ऐसे डाला जाता है चारा ..
Saturday, October 30, 2021
802...ऐसे डाला जाता है चारा ..
Friday, October 29, 2021
801...आप क्यों भावुक हो गए
एक 22-23 साल का नौजवान। साधारण सी दिखने वाली शर्ट, पैरों मे सस्ती सी चप्पल, एक जूते के दुकान में घुसा।
सादर
Thursday, October 28, 2021
800 ..अपेक्षा से भरा हुआ चित्त निश्चित ही दुखी होगा
-ओशो
Wednesday, October 27, 2021
799 ...मेरी है हर साँस तुम्हारी। तुम पर ही मैं सब कुछ हारी
बस
सादर
Tuesday, October 26, 2021
798 ..टूटता तिलिस्म कविता हमेशा कविता नहीं होती है
सादर अभिवादन
बस
सादर
Sunday, October 24, 2021
797..मां की इक उंगली पकड़कर हंस रहा बचपन मेरा..देवमणि पांडेय
Thursday, October 21, 2021
796 जीवन का टॉनिक ..प्रस्तुति - शैलेन्द्र किशोर जारूहार
Wednesday, October 20, 2021
795..संग-रेज़ो के सिवा कुछ तिरे दामन में नहीं ....शाहिद कबीर
बाँध रक्खा है किसी सोच ने घर से हम को
Monday, October 18, 2021
794 ..गिरा हुआ आदमी ....गजेन्द्र भट्ट
'किसकी चीख हो सकती है यह? सेठ जी की नातिन अगर आई हुई है तो भी वह चीखी क्यों होगी? क्या करूँ मैं?', पशोपेश में पड़ा दीनू दरवाजे के पास आकर रुक गया। तभी भीतर से फिर एक चीख के साथ किसी के रोने की आवाज़ आई। अब वह रुक नहीं सका। उसने निश्चय किया कि पता तो करना ही चाहिए, आखिर माज़रा क्या है! हल्का सा प्रहार करते ही दरवाजा खुल गया। दरवाजा भीतर से बन्द किया हुआ नहीं था। भीतर आया तो बायीं ओर के कमरे से आ रही किसी के रोने की आवाज़ और उसे चुप कराने के लिए धीमे स्वर में किसी के द्वारा धमकाये जाने की आवाज़ भी उसने सुनी। उसे लगा कि यह आवाज़ सेठ जी की ही हो सकती है।
स्तम्भित था दीनू! समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे वह! 'सेठ जी अपनी रोती-चीखती नातिन को तो यूँ धमका नहीं सकते।' -सहमा-सहमा वह कमरे के पास आया। भीतर से आ रही आवाज़ अब साफ सुनाई दे रही थी।
"रोना-चीखना बन्द कर! तू खुद ही आई है यहाँ। शोर मचाएगी तो तेरी ही बदनामी होगी। चुपचाप पड़ी रह।" -गणपत दयाल कह रहे थे।
"अंकल, मैंने बताया न आपको। मम्मी-पापा ने हाट में जाते समय कहा था कि घर पर अकेली मत रहना, गणपत चाचा के वहाँ चली जाना, इसलिए आई थी मैं। मुझे छोड़ दो, जाने दो प्लीज़!" -डरी-डरी यह आवाज़ किसी लड़की की थी।
अब सब्र नहीं कर सका दीनू! उसने जोर-से दरवाजे को धक्का दिया। दीनू की आशा के विपरीत दरवाजा तुरंत खुल गया। यह दरवाजा भी भीतर से बंद नहीं था।
"कौन है बे?'-लड़की पर झुके गणपत दयाल हड़बड़ा कर खड़े हो गये।
"मैं दीनू! यह क्या कर रहे हो सेठ जी?"
