नमस्कार
आज मेरी बारी
मैं वो सवाल हूँ ,
मैं वो सवाल हूँ ,
जिसका कोई जवाब नहीं…
हर कोई इस तरह से
हर कोई इस तरह से
टालता है मुझे…
चलें आज का पिटारा देखें
अंधों के शहर आईना ...
अंधों के शहर आईना ...
फिर से आज एक कमाल करने आया हूँ
अँधों के शहर में आइना बेचने आया हूँ।
सँवर कर सूरत तो देखी कितनी मर्तबा शीशे में
आज बीमार सीरत का जलवा दिखाने आया हूँ।
क्या कहूँ मैने किस पे ...
अँधों के शहर में आइना बेचने आया हूँ।
सँवर कर सूरत तो देखी कितनी मर्तबा शीशे में
आज बीमार सीरत का जलवा दिखाने आया हूँ।
क्या कहूँ मैने किस पे ...
क्या कहूँ मैने किस पे कही है ग़ज़ल।
सोच जिसकी थी जैसी, सुनी है ग़ज़ल ।
दौर-ए-हाज़िर की हो रोशनी या धुँआ,
सामने आइना रख गई है ग़ज़ल ।
वह स्त्री ....
एक दिन वह मर गई,
किसी ने नहीं पूछा उससे,
'तुम्हारी अंतिम इच्छा क्या है?'
कोई पूछ भी लेता,
तो वह क्या जवाब देती,
उसे तो बोलना आता ही नहीं था.
तृतीय जगत .....
आंख मूँद कर, तुम निगल रहे हो
खाद्य अखाद्य सब कुछ,
लेकिन, मैं नीलकंठ नहीं हूँ, कि
कर जाऊं हर चीज़ को हज़म,
मेरी अंतःचेतना अभी तक है जीवित,
वो तमाम लाल, नील, हरे, गेरु रंगों से
नहीं बुझेगी ये जठराग्नि,
मुझे ज़रा ध्यान से देखो,
ईसा मसीह ....
ईसा जब जब तुम्हें
यूं सूली पर
लटका हुआ देखती हूँ
तब तब तुम्हारे बारे में
सोचने लगती हूँ
और तुमसे ये
पूछ ही बैठती हूँ
ईसा तुम
अच्छाई को ठुकते
देख रहे थे
....
बस
सादर
बस
सादर
आभार..
ReplyDeleteबढ़िया चयन
सादर..
सुन्दर संकलन व प्रस्तुति, मुखरित मौन अपनी एक अलग अंदाज़ पेश करता हुआ, मेरी साधारण पंक्तियों को शीर्ष में शामिल करने हेतु असंख्य आभार आदरणीय दिग्विजय जी, नमन सह।
ReplyDeleteसुन्दर संकलन.मेरी कविता को शामिल करने हेतु आभार.
ReplyDeleteनव वर्ष सभी के लिए शुभ हो
ReplyDeleteएक से बढ़कर एक सुंदर मंजे हुए एवं स्पर्शी लेखों का संकलन।
ReplyDeleteसादर।
सुंदर प्रस्तुति सभी लिंक पठनीय सुंदर।
ReplyDeleteमेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
सभी रचनाकारों को बधाई।