति। यह दुःखद है कि शास्त्रीजी जैसे महामानव को लोग भूल ही गए हैं। नमन।

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  5. उम्दा संकलन |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद यशोदा जी |

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  6. रचना को सम्मिलित करने के लिये आभारी हूँ प्रेरणादायी शास्त्री जी के लिये नमन

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