"अरे, तू भीतर कैसे आ गया? बाहर का दरवाजा तो बंद था। कैसे खोला तूने?"- गणपत दयाल ने घबराहट पर काबू पाने की कोशिश की।
"दरवाजा भीतर से बन्द नहीं था। मैंने खटखटाने के लिए हाथ मारा तो खुल गया।" -दीनू ने जवाब दिया। कहते-कहते उसकी नज़र सामने पलंग पर पड़ी। एक लड़की आधे-अधूरे कपड़ों में पलंग पर लेटी मुँह पर हाथ धरे सिसक रही थी। उसका फ्रॉक पलंग पर ही एक तरफ पड़ा था। लड़की दीनू को देख कर पलंग पर उठ बैठी, कातर स्वर में उसके मुख से निकला - "दीनू काका..."
दीनू चौंका, वह गणपत दयाल के रिश्तेदार की चौदह वर्षीय बेटी आशा थी, जिनका घर सेठ जी के घर से तीन मकान की दूरी पर ही था।
"छिः सेठ जी, आपकी रिश्तेदार है यह! आपकी नातिन की उमर की बच्ची है! कुछ तो शरम करते!" -दीनू ने गणपत दयाल की ओर घृणा भरी नज़रों से देखा।
गणपत दयाल ने नहीं सोचा था कि एक छोटी जात का आदमी इतनी हिम्मत कर लेगा। उन्हें आश्चर्य व अफ़सोस भी हो रहा था कि वह बाहरी दरवाजा भीतर से बन्द करना भूल कैसे गए थे।
गाँव में उनका बहुत रुतबा था। कई लोग उनके कर्ज से दबे हुए थे। उन्हें भरोसा था कि दीनू तो एक मामूली गरीब चमार है, डपटने और लालच देने पर चुपचाप सिर झुका कर लौट जाएगा, सो गरज कर बोले- "तेरी इतनी हिम्मत! जा, भाग जा यहाँ से।... और खबरदार, किसी से कुछ बोला तो।" -उन्होंने जेब से सौ रुपये का एक नोट निकाल कर उसकी तरफ फेंका।
"सेठ जी, गरीब हूँ, पर इतना बेगैरत नहीं कि एक कागज़ के टुकड़े पर ईमान बेच दूँ। आप इस बच्ची को जाने दो यहाँ से।"
"अबे स्साले, चमार होकर जबान लड़ाता है।" -दीनू के मुँह पर थप्पड़ जड़ते हुए गणपत दयाल दहाड़े।
दीनू सेठ जी की बहुत इज़्ज़त करता था और अपनी औक़ात से भी अनजान नहीं था। कई बार वह उनसे छिट-पुट मदद लिया करता था और बदले में कोई सेवा वह बताते, तो कर देता था।... लेकिन आज वह इस बड़े आदमी का असली रूप देख कर अपना आपा खो बैठा, बिफर कर बोला- "चमार हूँ, गरीब हूँ, मगर आपके जितना गिरा हुआ आदमी नहीं हूँ।"
इसके पहले कि गणपत दयाल कुछ सोच-समझ पाते, दीनू ने झपट कर उनकी कमर कस कर पकड़ ली और उन्हें पीछे धकेलते हुए आशा से कहा- "जाओ बिटिया, निकल जाओ यहाँ से।"
आशा ने पलंग से अपना फ्रॉक उठाया और कमरे से निकल भागी।
किंकर्तव्यविमूढ़ गणपत दयाल अब कुछ सावधान हुए। दीनू की पकड़ से उन्होंने स्वयं को मुक्त किया और उसे नीचे गिरा कर हाथ और दोनों पैरों से बेतहाशा मारने लगे। दीनू दोनों हाथों से खुद को बचाने की असफल कोशिश करता फर्श पर पड़ा पिटता रहा। आशा को बचाने का उसका उद्देश्य पूरा हो गया था। उसने सेठ जी पर हाथ नहीं उठाया, क्योंकि उसके भीतर उठे तूफ़ान में अब इतनी तेजी नहीं रही थी कि गाँव में स्थापित सामाजिक मर्यादा का उल्लंघन कर सके।
दीनू पिटते-पिटते व गणपत दयाल पीटते-पीटते निढ़ाल हो गये थे और दोनों ही अब कुछ कहने-करने की स्थिति में नहीं रहे थे। गणपत दयाल अब भी अपने मन को यही समझा रहे थे कि गाँव वाले सब-कुछ जानने के बाद भी कुछ नहीं बोलेंगे और बात को आई-गई कर देंगे।... और दीनू? जमीन पर पड़े, कराह रहे दीनू को पिटने से भी अधिक पीड़ा इस बात की हो रही थी कि पैसे की मदद नहीं मिल पाने के कारण सुबह से भूखे उसके बच्चों को अब शाम का खाना भी नसीब नहीं होगा।
-गजेन्द्र भट्ट
Sunday, October 17, 2021
793 ..कुछ इंतिज़ार की आदत सी हो गई है ..निदा फ़ाज़ली
अदा-ओ-नाज़ से लड़के को प्यार करती रहे
आज बस
Saturday, October 16, 2021
792...कोई शीशा ज़रूर टूटा है गुनगुनाती हुई खनक है वही
सादर
Friday, October 15, 2021
791..भारतीय कैलेण्डर में तिथि छूटती- बढ़ती है
सादर
Thursday, October 14, 2021
790..शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते..
