Tuesday, December 15, 2020

570 ...कह रही है कि परवाना अभी नहीं आया है..

सादर वन्दे
दीदी की तवियत ठीक नहीं है
जीजू अस्पताल लेकर गए हैं
बुखार आ रहा है
हाथ-पैर ठण्डे हो गए हैं
पर चिन्तित नहीं हैं वे
कह रही है कि
परवाना अभी नहीं आया है..
...
रचनाएँ...




वक्त के आधार पर ख्याबो को बुना करते हैं। 
ख्वाबों की जाल बना कर हम जिया करते हैं।।
चंद शब्दों का पुल बनाकर। 
हम विश्वास जीत लिया करते हैं।।





अभी कुछ काम शेष रहे  हैं
उन्हें  पूर्ण कर लेने दो |
जब कोई काम शेष न रहेगा
मन सुकून से रह सकेगा
फिर  लौट न पाऊँगी
इससे नहीं परहेज मुझे |





मैं आपको एक जरुरी बात बताना चाहता हूं। क्या आप मेरी बात सुनोगी?'' 
''हां, बोल...'' 
''आंटी, मैं गरीब घर में पैदा नहीं हुआ था। मेरे पापा इंजिनियर है। 
हमारे पास बंगला, गाड़ी, नौकर-चाकर सब कुछ था। 
एक साल पहले तक मैं कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ता था। 
सब कुछ बहुत ही अच्छा था। अचानक मेरे मम्मी-पापा के बीच के 
झगड़े बढ़ गए और मेरी मम्मी घर छोड़ कर नानाजी के यहां चली गई। 
मम्मी मुझे अपने साथ ले जाना चाहती थी।





होने को यूं तो नाम वसीयत में था मगर
एक बाप अपना लख्ते जिगर ढूंढता रहा..

अफ़वाह में वो आंच थी अखबार जल गए
मैं इश्तिहारों में ही ख़बर ढूंढता रहा ......





जा कह दे, उन बहारों से जाकर,
वो ही तन्हाई में, गुम न जाए आकर,
ये लम्हात तन्हा, मुझको न भाए!
आ भी जाओ कि अबकी बहार आए!


8 comments:

  1. आयुष्मान भवः
    सादर..

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  2. मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, दिव्या।

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  3. छोटी बहना के लिए मन हमेशा चिन्तित रहता है.. उनसे कहना अपना अच्छे से ख्याल रखें

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  4. सुप्रभात
    सांध्य दैनिक मुखर मौन में मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद |

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  5. मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, दिव्या जी !

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  6. सुंदर बेहतरीन प्रस्तुति

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