Friday, January 17, 2020

239 ...नहीं इल्म हमको नफरतों का कोई

सादर अभिवादन
आज का शुक्रवारीय अंक
परिचित करवा रहा है
एक नए ब्लॉग से
आइए देखें ...

पहली बार
नहीं इल्म हमको नफरतों का कोई,
न ग़ैरत ख़त्म है,न इंसानियत है खोई,
हर उठती चिंगारी को बुझा दो अभी,
''हम एक है" की आवाज लगा दो सभी।

बेहद सर्द और उदास 
है शाम आज 
दूर तक नहीं है 
कोई पास आज 


चल पड़ी, बादलों से, बिछड़ कर, 
चल ना सकी, वो इक पल सम्भल कर, 
बूँदें कई, गिरी थी बदन पर, 
गम ही सुना कर गई, बारिश का पानी! 

नहीं जलाया कंडे का अलाव
नहीं बनाया गक्कड़ भरता
नहीं बनाये मैथी के लड्डू
नहीं बनाई गुड़ की पट्टी
अम्मा ने इस बार--


अदम्य पिपासा अँतर तक जो
गहरे उतरी जाती है,
दिखलाती कैसे ये सपने
पूर्ण हुवे भरमाती है,
जीवन मूल्यों से भी गिराता
अकृत्य भी करवाता है,
कैसा तृष्णा घट भरा-भरा
बूंद - बूंद छलकाता है ।।
...
अब बस
कल फिर
सादर

3 comments:

  1. बहुत सुंदर संयोजन
    सभी रचनाकारों को बधाई
    मुझे सम्मिलित करने का आभार
    सादर

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  2. सुन्दर लिंको का चयन। आज की अंक मे शामिल आदरणीया कुसुम जी, आदरणीय ज्योति खरे जी, आदरणीया रश्मि शर्मा जी व पहली बार शामिल आदरणीया निधि सहगल जी की ये सभी रचनाएँ एक से बढकर एक लगी। शुभकामनाएँ व बधाई ।

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  3. शानदार प्रस्तुति सुंदर लिंक चयन,सभी लिंक आकर्षक पठनीय सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को मुखरित मौन में शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।

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