सादर
Wednesday, October 13, 2021
789 ..नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
ॐ ऐं ह्रीं क्रीं कालरात्रै नमः
Tuesday, October 12, 2021
788..गोपियों ने भी कृष्ण की प्राप्ति मां कात्यायनी की पूजा अर्चना करके ही की थी
जय मातेश्वरी
Monday, October 11, 2021
787....माता अपने भक्तों की सभी इच्छा पूर्ण करती हैं
इति शुभम..
Sunday, October 10, 2021
786..माँ कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं
Saturday, October 9, 2021
785 ..आज माताश्री माँ महागौरी
सादर नमन
आज माताश्री माँ महागौरी
नवरात्रि उत्सव देवी अंबा (विद्युत) का प्रतिनिधित्व है। वसंत की शुरुआत और शरद ऋतु की शुरुआत, जलवायु और सूरज के प्रभावों का महत्वपूर्ण संगम माना जाता है। इन दो समय मां दुर्गा की पूजा के लिए पवित्र अवसर माने जाते है। त्योहार की तिथियाँ चंद्र कैलेंडर के अनुसार निर्धारित होती हैं। नवरात्रि पर्व, माँ-दुर्गा की अवधारणा भक्ति और परमात्मा की शक्ति (उदात्त, परम, परम रचनात्मक ऊर्जा) की पूजा का सबसे शुभ और अनोखा अवधि माना जाता है। यह पूजा वैदिक युग से पहले, प्रागैतिहासिक काल से चला आ रहा है। ऋषि के वैदिक युग के बाद से, नवरात्रि के दौरान की भक्ति प्रथाओं में से मुख्य रूप गायत्री साधना का हैं। नवरात्रि में देवी के शक्तिपीठ और सिद्धपीठों पर भारी मेले लगते हैं ।
आज बस
थक गए हैं, अपनी सारी उर्जा
खो चुकी हूँ
सादर
Friday, October 8, 2021
784..उच्च-वर्ग की सजी रसोई, मिडिल क्लास का चौका सूना
Thursday, October 7, 2021
783 ..आज माताश्री के पहले दर्शन शैलपुत्री के रुप में
Wednesday, October 6, 2021
782..ये अंक अवकाश की सूचना है
सादर अभिवादन
आज से अवकाश अंक शुरु
आपसे निवेदन
अंक नहीं पढ़ना हो तो न पढ़ें
टिप्पणी नहीं देना हो तो न दें
ये अंक अवकाश की सूचना है
1000 अंक होते ही..ब्लॉग तो रहेगा पर
कोई नया अंक नही आएगा
अब तक आपने साथ दिया
आभार आप सभी को
सादर
आज के अंक मे महालया
पितृ पक्ष की आखिरी श्राद्ध तिथि को महालया पर्व मनाया जाता है। यानी महालया के साथ ही श्राद्ध खत्म हो जाते हैं। वहीं महालया के साथ ही दुर्गा पूजा के उत्सव की शुरुआत हो जाता है देखिय़े, सुनिए
सादर
Tuesday, October 5, 2021
781 ..हमारे रास्ते सारे स्वतः ही मिलतें जाएंगे
सादर