Saturday, January 4, 2020

226...नव-विकास की दीप ज्योति से, समृद्धि के नए विहान से

कल अपरिहार्य कारणों से नहीं आ सकी मैं
उंगलियों मे हरकत नही हो रही थी
मारे ठण्ड के
अभिवादन स्वीकारें
सीधे चलते हैं रचनाओं की ओर ....

नवल विहान ...श्वेता सिन्हा

बर्फ,ठिठुरती निशा प्रहर 
कंपकपाते अनजान शहर 
धुंध में खोये धरा-गगन के पोर 
सूरज की किरणों से बाँधूँ छोर
सर्द सकोरे भरूँ गुनगुनी घाम 
मलिन मुखों पे मलूँ नवल विहान



लो आया नया विहान
प्रकृति लिये खड़ी कितने उपहार,
चाहो तो समेट लो अपनी झोली में
अंखियों की पलकों में ,
दिल की कोर में ,साँसों की सरगम में ।
लो आया नया विहान.…


तरुवर बोले झूम-झूमकर
उठो अपनी आँखें खोलो
कब-तक द्वेष की अग्नि में
अपने ही घर को फूकोगे
राग-द्वेष में क्या रखा है
नवयुग का हो निर्माण
जनमानस के जीवन में 
खुशियों भरा विहान हो


अब तो पूछ रहे सब मिल कर के
मिलजुल कर हम सब भला कब गा सकेंगें
" हम हो गए कामयाब, हम हो गए कामयाब ..
आज के दिन .. हो- हो .. हो गया विश्वास .. "
कब उठेगा साहिब! गर्व से हमारा भी गिरेबान ...
कब आएगा साहिब! ऐसा एक नया विहान ...

नव विहान नव ऊर्जा लेकर,
जगत पटल रोशन करता है ।
व्यग्र-तृप्त, हर्षित-विशाद पर
मानस नित दोलन करता है ।।

पंछी गण नव कलरव लेकर
गीत विहंगम नित्य सुनाती ।
जीवन के हर श्रृंग-गर्त को
समय सरि दोहन करती है ।।



विहग निलय से निकल चुके,
नव विहान आया है।
देवालय का शीर्ष कलश
आभामय ज्यूँ कंचन,
हरित तृण पर ओस कण
जगमग चमक दीप्ति उपवन .
रश्मि रथ पर बैठ रवि,
नया सवेरा लाया है।

खुश है सारा आलम, 
मां लक्ष्मी की मधुर मुस्कान से।
नव-विकास की दीप ज्योति से, 
समृद्धि के नए विहान से।।

कालेधन की रोकथाम से, 
रिश्वत वालों की नोटबंदी से।
कर-ढांचे में मौलिक सुधार से, 
संशोधनजनित क्षणिक मंदी से।।

आज बस इतना ही
कल फिर मिलते हैं
सादर






4 comments:

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  2. किसी नए नए विहान की तरह एक नया प्रयोग .. ब्लॉग से इतर मंच से भी ली गई रचनाओं का अद्भुत संगम ...
    सप्रेम नमन यशोदा जी ! साथ ही आभार आपका मेरी रचना को "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" के आज के अंक में साझा करके रचना को मान देने के लिए ...

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  3. वाह बेहद खूबसूरत प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार यशोदा जी।

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  4. वाह सुन्दर प्रस्तुति।

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