कुछ लिखने के लिए पढ़ना होता है
सुनना भी होता है
प्रतिक्रियाएँ लिखनी व पढ़नी भी पड़ती है
एक रचना के प्रसव के लिए
प्रसूता को उपरोक्त तीन पंक्तियों का
पठन, श्रवण और अवलोकन आवश्यक है
आज एक पुराने चर्चाकार को
प्रतिक्रिया करते देख ये खयाल उभरा
बाद अभिवादन के चलिए आज की रचनाएँ देखें..
आज एक पुराने चर्चाकार को
प्रतिक्रिया करते देख ये खयाल उभरा
बाद अभिवादन के चलिए आज की रचनाएँ देखें..
"हमारे बाबूजी कब उठते थे
यह हम भाई बहनों में से किसी को नहीं पता चला।
पौ फटते घर-घर जाकर दूध-अखबार बाँटते थे।
दिन भर राजमिस्त्री साहब के साथ,
लोहा मोड़ना,
गिट्टी फोड़ना,
सीमेंट बालू का सही-सही मात्रा मिलाना और
शाम में पार्क के सामने ठेला पर
साफ-सुथरे ढ़ंग से झाल-मुढ़ी,
कचरी-पकौड़े बेचते थे।"
इस चतुर इंसान ने मौका ताड़ा और रेलवे के
वरिष्ठ अधिकारियों से बात की
और फिर हो गया, डिब्बों का रंग नीला।
उनका तर्क था की लाल रंग क्रोध,
उत्तेजना व आवेश का रंग है, इसी कारण
रेल एक्सीडेंट होते हैं ! नीला रंग शांति का प्रतीक है
इसलिए दुर्घटनाओं का ख़तरा बिल्कुल
कम हो जाएगा ! दुर्घटनाएं कितनी कम हुईं
ये तो सबने देखा पर करोड़ों अरबों के खेल का
खेल पर्दे के पीछे हो गया.................!!
आयकर अधिकारी ने एक बुज़ुर्ग करदाता को
अपने कार्यालय में बुलाया...
करदाता ठीक समय पर पहुंच गया, अपने वकील के साथ...
आयकर अधिकारी : आप तो रिटायर हो चुके हैं, हमें पता चला है कि
आप बड़े ठाट- बाट से रहते हैं, इसके लिए पैसे कहां से आते हैं...?
करदाता : जुए में जीतता हूँ ...!
पर...
उनके लफ्ज़-ए-करम तो देखिए...
मैंने कुछ कहा भी नहीं
और...
उन्होंने तो
पहल भी कर दिया!
कौन जाने, किस घड़ी, छा जाए घटा,
चमके बिजलियाँ, हो न, सुबह सी ये छटा,
घिर न जाए, तूफानों में, गगन,
तुम बिन सर्वदा!
अब तो बोल ‘उलूक’
जोर लगा कर
जय जवान जय किसान
अर्ध शतक पूरा हुआ
घबड़ाहट का ही मान लो
हड़बड़ाहट के साथ
बड़ी मुश्किल से
पता नहीं
कैसे
कम बोला इस साल
बमबोला बदजुबान ।
...
कल मिलिएगा सखी श्वेता से
सादर
...
कल मिलिएगा सखी श्वेता से
सादर
आभार यशोदा जी मानना पड़ेगा आपको भी एक भी कूड़ा नहीं छोड़ती हैं आप 'उलूक' का यहां लाकर फ़ैलाने से :) :)
ReplyDeleteकाश वैसा हम भी लिख पाते
Deleteसस्नेहाशीष व असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार छोटी बहना
ReplyDeleteश्रमसाध्य कार्य हेतु साधुवाद