सादर अभिवादन
‘आत्मविश्वास में वह बल है,
जो सहस्रों आपदाओं का सामना कर
उन पर विजय प्राप्त कर सकता है।’
अब चलें रचनाओँ की ओर...
जो सहस्रों आपदाओं का सामना कर
उन पर विजय प्राप्त कर सकता है।’
अब चलें रचनाओँ की ओर...
रात को भी अपने घर का सारा काम निपटा
पति के साथ प्रताड़ना सहकर भी
उसी पति का ख्याल रखती हो
उसकी लंबी हो आयु कि दुआ कर
हर रात अपना सब कुछ अर्पण करती हो
जानेमन तुम कमाल करती हो
सर्दी के मौसम में
मैं और मेरा मफलर
बन जाते है
गहरे दोस्त
मफलर की गर्म बाहें देती है
मुझको एक
गर्म एहसास हमेशा
जो लिपट कर मेरी
गर्दन से
झूलता रहता है मेरे कांधों पर।
हिंसा का जवाब अहिंसा नहीं
अहिंसा का जवाब हिंसा नहीं
पर हिंसा का जवाब...हिंसा भी नहीं
और अहिंसा का जवाब
अहिंसा भी गैरजरूरी नहीं।
सूर्य के तेज़-सी आभा मुख मंडल पर सजा,
ज्ञान की धारा का प्रारब्धकर्ता कहलाता,
सृष्टि का लाडला सृष्टि को तबाह करने को उतारु,
बुद्धि की समझ से आधुनिकता का पाठ पढ़ाता |
आते-जाते तूफानों में
जाने कितनी दूर रह गईं
मेरे गीतों की नौकाएँ !
खामोशी का गहन समंदर,
दो द्वीपों पर मचे शोर का
कब तक साक्षी बना रहेगा ?
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कल फिर मिलते हैं
सादर
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कल फिर मिलते हैं
सादर
बेहतरीन..
ReplyDeleteसादर...
बहुत अच्छी प्रस्तुति। मेरी रचना को शामिल करने हेतु सादर आभार।
ReplyDeleteमेरी रचना के एक पंक्ति को लेकर जो आज आपने इस प्रस्तुति को रखा है...वाकई मेरे लिए (मुख्यतः एक लेखक के रूप में) सम्मान की बात है। ऐसा पहली बार हुआ है।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद।
(प्रोत्साहित हूँ...)
बहुत सुंदर अंक सभी रचनाकारों को बधाई।
ReplyDelete-बहुत सुंदर प्रस्तुति।सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteसभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका धन्यवाद यशोदा जी !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteमेरी रचना का मान बढ़ाने के लिये तहे दिल से आभार आदरणीया दीदी.
सादर