Wednesday, July 31, 2019

69 .....आज की शाम प्रेमचंद के नाम

स्नेहिल अभिवादन
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आज की शाम मुंशी प्रेमचंद के नाम
मुंशी प्रेमचंद (धनपत राय श्रीवास्तव) जैसे साहित्यकार पाकर 
भारत माँ  गर्वित महसूस करती है।
कालजयी क़लम के सिपाही का यथार्थवादी लेखन उन्हें 
जनमन का नायक बनाता है।
जन के मर्म को स्पर्श करने वाले रचनाकार
प्रेमचंद को पहला हिंदी लेखक माना जाता है 
जिनके लेखन में समाज का सच प्रमुखता से था। 
उनके उपन्यासों में गरीबों और शहरी मध्यवर्ग की 
समस्याओं का वर्णन है।
उनके काम एक तर्कसंगत दृष्टिकोण को दर्शाते हैं, जिसके 
मुताबिक धार्मिक मूल्य शक्तिशाली लोगों को 
कमजोर लोगों का शोषण करने की अनुमति देता है।

उन्होंने राष्ट्रीय और सामाजिक मुद्दों के बारे में सार्वजनिक 
जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से साहित्य का इस्तेमाल किया 
और अक्सर भ्रष्टाचार, बाल विधवा, वेश्यावृत्ति, सामंती व्यवस्था, 
गरीबी, उपनिवेशवाद और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन 
से संबंधित विषयों के बारे में लिखा 


क्रोध में मनुष्य अपने मन की बात नहीं 
कहतावह केवल दूसरों का दिल दुखाना चाहता है।" मुंशी प्रेमचंद


मनुष्य कितना ही हृदयहीन होउसके ह्रदय के किसी न किसी कोने में पराग की भांति रस छिपा रहता हैजिस तरह पत्थर में आग छिपी रहती हैउसी तरह मनुष्य के ह्रदय में भी ~चाहे वह कितना ही क्रूर क्यों न होउत्कृष्ट और कोमल भाव छिपे रहते हैं|" मुंशी प्रेमचंद





आदरणीय रुपचंद्र शास्त्री 'मयंक'

जीवित छप्पन वर्ष तक, रहे जगत में मात्र।
लेकिन उनके साथ सब, अमर हो गये पात्र।।

फाकेमस्ती में जिया, जीवन को भरपूर।
उपन्यास सम्राट थे, आडम्बर से दूर।।
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लेकिन आज हमारे बीच फेसबुक है प्रेमचंद नहीं। फेसबुक के जमाने में प्रेमचंद का न होना कोई बड़ी या गंभीर बात नहीं। हम अपने-अपने तरीके से आज प्रेमचंद को फेसबुक पर याद कर तो रहे हैं। आज हर दूसरी वॉल पर प्रेमचंद की याद या कहानी का तंबू गढ़ा है। कोई प्रेमचंद को महान कहानीकार बता रहा है तो कोई प्रेमचंद की लाठी थामकर सेक्युलरवाद पर भाषण झाड़ रहा है। कोई हैशटैग लगाकर प्रेमचंद पर स्टेटस चिपकाए पड़ा है। सबके अपने-अपने प्रेमचंद हैं आज।

हिंदी 
प्रेमचंद की प्रसिद्ध कृतियाँ

अपने शब्दों से वह किसी साधारण वृत्तान्त को भी असाधारण रूप से सुन्दर बना देते थे। कहानी को कागज पर जीवंत कर देने की जो कला उन्हें आती थी, उसमें बहुत ही कम लोगों को महारत हासिल है। दहेज, छुआछूत, बाल विवाह, गरीबी, जाति व्यवस्था, जमींदारी, भ्रष्टाचार और ऐसे ही अनेक सामाजिक मुद्दों पर कठोराघात करते हुए उन्होंने सामजिक चेतना बढ़ाने में भी पूरा योगदान दिया।

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क़लम का सिपाही...गोपेश मोहन जैसवाल

