सादर अभिवादन
इस तारीख का
पुनरागमन फिर चार साल बाद
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पुनरागमन फिर चार साल बाद
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प्रकृति में इतने
बदलाव भी न करें कि
प्रकृति आप में ही
बदलाव कर दे
STOP CLIMATE CHANGE
BEFORE IT CHANGES YOU
BEFORE IT CHANGES YOU
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इससे आगे कुछ नही कहना
रचनाओँ की ओर चलें ...
इससे आगे कुछ नही कहना
रचनाओँ की ओर चलें ...
आँखों में उजियारा भरके,
आलस छीने नव विहान।
उम्मीदों की किरणें देकर,
जीवन का करता निर्माण।
सिंदूरी आभा संग चमके,
तकने लगे हैं शौक़ से आईने अब अंधे ।।
गंजे अमीरुल-ऊमरा रखने लगे कंघे ।।
जानूँ न वो कैसी बिना पर दौड़ते-उड़ते ,
ना पैर हैं उनके न उनकी पीठ पर पंखे ।।
नितांत निर्जन निरस
सूखे अनमने
विचार शून्य परिवेश में
पनप जाती है वह भी,
जीवन की तपिश
सहते हुए भी,
मुस्कुरा उठती है वह,
साँस मौसम की भी कुछ देर को चलने लगती
कोई झोंका तिरी पलकों की हवा का होता
काँच के पार तिरे हाथ नज़र आते हैं
काश ख़ुशबू की तरह रंग हिना का होता
एक मार्च को इस पुस्तक का विमोचन किया जाना है,
तो दिल्ली में जमावड़ा होगा देश के जाने - माने हिंदी ब्लॉगरों का।
विमोचन के बहाने ब्लॉगर मिलन इस कार्यक्रम की
शोभा में चार चाँद लगा देगा।
हिंदी ब्लॉगिंग की बगिया पुनः हरी भरी हो,
इसे नई दिशा और दशा प्राप्त हो। इसी आशा और विश्वास
के साथ कार्यक्रम की सफलता हेतु रेखा दी व
पुस्तक के सभी लेखकों व पूरी सम्पादकीय टीम
को हार्दिक बधाई व शुभकामनायें ...
....
आज
बस इतना ही
सादर
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आज
बस इतना ही
सादर