सादर अभिवादन
दिसम्बर का दूसरा रविवार
सियासी उठा-पटक जारी है
और रहनी भी चाहिए जारी
एकमात्र साधन है
मनोरंजन का...
रचनाएँ....
और रहनी भी चाहिए जारी
एकमात्र साधन है
मनोरंजन का...
रचनाएँ....
नाविक नैया खेते-खेते
तुम चले गए उस पार
बाट तुम्हारी हेरे-हेरे
थके नयन गए हार
बादल ठहरे होंगे कहीं
कहे क्षितिज की रेखा
संध्या का सफ़र शुरू होगा
हाथों से समय फिसल गया
हो गया निश्प्रह निष्क्रीय प्राणी
बन कर नियति के हाथों का खिलोना
मन मसोस कर रह गया
जब बच्चे थे हम तो हर चीज़ बड़ी
आसानी से मिल जाती थी
एक बार मुंह से निकला नहीं
कि पापा झट से ला देते
लौकी को धो कर चाकू से थोड़ा सा टुकड़ा (चित्र 1)
निकाल कर चख कर देख लीजिए कि कहीं लौकी कड़वी तो नहीं है।
ऐसा करना बहुत ही जरुरी है। क्योंकि कभी कभी लौकी कडवी निकल जाती है।
गैस पर आपके पास जो भी जाली हो वो
रख कर उस पर लौकी को रख कर (चित्र 2)
उसका छिलका एकदम काला होने तक भून लीजिए।
एक अदद सा तोहफा मुझे भी देते काश
मैं भी भर लेती अपना आकाश
वो जो मेरा था तुम किसे दे आए
मैंने रक्खा था बिल्कुल करीब, दिल के पास
अब वे रास्ते नहीं रहे,
जिन पर मैं चलता था,
पक्की सड़कें हैं,
जिन पर बैलगाड़ियाँ नहीं,
मोटरगाड़ियाँ दौड़ती हैं,
पैडल वाले रिक्शे नहीं,
अब बैटरी-रिक्शे चलते हैं,
.....
आज दिव्या को आना था
अपरिहार्य कारणों से वह आज यहां नही है
सादर
.....
आज दिव्या को आना था
अपरिहार्य कारणों से वह आज यहां नही है
सादर
मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, यशोदा दी।
ReplyDeleteबेहतरीन...
ReplyDeleteसादर...
सुन्दर प्रस्तुति. मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार
ReplyDeleteसुंदर संकलन और संयोजन के लिए आप को तहेदिल से बधाई , मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार ..आपको मेरा नमन..।
ReplyDeleteसुप्रभात
ReplyDeleteउम्दा लिंक्स से सजा आज का यह अंक |मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद यशोदा जी |
सॉरी दीदी
ReplyDeleteआभार
सादर
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मेरी रचना को स्थान के लिए बहुत आभार
ReplyDeleteआप लोगों के स्नेह और प्रोत्साहन से पुनः लिखने का प्रयास कर रही हूं