होरी के लाखों पुनर्मरण पर, एक नया गोदान लिखो.
प्रेमचंद के सुपुत्र श्री अमृत राय ने ‘कलम का सिपाही’ लिखकर हिंदी-उर्दू भाषियों के साहित्य प्रेम पर एक ज़ोरदार तमाचा जड़ा है. गांधीजी के आवाहन पर शिक्षा विभाग की अपनी अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर हमारा कथा सम्राट असहयोग आन्दोलन में भाग लेता है और हमेशा-हमेशा के लिए गरीबी उसका दामन थाम लेती है. उसके बिना कलफ और बिना इस्तरी किये हुए गाढ़े के कुरते के अन्दर से उसकी फटी बनियान झांकती रहती है. उसकी पैर की तकलीफ को देखकर डॉक्टर उसे नर्म चमड़े वाला फ्लेक्स का जूता पहनने को को कहता है पर उसके पास उन्हें खरीदने के लिए सात रुपये नहीं हैं. वो अपने प्रकाशक को एक ख़त लिखा.. 



मुंशी प्रेमचंद... कुसुम कोठारी


अगर आपके पास थोडा भी हृदय है तो क्या मजाल की मुंशी जी की कृतियां आपकी आंखे ना भिगो पाये, जीवन के विविध रूपों के हर पहलूओं पर उन्होंने जो चित्र उकेरे हैं वो विलक्षण है ।
-श्वेता सिन्हा 





Tuesday, July 30, 2019

68...मृगतृष्णा सा सारा जीवन....

स्नेहाभिवादन !
आज के "सांध्य दैनिक मुखरित मौन" में कुछ चयनित
 सूत्र मेरी तरफ से…
प्रस्तुति की शुरुआत में पढ़िये
मेरी पसन्द की एक कविता....
                   
आज नदी बिल्कुल उदास थी,
सोई थी अपने पानी में,
उसके दर्पण पर
बादल का वस्त्र पड़ा था ।
मैंने उसको नहीं जगाया,
दबे पाँव घर वापस आया ।
"केदारनाथ अग्रवाल"



देर रातों जागकर जो घर-बार सब सँवारती थी,
*बीणा*आते जाग जाती , नींद को दुत्कारती थी ।
शिथिल तन बिसरा सा मन है,नींद उनको भा रही है,
वृद्ध होती माँ अब मन से बचपने में जा रही हैंं ।


लफ़्ज़ों में लरज़िश तुम्हारे लम्स की
रोशनाई में रंग तेरे अबसार का
तुम्हारा ख़त मिला।

मेरे देखे से लकदक हुआ गुलमोहर
खिल उठा रंग गुलाबी कचनार का
तुम्हारा ख़त मिला।


जो भी चाहो सब मिलता है
 माया का जादू चलता है,
फिर भी जीवन उपवन सूना
दिल का फूल कहाँ खिलता है !

रूप रंग है कोमल स्वर भी
थमकर देखें समय कहाँ,
सपनों का इक नीड़ बनाते
नींद खो गयी चैन गया !

मैं देखता हूँ सब कुछ
और मुस्कराता हूँ सोचकर 
के अंजान होने में 
मज़ा कुछ अलग सा ही है
और सोचता हूँ
जो डर है उन्हें
वो मैं क्यों नहीं महसूसता
क्यों मुझे विश्वास है
अपने देश पर
अपनी भाषा पर
अपनी संस्कृति पर
क्यों मानता हूँ मैं
कि किसी के कह भर देने से
न होगा उनका नुक्सान
ये थीं मेरे होने से पहले भी
रहेंगी मेरे होने की बाद भी


सिलवटें ही सिलवटें हैं
ज़िंदगी की चादर पर
कितना भी झाड़ों,फटको
बिछाकर सीधा करो
कहीं न कहीं से कोई 
समस्या आ बैठती
निचोड़ती,सिकोड़ती
ज़िंदगी को झिंझोड़ती है 

*******
अनुमति दें
🙏🙏
मीना भारद्वाज




Monday, July 29, 2019

67...जरूरी है अस्तित्व बचाने या बनाने के लिये खड़े होना

सादर अभिवादन..
सावन अभी है
दिखा रहा है अपना रंग
रोज पानी और रोज पानी
हो रहा है अभिषेक शिव जी का..

चलिए चलें आज प्रकाशित रचनाओं की ओर....

