सादर अभिवादन
लोग कहते हैं
अब आप ठीक हो
प्रस्तुति लगाओ
चलो लगाते हैं...
देखिए...
एक मंदिर,
जिसके सामने से गुजरते वक्त
ट्रेनों की गति धीमी हो जाती है
मंदिर से जुडी मान्यता है कि
मंदिर में विराजित हनुमान जी
अपने भक्तों को उनके भविष्य में होने वाली कुछ
घटनाओं का पूर्वाभास करवा देते हैं,
जिससे वह सचेत रह सके !
अनगिनत लोगों को इसका आभास हुआ है
इसीलिए इस मंदिर के प्रति लोगों की
आस्था दिन प्रति दिन बढ़ती ही जा रही है।
इसी के साथ यह धारणा भी है कि
यहां आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं
इसीलिए हर मंगल, शनि और बुधवार को
दूर-दूर से आए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है
जो यहां आ कर अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए
अपने आराध्य की पूजा-अर्चना करते हैं।
पतझर के बाद ...शान्तनु सान्याल
अपना अपना है सुख,
कुछ जागते रहे सारी रात,
बिखरे सिक्कों को चुनते हुए,
कुछ मेरी तरह जीते रहे
लापरवाह,सुदूर आकाश पार,
बंद आँखों से,
यूँ ही बेतरतीब से,
तारों को गिनते हुए।
उठ समाधि से ध्यान की,उठ चल .... जौन एलिया
बैठ मत एक आस्तान पे अभी
उम्र है यह उठान की, उठ चल
किसी बस्ती का हो न वाबस्ता
सैर कर इस जहाँ की, उठ चल
प्रवंचना का जाल बिछाकर
मनुज मनुज को ठगता है
छल प्रपंच का खोदा गड्ढा
रात दिवस फिर भगता है
कदाचार में आसक्त रहे
सदभावों का हुआ हनन।।
बसंत के मौसम में खिली हो जैसे सरसों,
टूटना मत मेरे दोस्त उम्र के सामने कभी,
सिर्फ गिनती हैं वर्ष और उनकी गांठे,
फिराओ हांथ अपनी रूह को दो ताकत,
ये समय है ये भी गुज़र जायेगा ..
चलते - चलते
कुछ रूठ गए कुछ छूट गए ..अमृता तन्मय
उलझाते सुलझाते हुए झमेले
फाग आग सब मिलकर झेले
हुए कभी न हम ऐसे अकेले
उन दिनों को अब कैसे भूलें
.....
बस
कल शायद फिर
आराम नहीं न करने देंगे
सादर
सुन्दर संकलन व प्रस्तुति, दिव्य प्रस्तावना के साथ शुरुआत, मुझे स्थान देने हेतु आपका ह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
ReplyDeleteवाह लाजबाव प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहद सुन्दर प्रस्तुति . मुझे मंच पर स्थान देने के लिए सादर आभार
ReplyDeleteआप हमेशा ठीक रहें और यूं ही मनमोहक प्रस्तुतियों से सबको आनंद प्रदान करतीं रहें ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिंक।
ReplyDeleteसभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।