नया साल दस्तक देने को है,
आपने भी कई संकल्प ले लिए होंगे
या..उन पर विचार कर रहे होंगे.
वादों-इरादों के फेर में छोटी-छोटी बातों को न करें..
नज़रअन्दाज..ये जीवन में बदलाव ला सकती है
हंसना मत भूलिए, अपनी झल्लाहट छोड़ विनम्र बनें
जुड़े रहें समाज व पड़ोसियों से,
किसी के मन की भी सुनें..
सबसे अहम बात अपनी सेहत के प्रति सजग रहें..
किसी के मन की भी सुनें..
सबसे अहम बात अपनी सेहत के प्रति सजग रहें..
.....
और आज ही
आज हिन्दी के ग़ज़लकार
आज हिन्दी के ग़ज़लकार
स्मृतिशेष दुष्यन्त कुमार त्यागी जी की पुण्यतिथि है
उनके बारे में निदा फ़ाज़ली के कहा है
"दुष्यंत की नज़र उनके युग की नई पीढ़ी के ग़ुस्से
"दुष्यंत की नज़र उनके युग की नई पीढ़ी के ग़ुस्से
और नाराज़गी से सजी बनी है।
कभी हल्के जाड़े सा सुहाना
कभी गर्मियों सा दहकता
कभी बंसत सा मन भावन
कभी पतझर सा बिखरता
नग्न सारांश ..अग्नि शिखा
वृद्ध आँखों का सूनापन,
सर्द रातों में ढूंढता है,
परित्यक्त कोई कोना,
उतरती धूप की वसीयत में
अंधकार के सिवा कुछ नहीं होता,
सिमटती नींद के लिए ज़रूरी नहीं है
कोई चन्दन काठ का बिछौना।
ओ तथागत-2020 ..जीवन कलश
प्रतिक्षण, थी तेरी ही, इक प्रतीक्षा!
जबकि, मैं, बेहद खुश था,
नववर्ष की, नूतन सी आहट पर,
उसी, कोमल तरुणाहट पर!
गुजरा वो, क्षण भी! तुम आए...
ओ तथागत!
कोई दुःख इतना बड़ा नहीं होता ..मेरी धरोहर
कोई अनुभूति
इतनी गहरी नहीं होती कि
उसके मापन के लिए
असफल हो जाएँ-
सारे निर्धारित मात्रक..!
कोई रुदन
इतना द्रावक नहीं होता कि
बन जाए-
एक नया महासागर..!
"नये साल में" ....मंथन
यह ग़ुस्सा और नाराज़गी उस अन्याय और
राजनीति के कुकर्मो के ख़िलाफ़
नए तेवरों की आवाज़ थी,
जो समाज में मध्यवर्गीय झूठेपन की जगह
पिछड़े वर्ग की मेहनत और दया की नुमानंदगी करती है।"
उनकी रचना की कुछ पंक्तियाँ...
.....
अब रचनाएँ देखिए
उनकी रचना की कुछ पंक्तियाँ...
इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है,
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।
एक चिंगारी कहीँ से ढूंढ़ लाओ दोस्तो,
इस दीये में तेल से भीगी हुई बाती तो है।
एक खंडहर के ह्रदय सी,एक जंगली फूल सी,
आदमी की पीर गूँगी ही सही गाती तो है।
..
शत-शत नमन.......
अब रचनाएँ देखिए
कभी हल्के जाड़े सा सुहाना
कभी गर्मियों सा दहकता
कभी बंसत सा मन भावन
कभी पतझर सा बिखरता
नग्न सारांश ..अग्नि शिखा
वृद्ध आँखों का सूनापन,
सर्द रातों में ढूंढता है,
परित्यक्त कोई कोना,
उतरती धूप की वसीयत में
अंधकार के सिवा कुछ नहीं होता,
सिमटती नींद के लिए ज़रूरी नहीं है
कोई चन्दन काठ का बिछौना।
ओ तथागत-2020 ..जीवन कलश
प्रतिक्षण, थी तेरी ही, इक प्रतीक्षा!
जबकि, मैं, बेहद खुश था,
नववर्ष की, नूतन सी आहट पर,
उसी, कोमल तरुणाहट पर!
गुजरा वो, क्षण भी! तुम आए...
ओ तथागत!
कोई दुःख इतना बड़ा नहीं होता ..मेरी धरोहर
कोई अनुभूति
इतनी गहरी नहीं होती कि
उसके मापन के लिए
असफल हो जाएँ-
सारे निर्धारित मात्रक..!
कोई रुदन
इतना द्रावक नहीं होता कि
बन जाए-
एक नया महासागर..!
"नये साल में" ....मंथन
मंगल मोद मनाये
कुछ हँस ले कुछ गाए
नये साल में...
भूलें जो दुःस्वप्न सरीखा था
जो भी था
सब अपना था
आशा के दीप जलाए
नये साल में..
....
आज बस
मिलते हैं अगले वर्ष फिर
सादर
कुछ हँस ले कुछ गाए
नये साल में...
भूलें जो दुःस्वप्न सरीखा था
जो भी था
सब अपना था
आशा के दीप जलाए
नये साल में..
....
आज बस
मिलते हैं अगले वर्ष फिर
सादर
शानदार अंक..
ReplyDeleteआभार..
सादर...
अत्यंत सुन्दर संकलन । मेरे सृजन को इस अंक में साझा करने के लिए हार्दिक आभार दिव्या जी!
ReplyDeleteउव्वाहहहहहहह...
ReplyDeleteबढ़िया अंक
पठनीय रचनाएँ
सादर ..
सभी रचनाएँ शानदार व प्रस्तुति मुग्ध करता हुआ, मुझे जगह देने हेतु ह्रदय तल से आभार - - नमन सह। सभी मित्रों को नूतन वर्ष की असंख्य शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteआह्लादित हूँ कि मेरी रचना के अंश को प्रस्तुति के शीर्षक हेतु उपयुक्त पाया आपने।
ReplyDeleteपटल से जुड़े सभी गुणीजनों को नववर्ष की अग्रिम शुभकामनायें। ।।।
बहुत खूबसूरत रचना प्रस्तुति, आने वाले साल मंगलमय हो
ReplyDeleteआने वाला समय सभी के लिए मंगलमय हो
ReplyDeleteशानदार भूमिका ,दुष्यन्त कुमार त्यागीजी को सादर पुष्पाजंलि।
ReplyDeleteसभी लिंक आकर्षक सुंदर।
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
मेरी रचना को सांध्य मुखरित मौन में स्थान देने के लिए हृदय तल से आभार।
सभी प्रबुद्ध साथियों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
नववर्ष मंगलमय हो।