Saturday, January 26, 2019

24...वह लिखना चाहता है अपने सिद्धांत,उसूल, ईमानदारी और सच्चाई

सादर अभिवादन..
आज भारतीय गणतंत्र की
उनहत्तरवीं वर्षगाँठ
शत शत शुभकामनाएँ

आपकी  बातें  निराशा  से  भरीं
आस्था  का  भी  हवाला  लाइए

बूंद ‘वर्षा ’ की  नदी बन  जाएगी
हौसला  आषाढ़  वाला    लाइए

जीवन के 
हर दिवस के
कोरे पृष्ठ पर,
वह लिखना चाहता है
अपने सिद्धांत,ऊसूल,
ईमानदारी और सच्चाई 
की नियमावली,
सुसज्जित कर्म से
मानवता और प्रेम के
खिलखिलाते
मासूम गीत।

तुम्ही देश की शान हो, तुम्ही देश का मान हो...
जब संरक्षण में हैं देश तुम्हारे, तो हम क्यों परेशान हो...
ऐ वतन के रखवालों, हम तुम्हें सलाम करते हैं...
तुम्हें जन्म देने वाले माता-पिता को प्रणाम करते हैं!!

कर्ज़ा देता मित्र को, वह मूर्ख कहलाए,
महामूर्ख वह यार है, जो पैसे लौटाए।

बिना जुर्म के पिटेगा, समझाया था तोय,
पंगा लेकर पुलिस से, साबित बचा न कोय।

गुरु पुलिस दोऊ खड़े, काके लागूं पाय,
तभी पुलिस ने गुरु के, पांव दिए तुड़वाय।

मन में जो आए वो कह लो,
काफ़िर या दीवाना।
जैसा चाहो वैसा मानो,
अपना या बेग़ाना॥

धुन उसकी ही मन में मेरे,
सभी पहर रहती है।
उसका ही होकर रहना है,
कुछ भी कहे ज़माना॥

आपको परेड भी देखना है
अब बस





Saturday, January 19, 2019

23....सेब को अनार है कह देने वालों की भर्ती गिरोह का सरदार करवा रहा है

सादर अभिवादन
बाईसवाँ अंक
मुखरित मौन का...
बिना किसी लाग लपेट के
सीधे चलें रचनाओं की ओर....

मन मेरा ....

मन मेरा औघड़ मतवाला

पी प्रेम भरा हाला प्याला

मन मगन गीत गाये जोगी

चितचोर मेरा मुरलीवाला


मंदिर , मस्जिद न गुरुद्वारा

गिरिजा ,जग घूम लिया सारा

मन मदिर पिपासा तृप्त हुई

रस प्रीत में भीगा मन आला




मर्जी तो मेरी ही चलेगी......

आज कल वो रोज मिलने लगा है.
बेवक्त ही, आकर खड़ा हो जाता है
मेरी दहलीज पर.
"कहता है- तुम्हारे पास ही रहूँगा.
बड़ा लगाव है, बड़ा स्नेह है तुमसे."
तुम गांडीवधारी हो या तुम्हे ख़सारा हैं
हम दांव खेला चुके,अब समर तुम्हारा हैं,


तुम फ़क़द तमाशा देखो,फब्तियां उड़ाओ,
जो चाँद पलकों पे था आँसू संग उतारा हैं,




आटे के ठोस
और तिली के मुलायम लड्डू
मीठी नीम के तड़के से
लाल मिर्च
और शक्कर भुरका नमकीन
हींग,मैथी,राई से बघरा मठा
और नये चांवल की खिचड़ी


तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते
इसीलिए तो तुम्हें हम नज़र नहीं आते

मुहब्बतों के दिनों की यही ख़राबी है
ये रूठ जाएँ तो फिर लौटकर नहीं आते




मात यशोदा द्वार पधारे

जोगी भेष शिव शंकर पुकारे
पलने में हैं  तेरे नाथ हमारे
दिखा दे मुख, तेरे भरे भंडारे



शीश जटा,चंद्र भाल पर सोहे
रवि सम कांति मुखमंडल शोभे
बाल रूप दरस मन आतुर होए

शिंगी नाद संग प्रभु को जोहें

उलूक के दरबार में आज...

किसी
को बहुत
मजा
आ रहा है

गिरोह
पढ़ा रहा
है सेब को
अनार
कहलवाना
किसी को

कोई
‘उलूक’ को

अनार है
अनार है
कह कर

एक सेब
रोज
दिखा रहा है ।



आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे
यशोदा 

Saturday, January 12, 2019

22...वकील साहब काश होते आज

सादर अभिवादन
जनवरी की दूसरी प्रस्तुति
हो सकता है आज प्रकाशित रचना 
आप पहले भी पढ़ चुके हों
लाज़िमी है ...ये साप्ताहिक अंक है
सोमवार से बननी शुरू होती है
चलिए चलें.....

