सादर वन्दे
कल अचानक गड़बड़ हो गई थी
लैपटॉप जवाब दे दिया था
खैर मशीन ही तो है
....
आज की रचनाएँ...
निराधार आकाश ...पुरुषोत्तम सिन्हा
देशहित विरुद्ध, न आंदोलन कोई,
देशहित से बड़ा, होता नहीं निर्णय कोई,
देशहित से परे, कहाँ संसार मेरा,
देशहित ही रहे संस्कार मेरा,
पर, डिग रहा क्यूँ, विश्वास मेरा!
जहर की उस खुमानी को, लेकर साथ आई हूँ।
..गीता पाण्डेय 'अपराजिता'
गमों की फिर से एक,
कहानी लेकर आई हूँ ।
गुजरे वक्त की अपनी,
निशानी लेकर आई हूँ।1।
आग नफरतों की इस,
दुनिया से मिटाने को ,
मैं आज ऑखों में वही,
पानी ले कर के आई हूँ ।2।
अपनी मोहब्बत को इक नाम यह भी दे दो-
ये अजनबी सी आंखों का समर्पण है बस
ना तुम हो, ना मैं हूं, ना जमाने की भीड़-
हम दोनों के बीच खड़ा गूंगा दर्पण है बस।
तम शीत ऋतु की तरह आती हो ..ज्योति खरे
तुम्हारे आने की सुगबुगाहट से
खड़कियों में
टांग दिए हैं
गुलाबी रंग के नये पर्दे
क्योंकि
तुम्हें धूप का छन कर
कमरे में आना बहुत पसंद है
बैचेनी लिखने में भी दिख जाता है चैन
चैन से नहीं लिखा कर बैचनी यूँ ही
खदानों तक में
खोदना तुम को आता है
किसे मालूम है जरूरी है कुदालें भी
किसे पता है कहाँ रखी हैं
‘उलूक’ जानता है
चैन है ही नहीं कहीं सारे बैचेन हैं
बताते नहीं हैं
लिखा करना जरूरी है चैन
अपने लिये ना सही
बैचेन के लिये सही
बैचैनी है पता है कहाँ रखी है।
....
बस..
सादर..
बेहतरीन अंक..
ReplyDeleteआभार..
सादर..
आभार दिव्या जी।
ReplyDeleteशुभ संध्या .....आभार आदरणीया दिव्या जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिंक संयोजन
ReplyDeleteसभी रचनाकारों को बधाई
मुझे सम्मलित करे का आभार
सादर