सादर वन्दे
कुछ तो मदद
कोई गर कर दे
बिना किसी प्रत्याशा के
तो मदद करने वाला गाली खाता है
हमें भी पड़ेगी लताड़ एक...
रचनाएँ देखिए..
हमें भी पड़ेगी लताड़ एक...
रचनाएँ देखिए..
नया ही चाहिए कोई बहाना.
तभी फिर मानता है ये ज़माना.
परिंदों का है पहला हक़ गगन पर,
हवा में देख कर गोली चलाना.
गुमनामी के साथ जिये
होते न मशहूर
जिनके कर्मठ हाथ रहे
मेहनतकश मजदूर
कैसा ये अभिशापित सा जीवन मिला,
यहां हर कोई अपने से बड़ा मिला।
लगे रहो दिन भर मेहनत को,
फिर भी कोई प्रशंसक न मिला।
भारत निर्माण को लगा हूँ,
होकर तरबतर पसीने से।
परवाह नही किसी को भी,
मेरे जीवन के अंधेरे से।
बूँद-बूँद को जोड़े बादल
धरा की प्यास बुझाता है
बंजर आस हरी हो जाये
सूखे बिचड़ों में जान भरें
तरक्की के
उन्माँद की
खुशी व्यक्त
करना
बहुत जरूरी
होता है ‘उलूक’
त्यौहारों के
उत्सवों को
मनाते हुऐ
अपने पंखों
को बन्द कर
उड़ते पंछियों
को एक ऊँची
उड़ान पर
अग्रसर होते
देख कर।
....
बस
सादर
बस
सादर
आभार..
ReplyDeleteबढ़िया अंक..
सादर..
आभार दिव्या जी।
ReplyDeleteतरक्की के
ReplyDeleteउन्माद की
खुशी व्यक्त
करना
बहुत जरूरी
होता है ‘उलूक’....
आज की इस प्रस्तुति में जोशी साहब की उक्त पंक्तियाँ चार चाँद लगा रही हैं।
सुन्दर प्रस्तुति।