अपने वजूद के लिये
रावण लडता रहा
और स्वयं नारायण भी
अस्तित्व न मिटा पाये उसका
बस काया गंवाई रावण ने
अपने सिद्धांत बो गया
फलीभूत होते होते
सदियों से गहराते गये
वजह क्या? न सोचा कभी
बस तन का रावण जलता रहा

दर्दे  दिल  की अजब  कहानी  है
होंठों पर मुस्कां आँखों में पानी है

जिनकी ख़्वाहिश में गुमगश्ता हुये
उस राजा की  कोई और  रानी  है


मेरी फ़ोटो
मेरा अंतर्मन   
मुझसे प्रश्न करता है -   
आख़िर कैसे कोई भूल जाता है   
सदियों का नाता 
पल भर में   
उसके लिए   
जो कभी अपना नहीं था   
न कभी होगा।   


जानिए क्यूँ दिल कि वहशत दरमियां में आ गयी 
बस यूँ ही हम को बहकना भी था बहकाना भी था 

इक महकता-सा वो लम्हा था कि जैसे इक ख्याल 
इक ज़माने तक उसी लम्हे को तड़पना भी था 


शहर में जब प्रेम का अकाल पड़ा था 
और भाषा में रह नहीं गया था 
उत्साह का जल 

तुम मुझे मिलीं 
ओस में भीगी हुई 
दूब की तरह 
दूब में मंगल की 
सूचना की तरह 


कभी मिले थे दो दिल
बने एक-दूजे का आसरा
मिलकर दोनों साथ चले
जीवन की मुश्किल में
एक-दूजे के साथ खड़े
धीरे-धीरे परिवार बना

चलते-चलते एक और रचना
उलूक के दरबार से
वकालत 
करने वो कहीं
भी नहीं जाते थे
हैट टाई लौंग कोट
रोज पहन कर
बाजार में चक्कर
लगाते चले जाते थे

बोलने 
में तूफान
मेल भी साथ 
साथ दौड़ाते थे
लकडी़ की छड़ी
भी अपने हाथ
में लेके आते थे
-*-*-*-*-
आज्ञा दें
यशोदा

Saturday, January 5, 2019

21...बाहर के लिये अलग बनाते है, अंदर की बात खा जाते हैं !

सादर अभिवादन
आज 2019 को फिर मुखर हुआ मौन
कुछ खास नया नही है ये 2019
2018 जैसा ही है
पता नहीं कब सुधरेगा ये नया साल
कब देखने मिलेगा नया कुछ...
चलिए चलते हैं आज कुछ नया है क्या....

चंद सवालात और एक मशवरा....
'इसमें तमाम व्यूज़ तो हाईस्कूल स्तर के भी नहीं थे फिर 
इसे 'इंटरव्यू' क्यों कहा गया?’
एक और प्रश्न -
'शेखचिल्ली, तू कभी हिन्दोस्तां आया नहीं,
फिर यहाँ शागिर्द तेरे, तख़्त कैसे पा गए?'




"मुझे आपकी ब्लेसिंग चाहिए, मैं भी बुक लिखना चाहता हूँ!"
"बेहद खुशी की बात... आपको कामयाबी मिले... 
अच्छी शुरुआत हो...!"
"कैसे बुक छपेगी... माने कैसे छपती है...?"
"आपके लेखन पर निर्भर करता है... उत्तम लेखन हुआ तो प्रकाशक खुद से छाप देंगे... वैसे कहना मुश्किल है कि ऐसा हो ही चाहेगा... आप अच्छा लेखन कर भी लेंगे तो जल्दी कोई प्रकाशक मिल जाएगा... आप अपनी पूँजी लगाकर छपवा सकते हैं...,"
"क्या मेरी उम्र यानी क्या लोग उनतीस-तीस साल के लेखक के लेखन को महत्त्व देंगे या मैं कुछ साल रूक जाऊँ?
"लेखन का उम्र से क्या ताल्लुक? चेतन भगत की पहली 
पुस्तक किस उम्र में आई ?

नारी जीवन की  कुछ  झलक  कविता  के माध्यम से....
जग  ने  रीत  बनाई  ऐसी,
दो   आँगन   दो   द्वार, 
बच्चपन  दिल  में  समेट  लिया, 
भूल  मात - पिता, भाई - बहन   का  प्यार, 
समय   में   गोते   खा   रही , 
ढूढ़   रही   अपना   घर -द्वार ||

श्रद्धा    सुमन   से   सींच    रही ,
दो  आँगन,   दो  परिवार ,
सुख़    जीवन   में   त्याग    रही,
विश्वास    का   पोट  किया   तैयार ,
समय    में    गोते    खा   रही ,
ढूढ़   रही   अपना   घर -द्वार ||


लेकिन,
बुद्धि !!!
अचानक प्रश्न उठाती है,
क्या सच मे माँ जादू कर पाएगी !
यह भय दूर रहे,
मेरी माँ सी ईश्वरीय छड़ी,
उनके सारे सपनों को पूरा करे,
खुल जा सिम सिम कहते,
सारे बन्द दरवाज़े खुल जाएं

नया रंग जीवन में भरती क़िताबें 
कड़ी धूप में छांह बनती क़िताबें  
सफ़ह दर सफ़ह अक्षरों को सजाती,
दुनिया को सतरों से बुनती क़िताबें 
अजब रोशनी सी बिखरती हमेशा,
तिलस्मी झरोखों सी खुलती क़िताबें 

जश्न है हर सू , साल नया है
हम भी देखें क्या बदला है

गै़र के घर की रौनक है वो
अब वो मेरा क्या लगता है

दुनिया पीछे दिलबर आगे
मन दुविधा मे सोच रहा है

लोग राम 
और राज्य
दोनो को
भूल जाते हैं 
ऎसे ही में 
कहानीकार
और कलाकार
नई कहानी
का एक 
प्लौट ले 
हाजिर हो
जाते हैं ।

आदेश दें
फिर मिलते हैं
यशोदा