शब्द अधूरे हैं, अल्प सामर्थ्य है शब्दों में. भाव गहरे हैं, अनंत ऊर्जा है भावों में, किंतु गुरू के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनी हो तो भाव भी कम पड़ जाते हैं. वहाँ तो मौन ही शेष रहता है. जब उसके हृदय से साधक का हृदय जुड़ जाता है तो मौन में ही संवाद घटता है. गुरू के शब्द और कर्म प्रेम से ही उपजे हैं. वह नित जागृत है, 


भीड़ देख अझुरायल हउवा?
भाँग छान बहुरायल हउवा?

बुधिया जरल बीज से घायल
कइसे कही कि सावन आयल!

पुरूब नीला, पच्छुम पीयर
नीम अशोक पीपल भी पीयर


" जमूरे ! तू आज कौन सी पते की बात है बतलाने वाला ...
  जिसे नहीं जानता ये मदारीवाला "

" हाँ .. उस्ताद !" ... एक हवेली के मुख्य दरवाज़े के
 चौखट पर देख टाँके एक काले घोड़े की नाल
 मुझे भी आया है आज एक नायाब ख्याल "


जिसने सीख लिया मनमर्जियां उगाना उसे हर पल सींचना पड़ता है इसे पूरी लगन से, शिद्दत से, सींच रही हूँ जाने कबसे. इन दिनों बारिशें हैं सो थोड़ी राहत है, सींचना नहीं पड़ता खुद-ब खुद-बढ़ रही है मनमर्जियों की बेल. मैं चाहती हूँ यह आसमान तक जा पहुंचे, हर आंगन में उगे. लडकियों के मन के आंगन में तो जरूर उगे. 


खड़े होना किसी ना किसी एक भीड़ 
के सहारे भेड़ के रेवड़ ही सही
‘उलूक’ 
भेड़ें बकरियाँ 
कुत्ते बन्दर गायें 
बहुत कुछ सिखाती हैं 

किस्मत 
फूटे हुऐ लोग 
आदमी 
गिनते रह जाते हैं 
डॉ. साहब ने प्रतिक्रिया का ऑप्शन खत्म कर दिया है

आज की प्रकाशित पठनीय रचनाएँ
आज्ञा दें
यशोदा



Sunday, July 28, 2019

66---सीप की वेदना हृदय में लिये बैठी थी

स्नेहिल अभिवादन


मिट्टी था,
 किसने चाक पे रख कर घुमा दिया 
वह कौन हाथ था 
कि जो चाहा बना दिया। 

चलिए देखिए आज की प्रकाशित रचनाएँ
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रात का इंतज़ार कौन करे ....

बशीर बद्र

कोई काँटा चुभा नहीं होता 
दिल अगर फूल सा नहीं होता
 कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी यूँ 
कोई बेवफ़ा नहीं होता 
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 *वस्ल से पहले क्यों हिज़्र का फ़रमान दे दिया,* *
मुझको विदा किया और रास्ते का सामान दे दिया,* *
तुम तो कहते थे कि कीमती है हमारी मोहब्बत
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*हाल लिखा ....* 
*मेज के धरातल पर कील से हाल लिखा
 पूरी तफ़सील से तुम शहरी
, दोष भला तुमको क्या हम ही----
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शुजा ख़ावर की शायरी में दिखता है

 उनका सूफियाना मिज़ाज

 

मिट्टी था,
 किसने चाक पे रख कर घुमा दिया 
वह कौन हाथ था 
कि जो चाहा बना दिया। 
उर्दू शायरी की दुनिया में 
शुजा ख़ावर अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज करते हैं। 
उनका सूफियाना मिज़ाज उनकी शायरी में बखूबी दिखता है। 
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सीप की वेदना हृदय में लिये बैठी थी 
एक आस का मोती, सींचा अपने वजूद से, 
दिन रात हिफाजत की सागर की गहराईयों में,
 जहाँ की नजरों से दूर,
 हल्के-हल्के लहरों के हिण्डोले में झूलाती,
 सांसो की लय पर मधुरम लोरी सुनाती, 
पोषती रही सीप अपने हृदी को प्यार से,
 मोती धीरे धीरे शैशव से निकल किशोर होता गया, 
सीप से अमृत पान करता रहा तृप्त भाव से
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सादर 
अनीता सैनी