सादर अभिवादन
27 दिन बचे हैं दिसंबर के
क्यों बेवजह गिन रहे हैं दिन हम
उसे तो बीतना ही है
ये हमारे ऊपर है कि
हम रो कर बिताएं या फिर
सो कर बिताएं..
....
रचनाएँ...
क्यों बेवजह गिन रहे हैं दिन हम
उसे तो बीतना ही है
ये हमारे ऊपर है कि
हम रो कर बिताएं या फिर
सो कर बिताएं..
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रचनाएँ...
हो तुम मेहनतकश कृषक
तुम अथक परिश्रम करते
कितनों की भूख मिटाने के लिए
दिन को दिन नहीं समझते |
रात को थके हारे जब घर को लौटते
जो मिलता उसी से अपना पेट भर
बड़ी मुश्किल से भगाया था तुमको,
पर तुम फिर लौट आए,
पहले जो तबाही मचाई थी,
उससे जी नहीं भरा तुम्हारा?
थोड़ी सी भी शर्म बची हो,
तो वापस लौट जाओ,
रोग चाटता दीमक जैसे
कौन सुने मन की बातें
अपने-अपने दुख में उलझे
काल करे कितनी घातें।
टूट रही खुशियों की माला
मनके सारे छहर गए।
आकर्षण के विषय में
जितना मुझे ज्ञान है
बताता हूँ
कुशलता और काबिलियत के अनुसार
उसने पहले को रिझाया
और दूसरे को जलन था
कि वह पहले पर ही क्यों मरती है
रहिमन निज संपति बिना,
कौ न बिपति सहाय।
बिनु पानी ज्यों जलज को,
बस एक ऊपर वाला
नोचता है एक
गाय की पूँछ या
सूँअर की मूँछ कहीं
गुनगुनाते हुऐ
राम नाम सत्य है
हार्मोनियम और
तबले की थाप के साथ
‘उलूक’ पागल होना
नहीं होता है कभी भी
पागल होना दिखाना
होता है दुनियाँ को
चलाने के लिये
बहुत सारे नाटक
जरूरी है
अभी भी समझ ले
आभार यशोदा जी।
ReplyDeleteसुन्दर संकलन.आभार.
ReplyDeleteबेहतरीन रचना संकलन और प्रस्तुति,मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार आदरणीया 🙏🙏
ReplyDeleteबेहतरीन रचनाओं का संकलन ।
ReplyDeleteमेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार।
सादर।
उम्दा संकलन आज का |मेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद यशोदा जी |
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत संकलन 👌👌👌
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